Wednesday, 26 March 2025

1980 के दशक में भूगोल तय कर उठी अनुमंडल बनाने की मांग

 अनुमंडल के 34 वर्ष -01



दो मंत्रियों को रामविलास सिंह ने दिया था अनुमंडल बनाने का तर्क

नारायण सिंह और राम विलास सिंह की राजनीति अलग अलग

1977 के चुनाव में क्षेत्र का स्वरूप ही बदल गया

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : 

दाउदनगर 31 मार्च 1991 को अनुमंडल बना था। लेकिन यूं ही नहीं, बल्कि इसके लिए लंबे समय तक संघर्ष करना पड़ा था। तब की राजनीति आज की अपेक्षा कम जटिल नहीं थी। चार दशक में कई पीढ़ियां जवान हो जाती हैं और तब के आंदोलन में शामिल पीढ़ी में काफी लोग संवाद के लिए उपलब्ध नहीं रह जाते। आज जब 34 वर्ष अनुमंडल गठन के हो गए तो यह जानना भी दिलचस्प होगा कि अनुमंडल गठन के लिए राजनीति की दिशा और दशा आज के लगभग चार दशक पूर्व कैसी रही थी। 

जब औरंगाबाद को गया से अलग कर जिला बनाने के लिए जमीन पर रेखाएं खींची जा रही थी तब ओबरा (241), दाउदनगर (240) अलग-अलग विधानसभा क्षेत्र हुआ करता था। यह तब जहानाबाद लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा था। ओबरा के साथ बारुण, दाऊदनगर के साथ हसपुरा प्रखंड जुड़ा था, जबकि गोह टेकारी विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा था। यह भौगोलिक राजनीतिक स्थिति 1972 तक रही। इसके बाद परिसीमन के कारण क्षेत्र के भूगोल में परिवर्तन हुआ। इसी वर्ष दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र से जीते रामबिलास सिंह और ओबरा से नारायण सिंह। ये वही नारायण सिंह हैं जो बारुण निवासी केशव सिंह के बड़े पुत्र थे। इन्हीं के छोटे भाई थे देव नंदन सिंह उर्फ देवा सिंह जिनकी काफी प्रतिष्ठा बारुण क्षेत्र में अब भी है। नारायण सिंह ने ओबरा-बारुण विधानसभा क्षेत्र के साथ दाउदनगर प्रखंड को मिला कर नए विधान सभा क्षेत्र निर्माण कराने की कवायद शुरू की। ध्यान रहे तब भी दाउदनगर का ओबरा व बारुण की अपेक्षाकृत अधिक शहरीकरण हो चुका था। वैसे भी वर्ष 1885 में ही दाउदनगर नगरपालिका बन चुका था। देवा सिंह के पुत्र सुनील यादव जो ओबरा से वर्ष 2020 में जदयू से चुनाव लड़ चुके हैं, उन्होंने इसका कारण पूछने पर बताया कि पीढ़ियों का प्रभाव है। उसी प्रभाव वाले क्षेत्र के विस्तार की सोच बड़े पिता जी की रही थी। इधर इसकी काट के लिए रामबिलास सिंह ने दाउदनगर, हसपुरा, ओबरा एवं गोह प्रखंडों को मिलाकर अनुमंडल बनाने की चर्चा प्रचार में लाया। दोनों अपनी राजनीतिक जरूरतें पूरी करने में लगे थे। इसी समय जिला पुनर्गठन समिति का गठन दारोगा प्रसाद राय की अध्यक्षता में किया गया। श्री राय बाद में मुख्यमंत्री बने। रामबिलास सिंह (अब स्वर्गीय) ने इस पत्रकार से (वर्ष 2006 में) अपने इस प्रयास पर लंबी बातचीत की थी। राजस्व मंत्री चंद्रशेखर सिंह तथा मंत्री लहटन चौधरी के साथ जाकर श्री राय से मिले और आंकड़ों के साथ दाउदनगर को अनुमंडल बनाने का तर्क दिया। बातचीत में श्री सिंह ने यह भी कह दिया कि- ‘औरंगाबाद को जिला तथा दाउदनगर को अनुमंडल बना दिया जाए।’ तब श्री राय ने टिप्पणी की - ‘जिला बने से ऊ लोग के राज हो जाई।’ तब पुन: श्री सिंह ने कहा- ‘हम इसलिए प्रयासरत हैं कि दाउदनगर अनुमंडल बन जाए।’ जब जिला गठन की प्रक्रिया पूरी हो रही थी उसी समय दाउदनगर अनुमंडल गठन का प्रस्ताव तैयार हो गया था। सिर्फ अधिसूचना जारी होनी शेष थी। लेकिन मामला लटक गया। सिर्फ 23 जनवरी 1973 को औरंगाबाद जिला गठन की औपचारिकता पूरी कर ली गयी। 


इच्छा पूरी नहीं, आंदोलन में ठहराव

इसके बाद 1977 के चुनाव में विधानसभा क्षेत्रों का वजूद बदल गया। दाऊदनगर-ओबरा तथा गोह-हसपुरा विधानसभा क्षेत्र बना और टेकारी तथा बारूण इससे अलग हो गए। यानी इस समय रामबिलास सिंह और नारायण सिंह दोनों अपनी इच्छा पूरी नहीं कर सके। अनुमंडल बनाने की मांग वाले आंदोलन में ठहराव आ गया। कितनों के सपने पर पानी फिर गया। 


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