Sunday, 30 March 2025

अनुमंडल हुआ 34 वर्ष का, लेकिन अभी भी पूर्णता प्राप्त नहीं

 अनुमंडल के 34 वर्ष -05


 



एलआरडीसी, कार्यपालक दंडाधिकारी व पीजीआरओ के पद रिक्त 

भूमि विवाद निवारण के मामले में आ रही है बाधा 

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : अनुमंडल गठन के 34 वर्ष हो गए। यह यात्रा छोटी नहीं मानी जा सकती है। इस दौरान कई पीढ़ी जवान हो गई। लेकिन अनुमंडल कार्यालय पूर्णता को प्राप्त नहीं कर सका। विकास एक सतत प्रक्रिया है। यह होता रहता है। लेकिन किसी कार्यालय का स्थापना महत्वपूर्ण है। 34 वर्ष हो जाने के बावजूद अनुमंडल की स्थिति यह है कि यहां भूमि सुधार उप समाहर्ता (एलआरडीसी) का पद लगभग पांच महीने से रिक्त है। ऐसी स्थिति में एलआरडीसी का कोर्ट नहीं हो रहा है। दाखिल खारिज अपील का कार्य नहीं हो रहा। भूमि विवाद निवारण अधिनियम वाले मामले लंबित रह जा रहे हैं। न्यायिक कार्य बाधित हो रहा है। आवश्यक न्यायिक कार्य एसडीओ के जिम्मे है। लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी (पीजीआरओ) का पद रिक्त है लगभग एक साल से इस पर स्थापना नहीं हुई। रूटीन कार्य एसडीओ के जिम्मे है। न्यायिक कार्य भी एसडीओ करते हैं। लंबे समय से यहां कार्यपालक दंडाधिकारी का पद रिक्त है। कार्यपालक दंडाधिकारी का रूटीन कार्य अनुमंडल निर्वाचन पदाधिकारी (एसईओ) मनोज कुमार संभाल रहे हैं। कार्यपालक दंडाधिकारी के पास होने वाले दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 107 (बीएनएस 126) और 144 बीएनएस 163) के काम एसईओ मनोज कुमार संभाल रहे हैं।


निर्वाचन कार्य में आ रही बाधा 

यहां पदस्थापित भूमि सुधार उपसमाहर्ता (एलआरडीसी) ओबरा विधानसभा क्षेत्र के ईआरओ भी होते हैं। लेकिन यह काम भी अभी एसडीओ के जिम्मे है। जबकि एसडीओ खुद गोह विधानसभा क्षेत्र के ईआरओ होते हैं।

एसडीओ व एसडीपीओ का आवास नहीं 

34 वर्ष में भी अनुमंडल के सबसे बड़े पदाधिकारी अनुमंडल पदाधिकारी (एसडीओ) और अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी (एसडीपीओ) का आवास नहीं बन सका है। एसडीओ अंचल अधिकारी के आधिकारिक आवास में तो एसडीपीओ सिंचाई विभाग के अतिथि गृह में रहते हैं।


जनता को समस्या न हो इसकी कोशिश

एसडीओ मनोज कुमार ने बताया कि पदाधिकारी की कमी के कारण कार्यों के निष्पादन की जिम्मेदारी दूसरे अधिकारियों को दी गई है। जनता के काम में समस्या ना हो, किसी तरह की बाधा उत्पन्न न हो, इसका पूरा ख्याल रखा जाता है।



स्थापना दिवस पर होंगे कई कार्यक्रम


इस बार धूमधाम से अनुमंडल का 34 वां स्थापना दिवस मनाया जाना है। एसडीओ मनोज कुमार ने बताया कि स्थानीय कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति की जाएगी। उसके बाद संध्या में भजन गायिका तृप्ति शाक्या का कार्यक्रम होगा। सबसे पहले रामविलास सिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण होगा। कलाकारों और पत्रकारों को सम्मानित किया जाएगा। जिला पदाधिकारी और पुलिस अधीक्षक समेत तमाम जिला स्तरीय पदाधिकारी भी कार्यक्रम में आमंत्रित है।


