Saturday 7 November 2015

ओबरा की जनता का कौन बनेगा सिकन्दर?

                                फोटो-चन्द्रभुषण वर्मा और बीरेन्द्र सिन्हा 
दोनों गठबन्धनों की हैं कमजोर कडियां
जातीय समीकरण या आधार मुख्य कारक
उपेन्द्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) मुकाबले में खडी महागठबन्धन और एनडीए ने अपनी जीत का दावा करते हुए यह भी बताया है कि उन्हें ओबरा विधान सभा क्षेत्र में कितना वोट मिलने वाला है। दोनों मानते हैं कि हार-जीत का अंतर लगभग 10 हजार होगा। यह हार-जीत कैसे तय होगा? जातीय समीकरण ही इस चुनाव का मूलाधार है। दोनों पक्षों की कई कमजोर कडियां भी हैं। ये कडियां ही जीत-हार को तय करेंगी। एनडीए प्रत्याशी चंद्रभुषण वर्मा के खिलाफ जो कारक हैं उसमें एनसीपी से प्रत्याशी अभिमन्यू शर्मा, निर्दलीय ऋचा सिंह, समरस समाज पार्टी के राजीव कुमार उर्फ बब्लु और सर्वजन कल्याण पार्टी के अंजनी कुमार सिन्हा समेत कई अन्य प्रत्याशियों को मिला मत इनकी अनुपस्थिति में एनडीए को मिलता। इसके अलावा सोमप्रकाश सिंह ने भी एनडीए का वोट ही अधिक काटा है। इसके अलावा एनडीए वोटरों की सुस्ती जानलेवा साबित हो सकती है। आधार वोटरों में आक्रमकता नहीं थी। एक बार फिर यह स्पष्ट दिखा कि एनडीए के मतदाता वर्ग को बूथ तक ले जाने की चुनौती बनी हुई है। एनडीए के सभी घटकों के बीच आपसी सामंजस्य और चुनाव जीतने का आक्रामक जज्बा कभी नहीं दिखा। रालोसपा का आधार मतदाता खामोश रहा। खामोशी ऐसी कि बराबर यह सन्देह बना रहा कि यह मतदाता किसकी तरफ जा रहा है। भाकपा माले प्रत्याशी राजाराम सिंह की तरफ या रालोसपा की तरफ? दोनों पक्ष 60/40 का औसत अपने पक्ष में बताते रहे हैं। इसी तरह महागठबन्धन प्रत्याशी बीरेन्द्र सिन्हा को हराने के लिए कई लोग सक्रिय रहे। जिसमें राजद से जुडे उनके स्वजातीय नेता शामिल हैं। इनकी मंशा किस हद तक पूरी हुई, सवाल यह भी है। क्या लालु प्रसाद को देख कर वोट डालने वाले स्थानीय स्वजातीय नेता के कहने पर राजद छोड दूसरे को वोट किया, यह देखना दिलचस्प होगा।    

धीरे-धीरे खुलेंगी अंदरखाने की बातें
 आप जब खबर पढ रहे हैं तो ओबरा विधान सभा क्षेत्र का चुनाव परिणाम पर भी आपकी नजर बनी हुई है। रुझान के साथ-साथ मतदान से पूर्व और मतदान के दिन की राजनीतिक गतिविधियों पर भी आप नजर दौडा रहे होंगे। स्मृतियां उमड रही होंगी कि किसने क्या कहा था, क्या किया था? राजनीति में जो दिखता है हर बार वही नहीं होता। अन्दरखाने भी बहुत कुछ होता है। जो दिखता नहीं, या काफी कम लोग उसे देख पाते हैं। यह अन्दरखाने की बात भी अब धीरे-धीरे खुलने लगी है। किस किस ने क्या कहा था और कहे मुताबिक नहीं किया, या अपेक्षानुरुप नहीं किया, अब इसकी चर्चा होगी। यह चर्चा भी कितना असहिष्णु होता है या सहिष्णु यह वक्त बतायेगा।

दांव पर लाखों नगदी और साख
एक विधान सभा क्षेत्र से चुनाव कोई एक ही जीतेगा और बाकी सब हारेंगे, यह तय है। ओबरा विधान सभा क्षेत्र से कुल 18 और गोह विधान सभा क्षेत्र से 21 प्रत्याशी खडे हैं। सबकी किस्मत का बंद ताला आज खुल रहा है। इन कुल 39 प्रत्याशियों के खर्च हुए लाखों नगदी और व्यक्तिगत साख दांव पर लगा हुआ है। इनके इतर भी इनके समर्थक और कार्यकर्ता नगदी का दांव लगा चुके हैं। प्राप्त सूचना के अनुसार राजद और रालोसपा के दो नेताओं के बीच ओबरा के परिणाम को लेकर एक लाख रुपये की शर्त लगी है। ऐसे कई लोग दीपावली का जुआ खेल रहे हैं। इस चुनाव में गोह ऐर ओबरा के कई नेताओं की व्यक्तिगत साख भी दांव पर लगी है। ये वे लोग हैं जो वोट के ठेकेदार बनते हैं। धारा के अनुकुल तो वोट दिलाने में ये कथित स्वयंभू ठेकेदार सफल हो जाते हैं किंतु धारा के विपरित ऐसा करना मुश्किल होता है, प्राय: नामुमकिन। चुनाव बाद इनकी भी पोल खुल जायेगी, जब विश्लेषण बूथवार होगा। तब स्पष्ट पता चल जायेगा कि कौन कितना सफल हो सका है?

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