Saturday 9 April 2016

मजदूरी को ले हुआ था वाम आन्दोलन

पंचायत, राजनीति और इतिहास-4
100 एकड जमीन पर गाडा था झंडा
मजबूत भी और कमजोर भी बनी ‘पार्टी’
किसानों की जमीन से ही गरीबों की रोटी
उपेन्द्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) 2006 और 2011 के पंचायत चुनाव में भाकपा माले की राजनीति हारती गयी। चूंकि वह ग्राउंड जीरो पर परिस्थितियों का आकलन और पूर्वानुमान दोनों करने में असफल रही। वह अपनी पूर्व की गलतियों से सीख न सकी थी। कभी गांव के गरीबों को किसानों के मुकाबले खडा करने में लगी पार्टी की असफलता की पृष्ठभूमि करीब डेढ दशक पूर्व के मजदूर आन्दोलन ने तैयार कर दी थी। उंचाई देने के बावजूद फिसड्डी होने के कारण का बीजारोपण भी तब हो गया था। वस्तुत: शोषण से तंग समाज के कुछ युवाओं ने यहां पार्टी (तब पार्टी शब्द हथियारबन्द नक्सली संगठन का पर्यायवाची था) को बुलाया था। उसे सेल्टर उपलब्ध कराया। उसमें कई जिन्दा हैं। बताते हैं कि मजदूरी के खिलाफ आन्दोलन प्रारंभ हुआ। तब तीन किलो धान या दो किलो चावल मजदूर को दिया जाता था। करीब 100 एकड जमीन पर संभवत: 1986 या 1988 में लाल झंडा गाड दिया गया। यह पार्टी की उपल्ब्धि थी और मजबूत होने की दिशा में एक बडी शुरुआत। इसे पार्टी बरकरार नहीं रख सकी। किसानों ने लाल झंडा उखाड फेंका। भाकपा माले पीछे हट गयी। किसानों की तरफ से खडी टीम का मुकाबला तब तीन लोगों ने किया था। तीनों के पास मात्र तीन भरेठ गोली थी। इनको अपने हथियार पुलिस की डर से सोन में छुपाकर रखना पडता था। ऐसे हथियार अप्रत्याशित आक्रमण पर काम नहीं आ सके। हमलावरों की नजर से ओंझल होकर तीन तिकडी का एक सदस्य एक फायर करता और विरोधी जवाब में फायरिंग इतनी करते कि उसकी गिनती मुश्किल थी। काफी देर बाद ताकतवर समूह वापस चले गये और परिणामत: पार्टी में बिखराव आ गया। आज उन्हीं किसानों के भरोसे गरीबों की बडी आबादी अपनी आजीविका चला पा रही है। समाज में बदलाव दिखता है। किसानों के खेत उन्हीं कथित विरोधियों के जिम्मे है और वे अपनी दाल रोटी चला पा रहे हैं।

अफरा-जफरा और अंछा पट्टी
 अंछा के बारे में एक किंवदति है कि दाउद खां को अफरा-जफरा तंग करते थे जिससे मुक्ति अंछा के राजपूतों ने दिलाया था। ग्रामीण और कांग्रेस प्रखंड अध्यक्ष राजेश्वर सिंह ने बताया कि सुना जाता रहा अहि कि अंछा और इमामबाडा के बीच दोनों भाई रहते थे। जब यहां दाउद खां आये तो उन्हें दोनों तंग करने लगे। दाउद खां अंछा के राजपूतों से संपर्क किये तो दोनों से दाउद खां को मुक्ति मिली। इससे खुश हो कर दाउद ने पसवां और लहसा की जागीर अंछा के राजपूतों को दे दी। इसे अज भी पसवां में ‘अंछा पट्टी’ के नाम से जाना जाता है।

किसान, किसानी और समृद्धि
अंछा पंचायत किसानी के लिए समृद्ध माना जाता है। यहां के किसानों ने अपने परिश्रम के बदौलत कद्दु, लाल गुलाब आलु और धान –गेंहू की पैदावार अच्छी करते हैं। इससे किसानों के साथ मजदूरों एवं गरीबों को भी आमदनी हो रही है। गांव जितना संघर्ष के जमाने में समृद्ध था उससे आज अधिक समृद्ध है। इससे विकास की गति बढ रही है।


No comments:

Post a Comment