Saturday 16 April 2016

आपसी विद्वेष में पार्टी को दिया सेल्टर

पंचायत, राजनीति और इतिहास-11
स्वार्थ न सधा तो सेल्टर देना बन्द
बेलवां के सोनी में हुई कई हत्यायें
उपेन्द्र कश्यप
दाउदनगर (औरंगाबाद) नक्सलबाडी आन्दोलन से प्रेरित बिहार में हुए मजदूर आन्दोलन के पीछे का रहस्य बहुत कुछ उद्घाटित होना बाकी है। जो नक्सली या मजदूर आन्दोलन के हिस्सेदर जीवित हैं, उनके पास कहने को बहुत कुछ है। उनके पास संघर्ष, उसके पीछे के वैचारिक संघर्ष, द्वन्ध और साजिशों के कई किस्से स्मरन में जीवित हैं। इस इलाके में इस आन्दोलन का अगुआ रहा है भूमिगत रही भाकपा माले लिबरेशन। तब आईपीएफ इसका फ्रंट मोर्चा हुआ करता था। सोनी गांव 2001 से पूर्व जब 1978 में पंचायत चुनव हुआ था तब खुद पंचायत मुख्यालय हुआ करता था। आज बेलवां पंचायत का हिस्सा भर है। यहां पार्टी को खडा करने का काम विकास जी ने किया था। यहां स्मरण रहे पार्टी में किसी भी हार्डकोर का नाम वास्तविक नहीं छद्म हुआ करता है। उन्हें यहां लाने वाले थे- गांव के ही पिछडी जाति के एक व्यक्ति। जिनका उद्देश्य था अपनी हे जाति के कुछ लोगों बदला लेना। यह रहस्य था किंतु जब खुला तो कथित नक्सली कार्यकर्ता पीछे हट गये। वे ऐसा करते तो उनका ही संगठन नुकसान उठा सकता था। सोनी में ऐसे लोगों ने बताया कि जिसने पार्टी को लाया, संगठित किया उसी ने गंव के ही कुछ लोगों के खिलाफ गन्दी राजनीति शुरु कर दी। योजना थी कि एक वृद्ध की हत्य कर दुश्मन को फंसा दिया जाये। किंतु पार्टी तैयार नहीं हुई। सेल्टर देने वालों का उद्देश्य पूरा नहीं हुआ तो वे पीछे हत गये। उस निर्दोष वृद्ध की जान तो बच गयी किंतु भाडे के अपराधियों को बुलाकर अपने दुश्मन का सफाया करा दिया गया और बाद में पार्टी के एक नेता को आरोपी बना दिया गया। उस वाम कर्यकर्ता की भी बाद में हत्या कर दी गयी। इस कार्यकर्ता के बारे में साथियों ने बताया कि उसे सामने की लडाई में मारन संभव नहीं था सो धोखे से मार डाला गया। वह दौर अब गुजरे जमाने की बात हो गयी किंतु यादें हैं, जो लंबे समय बाद भी जीवित बची रह जाती हैं।
...और संगठन शिथिल पड गया
 पार्टी ने हबुचक में सभा की योजना बनायी। दूबे खैरा के पार्टी कार्यकर्ता ने योजना बनाया था। उसी ने जनता को उत्साहित किया था। जनता पहुंच गयी किंतु रक्षा दल मौके पर नहीं पहुंचा। स्थिति चिंताजनक बन गयी। जनता में खामोश बेचैनी छा गयी। जो लीडर थे वे चिंतित थे। लडाई से परेशान किसान संगठित हो कर मौके पर पहुंच गये। हमला कर मजदूरों, गरीबों को भगा देने की योजना थी। जनता एकमत हो कर वापस होने में भलाई समझी। वह पीछे हट गयी। किसानों की भीड ने माईक एवं अन्य सामग्री तोड फेंका। इस घटना ने मजदूरों, गरीबों को हिला कर रख दिया। नतीजा पार्टी संगठन शिथिल पडता गया। 


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