‘माड़-भात खायेगें, अनुमण्डल यहीं बनायेगें’ का नारा हुआ बुलन्द

 अनुमंडल के 34 वर्ष -04



‘माड़-भात खायेगें, अनुमण्डल यहीं बनायेगें’ का नारा हुआ बुलन्द


शहरी क्षेत्र वाले चाहते थे नहर के पश्चिम खुले कार्यालय


सामाजिक-राजनीतिक दबाव का द्वंद्व झेल रहे थे मंत्री जी 

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : 31 मार्च 1991 को दाउदनगर अनुमंडल गठन की घोषणा परेड ग्राउंड मैदान में होनी है और इसके लिए कार्यक्रम होगा जिसमें लालू यादव जनता को संबोधित करेंगे। इसकी जानकारी लोगों को मिली। शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय (डायट तरार) के एक भवन में अनुमंडल कार्यालय अस्थाई तौर पर शुरू किया जाना है। इधर अनुमंडल कार्यालय कहां खोला जाए, इसे लेकर आंदोलन शुरू हुआ। अनुमण्डल कार्यालय नहर के पूर्व दिशा में भखरुआं बनेगा कि पश्चिम बाजार में। इसे लेकर विवाद शुरू हुआ। शहर वालों ने जब आन्दोलन छेड़ा तो तत्कालीन मंत्री रामबिलास सिंह ने कहा कि जगह का अभाव है। तब डा.राय (ह्वाइट हाउस), शांति निकेतन (पुराना शहर) तथा खुर्शीद खान के मकान दिखाये गये। उधर बारहगांवा का दबाव तत्कालीन मंत्री पर था कि अनुमण्डल भखरूआं ही बने। शहरियों का तब नारा था- ‘माड़-भात खायेगें, अनुमण्डल यहीं बनायेगें।’ देवरारायण यादव की अध्यक्षता में आईबी में बैठक की गयी। इस संवाददाता से बताया था कि तत्कालीन मंत्री श्री सिंह ने कहा- ‘क्या करें? इस उंगली को काटो तो उतना ही दर्द होगा, जितना उसको काटने से।’ यानी वे द्वंद्ध झेल रहे थे। 

इस आंदोलन में शामिल नगर परिषद के पूर्व मुख्य पार्षद परमानंद प्रसाद बताते हैं कि डा. बी के प्रसाद के घर पर बैठक हुई। उनके साथ प्रहलाद पांडेय शामिल हुए और यह विचार बना कि अगर भखरुआं अनुमंडल कार्यालय खुलता है तो बाजार वीरान हो जाएगा। इसके बाद लोगों को गोलबंद करने की सलाह उन्होंने दी। कार्यक्रम से पहले रामविलास सिंह को आना था। नहर पुल पर उनके घेराव की योजना बनी। काफी लोग जुटे। बताया कि अभूतपूर्व शहर बंदी थी। शिव शंकर सिंह (नगर पालिका के अध्यक्ष) के अलावा मनौवर हुसैन, संजय सिंह इस आंदोलन में शामिल हुए। नहरपुल पर श्री सिंह को शहर में आने से रोक दिया गया। सड़क पर कई नेता लेट गए। तत्कालीन मंत्री श्री सिंह ने कहा कि- ई क्या कर रहा है अब तू परमानंद। परमानंद ने कहा कि- शहर वीरान हो जाएगा। देहात में नहीं ले जाइए। इस बीच लोग नारेबाजी करते रहे। किसी ने रोड़ेबाजी शुरू कर दी। मंत्री जी का काफिला वापस लौट गया। इसके बाद वह सिपहां से घूम कर मौला बाग सिंचाई विभाग के आईबी में पहुंचे। वहां शिष्टमंडल मिलने के लिए बुलाया गया। जब शिष्टमंडल से उन्होंने बात की तो लोग शांत हुए और अंततः शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय में अनुमण्डल कार्यालय अस्थाई तौर पर शुरू हुआ। प्रशासनिक इकाई के तौर पर यहां अनुमण्डल कार्य करना शुरू कर दिया। संघर्ष खत्म हो गये। 


