Monday 11 April 2016

‘माया’ के मस्तिष्क में ‘सरस्वती’

उपेन्द्र कश्यप 
जी हां, नन्हीं मासूम गुडियों से खेलने वाली माया के मस्तिष्क में सरस्वती का वास है। शहर उनका प्रवचन रोजाना संध्या को यहां श्रवण कर रहा है। कुमारी माया सरस्वती उर्फ मीरा जी मात्र 11 साल की हैं। गया जिला के कोंच थाना के तरारी गांव की निवासी और यहीं मिडिल स्कूल में सातवीं की छात्रा हैं। इसी उम्र में उन्हें रामचरित मानस के बालकांड से लेकर उत्तरकांड तक याद है। कभी खिलौने से कभी मोबाइल का गेम खेलने वाली यह नन्ही बालिका डाक्टर बनना चाहती है। प्रवचन के लिए स्वयं को तैयार करने के साथ अपनी कक्षा के दस विषयों को भी पढती हैं। इस कारण माता उत्तम देवी ने अपनी शिक्षिका का पेशा छोड कर सिर्फ पुत्री को पढाने और साथ देने में जुट गयीं। एक बार माया ने पिता से कहा कि वकालत के पेशे में झुठ बोलना पडता है इसलिए दिनेश सिंह चौहान ने अपनी 18 साल की जमी जमायी वकालत का पेशा छोड दिया। सात और नौ दिन तक प्रवचन करने का उन्हें अवसर पूर्व में मिल चुका है। यहां पहली बार उन्हें 12 दिन निरंतर प्रवचन करने का अवसर मिला है। इससे पहले डोभी के अमारुत में 11 दिन का प्रवचन दे चुकी है। दाउदनगर में रिकार्ड बना जिस कारण पिता को शहर से स्नेह अधिक हो गया है। माता-पिता का लक्ष्य है कि पुत्री स्वयं प्रवचन कर सके इतना आत्मविश्वास प्राप्त कर ले और सामने नीचे भूमि पर बैठकर दोनों पुत्री का प्रवचन सुन कर ज्ञान प्राप्त कर सकें। दूसरा लक्ष्य है कि जब माता-पिता स्वर्ग सिधार जायें तो माया दोनों की तस्वीर अपने मंच पर रखे और इसके सथ गुरु, प्रभु का आशीर्वाद लेकर प्रवचन का प्रारंभ करें।
संत के मार्ग पर चलना है
 माया सरस्वती के पिता का कहना है कि सिर्फ प्रवचनकर्ता या कथावाचक बनाना लक्ष्य नहीं है। हमारी कोशिश है कि संत के मार्ग पर पुत्री चले और दूसरों को भी तभी ऐसा करने को प्रेरित करे। बताया कि एक बार प्रात: मां,पिता और गुरु को प्रणाम करने की सीख प्रवचन में दिया तो पूछा कि बेटी जब आप ऐसा नहीं करतीं तो दूसरे को कैसे प्रेरित करेंगी। इसके बाद प्रतिदिन प्रात: को माया ऐसा करने लगीं।
धीरे-धीरे बढ रहा आत्मविश्वास
 माया सरस्वती का आत्मविश्वास धीरे-धीरे बढ रहा है। इस कच्ची उम्र में परिपक्वता की अपेक्षा भी कदाचित उचित नहीं। जब उन्होंने मंचीय कार्यक्रम प्रस्तुत करना प्रारंभ किया तो सिर नीचा रहता था। सर झुकाकर प्रवचन करती थीं। सामने वाले को इनक चेहरा नहीं दिखता था। अब यह समस्या खत्म हो गयी है। अब चेहरे पर आत्मविश्वास झलकने लगा है।
स्मरणशक्ति ईश्वर की देन
 माया की स्मरणशक्ति की दाद देनी होगी। वह निरंतर प्रवचन कएम भी करती है और स्कूली शिक्षा के लिए दस विषयों की पढाई भी। वह धर्मग्रंथों को भी पढते समझते रहती है। सातवीं कक्षा की छात्रा है और नवीं, दसवीं की गणित प्रश्न हल कर देती है।
साध्वी प्रज्ञा से मिली प्रेरणा
 साध्वी प्रज्ञा भारती का वैभव संसार देखकर नन्हीं माया प्रवचनकर्ता बनने को प्रेरित हुई थीं। करीब ढाई सल पहले वह अपने पिता दिनेश सिंह चौहान के साथ डा.संकेत नारायन के यहां गयीं थीं। वहां साध्वी प्रज्ञा का प्रवंचन होना था। वह आयीं तो सभी लोग उनका चरणरज ले आशीर्वाद ग्रहण करने लगे। इससे इस बालमन पर गहर प्रभाव पडा। पिता से इसकी वजह पूछी तो बताया और फिर आध्यात्मिक स्कूल में नामांकन को जिद करने लगीं। पिता टालते रहे और अंतत: अपनी प्यारी इकलौती संतान को इस दिशा में ले जाने को दृढनिश्चय कर लिया। 

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