Monday 9 November 2015

वोटों के बिखराव से हारा एनडीए


फोटो-विजेता बीरेन्द्र सिन्हा और पराजित चंद्रभुषण वर्मा
रालोसपा प्रत्याशी की हार की कई वजहें
 महागठबन्धन जीत गया और एनडीए हार गया। इसकी कई वजह है। महागठबन्धन का वोट एकजुट रहा जबकि एनडीए में बिखराव रहा। दैनिक जागरण में 14 अक्टूबर को “ बिखराव रोकने की चुनौती” शीर्षक खबर छापी थी। तभी बताया गया था कि दोनों प्रमुख गठबन्धनों को बिखराव रोकने की चुनौती है। महागठबंधन प्रत्याशी बीरेन्द्र कुमार सिन्हा इसमें कामयाब रहे। विधायक होते हुए सोमप्रकाश मात्र 10031 वोट पर सिमट गये। समाजवादी पार्टी के डा.निलम को मात्र 1798 वोट मिला। सोम प्रकाश के वोट में यादव मतदाता से अधिक अन्य जातियों का मत है जो काफी हद तक एनडीए को मिलता। दूसरी तरफ एनडीए प्रत्याशी चंद्रभुषण वर्मा बिखराव रोकने में सफल नहीं हो सके। इनके मतों का बिखराव सर्वाधिक रहा। भाकपा माले को मिला 22801 मत में सर्वाधिक स्वजातीय का है जिस पर रालोसपा प्रमुख और मंत्री उपेंद्र कुशवाहा का प्रभाव नहीं रहा। यदि यह वोटर एकजुट मतदान का संकेत भी दे देता तो एनडीए का वोट बढ जाता। इसके बाद अभिमन्यू शर्मा को मिला 3710 मत, अंजनी कुमार को मिला 794 मत, जिला पार्षद और स्वजातीय राजीव कुमार उर्फ बब्लु को मिला 1004 मत, बाजार निवासी शिव कुमार को मिला 719 मत, निर्दलीय रिचा सिंह को मिला 1866 वोट इनकी अनुपस्थिति में इसमें सर्वाधिक मत एनडीए को मिल सकता था। इस बिखराव ने हार की जमीन तैयार कर दी थी।

मैनेजमेंट का भी योगदान
दोनों गठबन्धनों के मैनेजमेंट में काफी फर्क था। एक तरफ उत्साहित कार्यकर्ताओं की टोली और गांव-गांव पहुंच कर नाराजगी दूर करने या अपेक्षा पूरी करने की व्यवस्था संभाले लोग थे, तो दूसरी तरफ इसका अभाव दिखा। एक तो देर से टिकट मिलना जिस कारण एनडीए प्रत्याशी के पास समय कम पड जाना। अनुभव की कमी। स्वाजातीय की खामोशी के साथ भाकपा माले के तरफ जाने की अधिक चर्चा। इसे दूर करना आसान था किंतु इस दिशा में प्रयास नहीं किया गया। मैनेजमेंट या कहें प्रत्याशी के प्रति जीत का जज्बा समर्पित भाव से रखने वाले सहयोगियों की कमी थी।

ध्रुवीकरण से जीत, भीतरघात से हार
 महागठबन्धन प्रत्यशी बीरेन्द्र कुमार सिन्हा ने अपनी जीत का श्रेय महागठबन्धन के प्रति रुझान और एकजुटता को बताया है। कहा कि अक अच्छा मुख्यमंत्री बनाने के लिए सबका समर्थन मिला। दूसरी तरफ एनडीए के प्रत्याशी चंद्रभुषण वर्मा का कहना है कि पराजय की वजह भीतरघात है। रालोसपा और भाजपा के कई सांगठनिक पदाधिकारी तक वोट भाकपा माले के लिए मांग रहे थे। भीतरघात के कारण ही हार हुई।

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