Saturday 9 April 2016

अमौना ही 2001 में बन गया गोरडीहां पंचायत

पंचायत, राजनीति और इतिहास-5
भाकपा माले ने की थी लाल-क्रांति

उपेन्द्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) अमौना कभी खूद पंचायत मुख्यालय हुआ करता था। अब गोरडीहां पंचायत का हिस्सा बन गया है। यह बदलाव 21 वीं सदी में हुआ जब 2001 में पंचायतों का परिसीमन बिहार में किया गया। तब तक बिहार में लालु प्रसाद के नेतृत्व में सामाजिक न्याय की क्रांति हो चुकी थी। यह और बात है कि बिहार में उनके कार्यकाल में पंचायत चुनाव नहीं हो सके। इस पंचायत का नाम गोरडीहा हो गया। चुनाव हुआ तो रुपचंद बिगहा के लखन यादव मुखिया निर्वाचित हो गये। तब ई.भगवान सिंह मात्र 26 मतों से हार गये। मधेश्वर शर्मा और भाकपा माले नेता मदन प्रजापति भी चुनाव हार गये थे। जब कि माले ने इस क्षेत्र में अपने तरीके की लाल-क्रांति की थी। किसान राजकुमार सिंह की जमीन पर साल 1997-98 में झंडा गाडने का नेतृत्व माले ने किया था। तब यहां इतना अधिक तनाव बना कि पुलिस पिकेट बिठाना पडा था। जब मामला शांत हो गया और किसनों ने अपनी जमीन अपने कब्जे में ले लिया तो पिकेट का भी कोई मतलब नहीं रह गया। सरकार ने उसे हटा दिया। इस चुनाव के बाद जब 2006 में चुनाव हुआ तो बिहार में पहली बार पंचायत के एकल पदों पर आरक्षण लागू कर दिया गया। यह सीट सामान्य रहा। यहां चुनाव में गोरडीहां के ई.भगवान सिंह जीते और अमौना के सुबोध शर्मा और तत्कालीन निवर्तमान मुखिया लखन यादव हार गये। फिर 2011 में चुनाव हुआ और पुन: सुबोध शर्मा हारे और भगवान सिंह दूसरी बार मुखिया बन गये। इस बार यह सीट महिला आरक्षित है तो इनकी पत्नी सबिता देवी मैदान में हैं। जो अंकोढा कालेज में प्राचार्य के पद से त्यागपत्र दे कर राजनीति में आयी हैं।   `  

प्रथम मुखिया और मुकदमा
आधुनिक भारत में प्रथम बार तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा राजस्थान के  नागौर जिले में 02 अक्टूबर 1959 को पंचायती राज व्यवस्थ लागू की गई थी। जब अमौना पंचायत का प्रथम चुनाव होना था, चुनाव आम सहमति से हुए और नोनार के राम राज यादव को जनता ने मुखिया चुन लिया। एक समूह इनके खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया। उच्च न्यायालय तक सुनवाई चली। दूसरा चुनाव आ गया। फैसले में अब भला किसे दिलचस्पी रह जाती। जब 1978 में चुनाव हुआ तो बलिराम शर्मा निर्वाचित मुखिया बने। इसके बाद 2001 में चुनाव हुए। 

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