 कौन थे रामविलास सिंह 


स्व.राम बिलास सिंह 1967, 1972, 1977, 1985 और 1990 में विधायक बने। वह दाउदनगर हसपुरा और दाऊद नगर ओबरा विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे। तीन बार मंत्री बने। वे समाजवादी नेता रहे। उन्होंने इस संवाददाता से 11 अप्रैल 2009 को बातचीत में बताया था कि अपना पहला चुनाव मात्र 3000 रुपये में लड़े थे और 1990 के चुनाव में मात्र छः से सात हजार रुपये खर्च कर विधायक बने थे।


Saturday, 29 March 2025

1990 के दशक में बना दाउदनगर अनुमंडल संघर्ष समिति

 अनुमंडल के 34 वर्ष -03




रफीगंज और नबीनगर भी अनुमंडल बनने की होड़ में शामिल

गैर सरकारी संकल्प में उठाया था रामबिलास सिंह ने मुद्दा

दिया था आंकड़ों के साथ मजबूत तर्क

उपेन्द्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : 1990 के दशक में रामबिलास सिंह की अध्यक्षता में ‘अनुमण्डल संघर्ष समिति’ का गठन किया गया था। उसके बाद इसकी काट में विरोधी जमातों ने भी अपनी अपनी राजनीति शुरु की। रामविलास सिंह ने इस संवाददाता को बताया था कि रफीगंज के लिए सत्येन्द्र नारायण सिन्हा (पूर्व मुख्यमंत्री) के करीबी विधायक डा. विजय सिंह सक्रिय थे तो नबीनगर के लिए विधायक रघुवंश प्रसाद सिंह। ये तीनों कांग्रेसी थे और सत्ता भी इसी पार्टी की थी। इनकी राजनीतिक लौबियां काफी मजबूत थीं। सत्येन्द्र नारायण सिन्हा स्वयं सन 1989 में मार्च से दिसम्बर तक मुख्यमंत्री रहे हैं। लेकिन नवीनगर और रफीगंज दोनों की कुछ कमजोरियां थी। रफीगंज का अनुमण्डल बनना मदनपुर के लोगों को स्वीकार्य नहीं था, भौगोलिक कारण सहित कई कारण थे। नवीनगर मुख्य पथ से जुड़ा हुआ नहीं था। इस कमजोर कडी के बावजूद लेकिन कोशिशें जारी रहीं, मकसद वही था कि इस बहाने किसी एक को अनुमंडल बनाने का अवसर अधिक हो। अपने निधन से पूर्व तत्कालीन मंत्री रामविलास सिंह ने अनुमंडल बनाने की चली राजनीति पर कई घंटे इस संवाददाता से बात किया था। इस वार्ता में बताये तथ्यों एवं घटनाओं के अनुसार तब सदन में प्रत्येक शुक्रवार को ‘गैर सरकारी संकल्प’ लाया जाता था। विधायक रामबिलास सिंह ने सदन में दाउदनगर अनुमण्डल बनाये जाने का प्रस्ताव लाया और आंकड़ों के साथ तर्क दिया। इसी सदन में डा. विजय सिंह एवं रघुवंश सिंह ने क्रमश: रफीगंज एवं नवीनगर को अनुमण्डल बनाये जाने का प्रस्ताव रखा। तब लोकदल से विधायक बने रामबिलास सिंह ने सदन में कहा था- ‘मैं रफीगंज या नवीनगर को अनुमण्डल बनाये जाने का विरोधी नहीं हूं, मैं चाहता हूं कि दाउदनगर अनुमण्डल बने। बेहतर होगा तीनों क्षेत्रों की तुलना की जाये और जो सारी अहर्ता पूरी करता हो उसे अनुमण्डल बना दिया जाये।’ सदन के अध्यक्ष ने व्यवस्था दी की- ‘सरकार विचार करेगी।’ मामला फिर लटक गया। 


सामाजिक न्याय की सरकार बनी तो घोषणा

बिहार में तब सामाजिक परिवर्तन की लड़ाइयां लड़ी जा रही थी। कांग्रेस की सत्ता के विरुद्ध लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में बिहार में सामाजिक समीकरण की राजनीति की जा रही थी। इस बीच वर्ष 1990 में बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ और सत्ता का स्वरूप बदल गया। सामाजिक बदलाव का नारा बुलंद करने वाले लालू प्रसाद को मुख्यमंत्री बनाया गया। जातीय, राजनीतिक समीकरण प्रभावित हुए तो स्वभावतः सत्ता का भीतरी चेहरा भी प्रभावित हुआ। सत्ता के गलियारे में नयी जमात का प्रभाव बढ़ना शुरू हुआ। तब सरकार के एक आयुक्त (कोइ श्रीवास्तव-रामविलास बाबु को याद नहीं) ने रामबिलास सिंह को बताया कि अनुमण्डल गठन की बात चल रही है, सूची तैयार है और उसमें दाउदनगर का नाम भी है। फिर वे सक्रिय हुए।


