Wednesday 6 April 2016

सत्ता बनाम सामाजिक संघर्ष का गवाह अंछा

पंचायत, राजनीति और इतिहास-2
दासता की मुक्ति में गुजर गयीं पीढियां
स्थिति के लिए नई पीढि जिम्मेदार नहीं
उपेन्द्र कश्यप
 औरंगाबाद के दाउदनगर शहर के सटे अंछा पंचायत ने सत्ता और समाज का संघर्ष देखा है। खूब देखा है। भारत आजाद हुआ किंतु यहां के मजलुमों के लिए नया बिहान न होना था न हुआ। इनके लिए बाबा साहब भीमराव अंबेदकर का कानून तत्काल दासताओं से मुक्ति नहीं दिला सका। चुनावी प्रक्रिया प्रारंभ हुई तो डर से न कोई वोट देने जाता था न कोई कमजोर वर्ग का उम्मीदवार बन सकता था। दासता और डर ऐसी कि जब वोट दिया तो जैसा और जिसको कहा गया उसी को। गांव के चंद प्रभावशाली व्यक्ति जो कह दें सो ही सही। हालांकि यह हालात प्राय: अन्य स्थानों में भी देखा गया है। इसके लिए अब की पीढि को जिम्मेदार नहीं समझा जा सकता। किसकी मजाल बाबू- कोई बोल दे। टोकने और विरोध में उंची आवाज लगाना तो बडी दूर की कौडी रही है। यह स्थिति तो गत दशक में विधान सभा चुनाओं में भी दिखा है, किंतु गरीब गांव से उठ कर थाने पहुंचने की हिम्मत करने लगे थे, यह बडा बदलाव दिखा है। 1980 के दशक तक किसी की क्या मजाल कि अपने घर के दरवाजे पर खाट लगा कर बैठ जाये। यह तो अब भी जीवित आबादी के सैकडों लोगों के स्मरण में पैबस्त है। कैसे रिश्तेदार भी आकर अगर खाट पर बैठा हो और मलिकार देख लें तो गाली देकर उठा देते। खेत में काम देने से मना कर देते। पेट की ज्वाला सताती रही और हाशिये पर खडा वर्ग जुल्म के बावजूद दासता स्वीकरता रहा। घुटता जीवन कभी बदलेगा, दासता की बेडियां कभी भला टूटेंगी, यह सोचती पीढियां गुजर गयीं। नरसिंह सिंह, रामबैरिष्टर सिंह, राजाराम सिंह और बीरेन्द्र सिंह पंचायत के मुखिया रहे हैं। 1978 में जब मुखिया का चुनाव हुआ तो बीरेन्द्र कुमार सिंह निर्विरोध मुखिया बने। फिर चुनाव ही नहीं हुआ। जब 2001 में बिहार में पंचायत चुनाव हुए तो तस्वीर ने करवट बदलना प्रारंभ कर दिया।

भूगोल और अतीत के सुखद अध्याय
प्रारंभ से अंछा पंचायत मुख्यालय
अंछा पंचायत की सीमा का प्रारंभ थाना से बमुश्किल दो किलोमीटर की दूरी से होता है। इसकी पश्चिमी सीमा सोन से सटती है। इस पंचायत में तीन राजस्व ग्राम हैं-अंछा, केशराडी और चौरम। ये गांव भिन्न भिन्न समाजों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनके अलावा ठाकुर बिगहा, जागा बिगहा, मन बिगहा और आंकोपुर है। अंछा निवासी और कांग्रेस प्रखंड अध्यक्ष राजेश्वर सिंह ने बताया कि अंछा हमेशा से पंचायत मुख्यालय रहा है। जब 2001 में नया परीसीमन हुआ तो केशराडी पंचायत का वजूद खत्म हो गया। वह अंछा में मर्ज कर गया।

अंछा पचायत का बडा आयोजन
अंछा पंचायत के चौरम गांव ने गुलाम भारत में मगध की राजनीति में महत्वपूर्ण मुकाम हासिल किया था। 9-10 फरवरी 1939 को चतुर्थ गया राजनैतिक जिला सम्मेलन का आयोजन सुभाश आदर्ष उधोग मंदिर चौरम द्वारा किया गया था। नेता जी सुभाश चन्द्र बोस के साथ कुमार नरेन्द्र देव जैसे दिग्गजों ने जन सैलाब को संबोधित किया। किसान नेता स्वामी सहजानंद सरस्वती ने आयोजन की अध्यक्षता की थी।
बडी शख्सियत- रामबैरिष्टर भाई
अंछा निवासी राम बैरिष्टर भाई चर्चित सख्शियत रहे हैं। मुखिया तो रहे ही, भूदान आन्दोलन से भी जुडे रहे हैं। इस सर्वोदयी नेता का व्यक्तित्व काफी प्रभावशाली रहा है। इस संवाददाता को भी एक मुलाकात का अवसर प्राप्त हुआ है। बडे ही सौम्य और समाजवादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करने वाला यह सख्श जय प्रकाश आन्दोलन में जेल जा चुका है। ग्रामीण राजेश्वर सिंह ने बताया कि भागलपुर जेल में रहे और 1957 में ग्रेजुयेशन किये थे। भूदान यज्ञ कमिटी के राज्य स्तरीय कमिटी के सदस्य रहे हैं।
श्यामप्रकाश सिंह और अंछा फीटर
अंछा निवासी श्यामप्रकाश सिंह भूदान यज्ञ कमिटी में बडे पद पर थे। 1966 में पडे अकाल रिलिफ कमिटी के सचिव बने थे। राजेश्वर सिंह ने बताया कि हजारीबाग में सरिया के पास कमिटी ने उन्हें रहने को आश्रम दिया था। वाहन और नौकर चाकर भी। बताया कि सिंचाई के लिए अंछा फीटर इन्हीं की देन है। तत्कालीन सिंचाई मंत्री दीपनारायन सिंह को अंछा ला कर इसकी मंग पूरी कराया था।

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