Tuesday 12 April 2016

बाबू अमौना के बनने के हैं अपने किस्से

पंचायत, राजनीति और इतिहास-7
आपसी सहमति का था सर्वमान्य रास्ता
1956 तक थाने नहीं पहुंचते थे मामले
दाउदनगर के गोरडीहां पंचायत का अमौना गांव। महत्वपूर्ण गांव जिसने इतिहास के कई पन्ने खुद लिखे और संघर्ष की दासतां भी लिखी। इसके बसने की अपनी कहानी है। मुगल काल में यह गांव मुस्लिम बहुल था। किसी हादसे या परिस्थितिवश गांव उजड गया। आबादी नहीं रही। बाद में गोह के डिंडिर निवासी बाबू बुनियाद सिंह ने मुस्लिमों से जमीन्दारी खरीद ली और गांव को आबाद किया। इससे पहले वे अपने गोतिया से तंग आकर बल्हमा गांव में बस गये थे। शायद यही वजह रही कि यहां कभी भी सांप्रदायिक तनाव नहीं हुआ है। सामाजिक समरसता का इतिहास सामूहिकता से बनाया गया है। यहां दो कब्रिस्तान और एक करबला है जिसके लिए जमीन जमींदार राघो सिंह ने जमीन दी थी। इसके संचालन के लिए सात बिगहा खेत भी दिया गया था, जिसकी फसल से करबला का खर्च आज भी चलता है। यहां मुस्लिमों का गढ हुआ करता था। वर्तमान गढ उससे अलग है।
अमौना गांव के विवाद 1956 तक आपसी सहमति से निपटाये जाते थे। अंजनी कुमार प्रसाद सिंह ने बताया कि गांव के विवाद जब औरंगाबाद स्थित एसडीओ कोर्ट तक जते तो वहं से मामले को गांव में ही निपटा देने का पत्र आया करता था। जमींदार राघो प्रसाद सिंह जब तक जीवित रहे यह परंपरा चलती रही। उनके निधन के बाद यह व्यवस्था खत्म हो गयी। 
अमौना बनाम बाबू अमौना
सरकारी दस्तावेजों में बाबू अमौना शब्द नहीं है। इसका मशहूर नाम है- अमौना। यही राजस्व ग्राम है। फिर इसे बाबू अमौना कब और कैसे कहा जने लगा? ग्रामीण अंजनी कुमार प्रसाद सिंह बताते हैं कि इलाके में अमौना नाम के तीन गांव हैं। एक को लाला अमौना कहा जाने लगा तो गांव के एक जमीन्दार  अपने डाक पता में बाबू अमौना लिखने लगे। बस इसी तरह यह बाबू अमौना कहाने लगा। मुखिया भगवान सिंह बताते हैं कि जमीन्दार राघो सिंह के प्रभाव के कारण गांव के नाम से पहले बाबू जोडा गया जो प्रचलन में चल पडा।
चार कोण, चार पोखरा
बाबू अमौना गांव के चारों कोण पर चार पोखरा हुआ करता था। अब दो का वजूद खत्म हो गया है। इनका अतिक्रमण कर लिया गया है। कभी ये सिंचाई के प्रमुख साधन हुआ करते थे। आज पंचायत में सिंचाई की कोई समस्या नहीं रह गयी है। गोरडीहां और नोनार में जमीन्दारी बान्ध का मरम्मत कार्य हुआ है। कैनाल और करहा से संसा के खेत आबाद हो गये हैं। अनुसूचित जातियों की जमीन भी बंजर से सिंचित हो गये हैं।

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