Saturday 14 November 2015

जगेश्वर दयाल ने बनाया कमजोर को मजबूत


                फोटो-दैनिक जागरण में प्रकाशित मेरी खबर (14.11.2015)
’हिच्छन बिगहा के गांधी’ की संघर्ष गाथा
        कई आन्दोलनों में लिया था हिस्सा
दो साल जेल की काटी थी सजा
उपेन्द्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) आज पूरा देश जब जवाहर लाल नेहरू का जन्म दिन “बाल दिवस” के रुप में मना रहा है तो “हिच्छन बिगहा के गान्धी” को स्मरण करना भी प्रासंगिक है क्योंकि इस स्वतंत्रता सेनानी का जन्म दिवस भी 14 नवंबर ही है। जिन्हें इतिहास ने भूला दिया है। जी हां, जागेश्वर दयाल सिंह को यह संज्ञा पटना विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो.( डा.)रामबचन राय ने दिया है। इसी नाम से एक किताब लिख कर। जिसमें प्रमाणिक तथ्यों के आधार पर बताया गया है कि कैसे उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया, संघर्ष किया, समाज को जागरुक किया, अगडे-पिछडों की लडाई को मुकाम दिया। वे मानते थे कि समाज में शिक्षा का आभाव है और राजनीतिक प्रशिक्षण की जरुरत है। सन 14 नवम्बर 1889 में जन्मा यह “गांधी” समाज को जगाते-जगाते अंतत: 9 जनवरी 1995 को सो गया। सन 1952 में कौंग्रेस छोडकर कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता ली, और 1957 में दाउदनगर से विधानसभा का चुनाव लडकर हार गए। सामाजिक कार्यों को गति देने के लिए ही उन्होंने “बिहार राज्य कमजोर जनता मंच” का गठन किया था। इसकी एक सभा दाउदनगर में 1980 में की गयी थी जिसकी अध्यक्षता खुद की और इसमें बतौर मुख्य अतिथि सोनपुर के तात्कालीन विधायक लालु प्रसाद यादव आए। इनकी बेटी रोहिणी की शादी जागेश्वरदयाल सिंह के पुत्र राव रणविजय सिंह के पुत्र समरेश के साथ 24 मई 2002 को हुई है। यहां के निवासी रवीन्द्र सिंह दो बार अरवल से विधायक बने।
संघर्ष का योद्धा 
सन 1821 से 1922 तक देश में महात्मा गान्धी के आह्वाहन पर असहयोग आन्दोलन चला। इस दरमयान वे औरंगाबाद गेट हाई स्कूल में पढते थे। सन 1919 में कक्षा का बहिस्कार किया, 12 स्वयंसेवकों का जत्था तैयार किया, और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लोगों को जगरुक करने लगे। गया कौंग्रेस पार्टी कार्यालय में उन्हे रख लिया गया। गया में शराब दूकानों की बन्दोबस्ती की खिलाफत में वे आगे रहे। 12 सत्यग्रहियों के जत्थे का उन्हें नायक बनाया गया। पुलिस ने मार मार कर शरीर लहूलुहान कर दिया। 5-6 दिन इलाज चला। उन्होंने गया कौंग्रेस कार्यालय में बाबा खलिल दास के सानिध्य में राजनीतिक करियर की शुरुआत की। आन्दोलन के लिए जब सूची बनाया जा रहा था, तब उन्होंने अपना नाम भी लिखाया और खूब ओजपूर्ण भाषण दिया, नतिजा पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। 2 माह की सज़ा हुई। औरंगाबाद ज़ेल से फुलवारी शरीफ ज़ेल ले जाने के क्रम में उन्होंने हर मौके पर जनता को सम्बोधित करते हुए आन्दोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया, हर बार पीटे गए, लेकिन झुके नहीं। फुलवारी शरीफ ज़ेल में उनकी मुलाकात स्वामी सहजानन्द सरस्वती और यदुनन्दन शर्मा से हुई।

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