और इस तरह हुई घोषणा

फिर 31 मार्च 1991 को शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय परिसर (परेड ग्राउंड) में मगध प्रमंडल के तत्कालीन आयुक्त ने राज्यपाल द्वारा जारी अधिसूचना माइक पर पढ़कर यह जानकारी दी कि आज से दाउदनगर अनुमंडल का गठन किया जाता है। सभा स्थल पर तालियों की गूंज सुनाई पड़ने लगी। इसके बाद विधिवत उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने किया और बतौर क्षेत्रीय विधायक एवं कारा सहायक पुर्नवास मंत्री रामबिलास सिंह इस समारोह में उपस्थित रहे। अनुमंडल कार्यालय परेड ग्राउंड के पास तरार में  शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय के एक भवन में प्रारंभ हुआ।


Thursday, 27 March 2025

अनुमंडल गठन की राजनीति में शामिल हुए थे कर्पूरी ठाकुर

 अनुमंडल के 34 वर्ष -02




बैठक में शामिल हुए थे जगरनाथ मिश्रा, ठाकुर मुनेश्वर सिंह, मगध विवि के वीसी 

1989 में हुआ था बालिका इंटर विद्यालय में बड़ा समारोह

उपेन्द्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : दाउदनगर को अनुमंडल बनाने को लेकर लंबे संघर्ष का दौर चला था। एक वक्त ऐसा भी आया जब उसमें कर्पूरी ठाकुर और जगन्नाथ मिश्रा जैसे बड़े लोग शामिल हुए। वर्ष 1977 के विधानसभा चुनाव के बाद दाउदनगर को अनुमंडल बनाने की मांग वाले आन्दोलन में ठहराव आ गया था। चुनाव खत्म और राजनीति खत्म की प्रवृति तब भी दिखती है। यह कोई नई बिमारी नहीं है। जैसा आज दिखता है वैसा ही पहले भी होता था। खैर..। ठहराव के बाद गति का आना नीयति भी है। पूर्व जिला पार्षद राजीव रंजन सिंह की मानें तो 1980 के विधानसभा चुनाव के बाद इस ठहराव को गति दी गयी। 1980 के विधान सभा चुनाव में वे लोकदल से ओबरा विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी थे। 1981 में सर्किट हाउस में एक बैठक की गयी। तब जननायक कर्पूरी ठाकुर बतौर विरोधी दल के नेता बैठक में उपस्थित हुए थे। तब उनसे कहा गया था कि इसे अनुमंडल बनाने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल करें। उत्कर्ष (वर्ष 2007) के अनुसार राजीव रंजन सिंह (बाद में जिला पार्षद बने) ने जून 1989 में भी एक बड़ा समारोह कन्या उच्च विद्यालय दाउदनगर के परिसर में आयोजित किया था। इसमें पूर्व विधायक ठाकुर मुनेश्वर सिंह, मगध विश्वविद्यालय के वीसी हरगोविंद सिंह और संभवतः तब कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष (बाद में मुख्यमंत्री बने) जगन्नाथ मिश्रा उपस्थित हुए। राजीव रंजन सिंह ने तब कहा था- राजनीतिक नेतृत्व की कमजोरी की वजह से दाउदनगर अनुमण्डल नहीं बना और औरंगाबाद जिला बन गया। श्री मिश्रा (अब स्वर्गीय) ने तब साकारात्मक आश्वासन दिया था। राजीव रंजन सिंह बताते हैं कि गर्ल्स हाई स्कूल वाली बैठक में जगन्नाथ मिश्रा जब आए तो उनके करीबी होने के कारण मगध विश्वविद्यालय के वीसी शामिल हुए, जबकि विधायक होने के कारण ठाकुर मुनेश्वर सिंह भी इसमें शामिल हुए। बाद में धीरे-धीरे सभी दल के लोग सहयोग करने लगे। तब रामविलास सिंह जनता पार्टी बसावन गुट के नेता थे। तब सीपीआई के नेता व अधिवक्ता मुखलाल सिंह (अब स्वर्गीय) ने भी साथ दिया था। 


