Thursday, 27 March 2025

अनुमंडल गठन की राजनीति में शामिल हुए थे कर्पूरी ठाकुर

 अनुमंडल के 34 वर्ष -02




बैठक में शामिल हुए थे जगरनाथ मिश्रा, ठाकुर मुनेश्वर सिंह, मगध विवि के वीसी 

1989 में हुआ था बालिका इंटर विद्यालय में बड़ा समारोह

उपेन्द्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : दाउदनगर को अनुमंडल बनाने को लेकर लंबे संघर्ष का दौर चला था। एक वक्त ऐसा भी आया जब उसमें कर्पूरी ठाकुर और जगन्नाथ मिश्रा जैसे बड़े लोग शामिल हुए। वर्ष 1977 के विधानसभा चुनाव के बाद दाउदनगर को अनुमंडल बनाने की मांग वाले आन्दोलन में ठहराव आ गया था। चुनाव खत्म और राजनीति खत्म की प्रवृति तब भी दिखती है। यह कोई नई बिमारी नहीं है। जैसा आज दिखता है वैसा ही पहले भी होता था। खैर..। ठहराव के बाद गति का आना नीयति भी है। पूर्व जिला पार्षद राजीव रंजन सिंह की मानें तो 1980 के विधानसभा चुनाव के बाद इस ठहराव को गति दी गयी। 1980 के विधान सभा चुनाव में वे लोकदल से ओबरा विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी थे। 1981 में सर्किट हाउस में एक बैठक की गयी। तब जननायक कर्पूरी ठाकुर बतौर विरोधी दल के नेता बैठक में उपस्थित हुए थे। तब उनसे कहा गया था कि इसे अनुमंडल बनाने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल करें। उत्कर्ष (वर्ष 2007) के अनुसार राजीव रंजन सिंह (बाद में जिला पार्षद बने) ने जून 1989 में भी एक बड़ा समारोह कन्या उच्च विद्यालय दाउदनगर के परिसर में आयोजित किया था। इसमें पूर्व विधायक ठाकुर मुनेश्वर सिंह, मगध विश्वविद्यालय के वीसी हरगोविंद सिंह और संभवतः तब कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष (बाद में मुख्यमंत्री बने) जगन्नाथ मिश्रा उपस्थित हुए। राजीव रंजन सिंह ने तब कहा था- राजनीतिक नेतृत्व की कमजोरी की वजह से दाउदनगर अनुमण्डल नहीं बना और औरंगाबाद जिला बन गया। श्री मिश्रा (अब स्वर्गीय) ने तब साकारात्मक आश्वासन दिया था। राजीव रंजन सिंह बताते हैं कि गर्ल्स हाई स्कूल वाली बैठक में जगन्नाथ मिश्रा जब आए तो उनके करीबी होने के कारण मगध विश्वविद्यालय के वीसी शामिल हुए, जबकि विधायक होने के कारण ठाकुर मुनेश्वर सिंह भी इसमें शामिल हुए। बाद में धीरे-धीरे सभी दल के लोग सहयोग करने लगे। तब रामविलास सिंह जनता पार्टी बसावन गुट के नेता थे। तब सीपीआई के नेता व अधिवक्ता मुखलाल सिंह (अब स्वर्गीय) ने भी साथ दिया था। 


शहर और औद्योगिक क्षेत्र होना महत्वपूर्ण 

पूर्व जिला पार्षद राजीव रंजन सिंह बताते हैं कि तमाम बड़े नेताओं को यह तर्क दिया गया कि दाउदनगर जिले का सबसे पुराना शहर है। 1885 का यह नगर पालिका है। जब कोई सोच भी नहीं सकता था कि इस इलाके में कोई नगर पालिका बन सकता है, तब यह नगर पालिका बना था। यह औद्योगिक क्षेत्र भी था। तब पीतल और कांसा के बर्तन यहां बनते थे। इसके अलावा कपड़े की बुनाई का भी काम होता था। यह सब दाउदनगर को अनुमंडल बनाने के लिए मजबूत पक्ष थे, जिसने नेताओं को प्रभावित किया।


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