Friday 8 April 2016

आरक्षण ने बदल दी जनप्रतिनिधित्व की सूरत


दैनिक जागरण-8.4.16
पंचायत, राजनीति और इतिहास-3
दो बार मिला अनु. जाति को मौका
उपेन्द्र कश्यप
21 वीं सदी बिहार में सामाजिक बदलाव लेकर आया। 1978 के बाद नये परीसीमन के साथ पंचायत चुनाव का आगाज 2001 में हुआ। गत चुनाव में निर्विरोध निर्वाचित बीरेन्द्र कुमार सिंह इस चुनाव में खडे हुए तो विपक्ष भी खडा हुआ। राज्य में सामाजिक न्याय की सरकार थी। सोन में बहुत पानी बह चुका था। इलाके में सक्रिय आईपीएफ (इंडियन पीपुल्स फ्रंट) यहां राजनीतिक हस्तक्षेप में उतरी। उसने भाकपा माले के कार्यकर्ता मोहन चौधरी को प्रत्याशी बनाया। बीरेन्द्र सिंह 900 वोट लाकर जीत गये। श्री चौधरी को लगभग 500 से कम वोट मिला और राम श्लोक सिंह को 700 से अधिक मत। यह आने वाले राजनीतिक बदलाव की आहट थी। 2006 में यह पंचायत अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित घोषित हो गया। भाजपा समर्थित नीतीश कुमार (जदयू) की सरकार ने आरक्षण की व्यवस्था को तेज धार दे दी थी। चुनाव की बिसात बिछी तो पासे भी कम नहीं चले। अंछा पंचायत में पहली बार किसी अनुसूचित जाति का मुखिया बनना तय हुआ था। राजनीतिक मजबूरियां ही सही किंतु बिहार में हाशिए पर खडी आबादी को जनप्रतिनिधित्व का अवसर मिलना पहली बार तय हुआ था। भाकपा माले बडी भूमिका निभाने उतरी। पार्टी की बैठक हुई। उसमें युदागीर राम को नहीं बुलाया गया। द्वारिक राम की कोशिश थी प्रत्याशी बनने की। यहां यह स्पष्ट हो लें कि चुनाव पार्टी आधार पर बिहार में नहीं हो रहा था। बस राजनीतिक दल अपने स्तर से समर्थक प्रत्याशी बना कर विजेता बनाना चाहते थे। पार्टी ने युदागीर राम (अनुपस्थिति के बावजूद) को सरपंच का  प्रत्याशी बनाने का निर्णय लिया। इन्होंने इसे चुनौती दी। ग्रामीणों ने पार्टी पर अनदेखी करने का आरोप लगाया। बात नहीं बनी तो खुला ऐलान कि युदागीर भी चुनाव लडेंगे। उन्होंने द्वारिक पासवान को 367 मत से हराया और भद्र लोक में पहली बार क्रांतिकारी लाल बदलाव लाया। फिर जब 2011 में चुनाव हुआ तो द्वारिक को 456 मत से हराया। वे चौथे स्थान पर रहे। दूसरे स्थन पर चौरम के राम प्रवेश पासवान और तीसरे स्थान पर केशराडी के विन्देश्वरी पासवान रहे। अब सीट अनारक्षित हो गयी है, मुकाबला कौन जीतता है देखना दिलचस्प होगा।    
अंछा गांव का दृष्य
बडी शख्सियत-शिवशंकर सिंह
 28 मार्च 1978 से 1983 तक दाउदनगर नगर पालिका (तब, अब नगर परिषद) के चेयरमैन रहे शिवशंकर सिंह अंछा के मूल निवासी हैं। अब शहर में शुक बाजार में रहते हैं। इनके पुत्र कौशलेन्द्र कुमार सिंह अभी नगर पंचायत के उप मुख्य पार्षद हैं। उनका नाम ही “चेयरमैन साहब” पड गया। कितने चेयरमैन बने लेकिन वे बाद में अपने नाम से पुकारे जाते रहे हैं। यह बडी उपलब्धि रही। 14 फरवरी 1978 को चुनाव हुआ। और 28 मार्च को वे चेयरमैन बने थे। उन्होंने ‘नगरपालिका के बढते कदम’ फोल्डर निकाला। इसमें आठ सडकें बनाने का दावा किया गया। कादरी हाई एवं मिडिल स्कूल, हाता मिडिल स्कूल, पटना के फाटक स्कूल, बुधु बिगहा स्कूल समेत आठ स्कूलों को सडक से जोडने की योजना बनायी थी। उनके राजनीतिक अनुभवों और कार्यों ने उन्हें “राजनीति की किताब” की छवि दे दिया। आज भी वे अंछा के गौरव के रिप में शहर में देखे जाते हैं।




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