शहर और औद्योगिक क्षेत्र होना महत्वपूर्ण 

पूर्व जिला पार्षद राजीव रंजन सिंह बताते हैं कि तमाम बड़े नेताओं को यह तर्क दिया गया कि दाउदनगर जिले का सबसे पुराना शहर है। 1885 का यह नगर पालिका है। जब कोई सोच भी नहीं सकता था कि इस इलाके में कोई नगर पालिका बन सकता है, तब यह नगर पालिका बना था। यह औद्योगिक क्षेत्र भी था। तब पीतल और कांसा के बर्तन यहां बनते थे। इसके अलावा कपड़े की बुनाई का भी काम होता था। यह सब दाउदनगर को अनुमंडल बनाने के लिए मजबूत पक्ष थे, जिसने नेताओं को प्रभावित किया।


Wednesday, 26 March 2025

1980 के दशक में भूगोल तय कर उठी अनुमंडल बनाने की मांग

 अनुमंडल के 34 वर्ष -01



दो मंत्रियों को रामविलास सिंह ने दिया था अनुमंडल बनाने का तर्क

नारायण सिंह और राम विलास सिंह की राजनीति अलग अलग

1977 के चुनाव में क्षेत्र का स्वरूप ही बदल गया

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : 

दाउदनगर 31 मार्च 1991 को अनुमंडल बना था। लेकिन यूं ही नहीं, बल्कि इसके लिए लंबे समय तक संघर्ष करना पड़ा था। तब की राजनीति आज की अपेक्षा कम जटिल नहीं थी। चार दशक में कई पीढ़ियां जवान हो जाती हैं और तब के आंदोलन में शामिल पीढ़ी में काफी लोग संवाद के लिए उपलब्ध नहीं रह जाते। आज जब 34 वर्ष अनुमंडल गठन के हो गए तो यह जानना भी दिलचस्प होगा कि अनुमंडल गठन के लिए राजनीति की दिशा और दशा आज के लगभग चार दशक पूर्व कैसी रही थी। 

जब औरंगाबाद को गया से अलग कर जिला बनाने के लिए जमीन पर रेखाएं खींची जा रही थी तब ओबरा (241), दाउदनगर (240) अलग-अलग विधानसभा क्षेत्र हुआ करता था। यह तब जहानाबाद लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा था। ओबरा के साथ बारुण, दाऊदनगर के साथ हसपुरा प्रखंड जुड़ा था, जबकि गोह टेकारी विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा था। यह भौगोलिक राजनीतिक स्थिति 1972 तक रही। इसके बाद परिसीमन के कारण क्षेत्र के भूगोल में परिवर्तन हुआ। इसी वर्ष दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र से जीते रामबिलास सिंह और ओबरा से नारायण सिंह। ये वही नारायण सिंह हैं जो बारुण निवासी केशव सिंह के बड़े पुत्र थे। इन्हीं के छोटे भाई थे देव नंदन सिंह उर्फ देवा सिंह जिनकी काफी प्रतिष्ठा बारुण क्षेत्र में अब भी है। नारायण सिंह ने ओबरा-बारुण विधानसभा क्षेत्र के साथ दाउदनगर प्रखंड को मिला कर नए विधान सभा क्षेत्र निर्माण कराने की कवायद शुरू की। ध्यान रहे तब भी दाउदनगर का ओबरा व बारुण की अपेक्षाकृत अधिक शहरीकरण हो चुका था। वैसे भी वर्ष 1885 में ही दाउदनगर नगरपालिका बन चुका था। देवा सिंह के पुत्र सुनील यादव जो ओबरा से वर्ष 2020 में जदयू से चुनाव लड़ चुके हैं, उन्होंने इसका कारण पूछने पर बताया कि पीढ़ियों का प्रभाव है। उसी प्रभाव वाले क्षेत्र के विस्तार की सोच बड़े पिता जी की रही थी। इधर इसकी काट के लिए रामबिलास सिंह ने दाउदनगर, हसपुरा, ओबरा एवं गोह प्रखंडों को मिलाकर अनुमंडल बनाने की चर्चा प्रचार में लाया। दोनों अपनी राजनीतिक जरूरतें पूरी करने में लगे थे। इसी समय जिला पुनर्गठन समिति का गठन दारोगा प्रसाद राय की अध्यक्षता में किया गया। श्री राय बाद में मुख्यमंत्री बने। रामबिलास सिंह (अब स्वर्गीय) ने इस पत्रकार से (वर्ष 2006 में) अपने इस प्रयास पर लंबी बातचीत की थी। राजस्व मंत्री चंद्रशेखर सिंह तथा मंत्री लहटन चौधरी के साथ जाकर श्री राय से मिले और आंकड़ों के साथ दाउदनगर को अनुमंडल बनाने का तर्क दिया। बातचीत में श्री सिंह ने यह भी कह दिया कि- ‘औरंगाबाद को जिला तथा दाउदनगर को अनुमंडल बना दिया जाए।’ तब श्री राय ने टिप्पणी की - ‘जिला बने से ऊ लोग के राज हो जाई।’ तब पुन: श्री सिंह ने कहा- ‘हम इसलिए प्रयासरत हैं कि दाउदनगर अनुमंडल बन जाए।’ जब जिला गठन की प्रक्रिया पूरी हो रही थी उसी समय दाउदनगर अनुमंडल गठन का प्रस्ताव तैयार हो गया था। सिर्फ अधिसूचना जारी होनी शेष थी। लेकिन मामला लटक गया। सिर्फ 23 जनवरी 1973 को औरंगाबाद जिला गठन की औपचारिकता पूरी कर ली गयी। 


इच्छा पूरी नहीं, आंदोलन में ठहराव

इसके बाद 1977 के चुनाव में विधानसभा क्षेत्रों का वजूद बदल गया। दाऊदनगर-ओबरा तथा गोह-हसपुरा विधानसभा क्षेत्र बना और टेकारी तथा बारूण इससे अलग हो गए। यानी इस समय रामबिलास सिंह और नारायण सिंह दोनों अपनी इच्छा पूरी नहीं कर सके। अनुमंडल बनाने की मांग वाले आंदोलन में ठहराव आ गया। कितनों के सपने पर पानी फिर गया। 


Monday, 24 March 2025

कई भवनों के निर्माण से शहर के विकास को मिलेगी गति

 बदलता शहर




व्यवहार न्यायालय परिसर में ही बन रहे तीन भवन 

अग्नि शमन विभाग का अग्निशामालय भवन तैयार 

नगर भवन के पास बना जिला परिषद का अतिथिगृह 

30 करोड रुपये से अधिक हो रहे हैं भवन निर्माण पर खर्च

 उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : अनुमंडल मुख्यालय में भवन निर्माण की लंबी सूची है। लगभग 30 करोड रुपये से अधिक की राशि पांच भवनों के निर्माण पर खर्च हो रही है। इसके अलावा भी कई भवन निर्माण की उम्मीद है। इन भवनों के निर्माण से न्यायिक और प्रशासनिक के साथ अन्य क्षेत्र में मजबूती प्राप्त होगी। एनएच 120 पर बुधन बिगहा के पास स्थित शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय के जर्जर भवन में अनुमंडल कार्यालय आरंभ हुआ था। अनुमंडल कार्यालय 31 मार्च 1991 से लेकर 2006 तक जर्जर भवन में ही चला। वर्ष 2006 में वर्तमान भवन बना और यहां अनुमंडल कार्यालय शिफ्ट हुआ। इसके बावजूद यहां अनुमंडल स्तरीय टाउनशिप के लिए कई भवनों की जरूरत महसूस की जा रही थी। अनुमंडल कार्यालय और व्यवहार न्यायालय परिसर में तीन भवन का निर्माण हो रहा है। लगभग 77 लाख रुपये की लागत से वकीलों के बैठने के लिए हाल का निर्माण हो रहा है। वहीं लगभग 18 करोड रुपये की लागत से 10 न्यायालय के लिए भवन का निर्माण किया जा रहा है। यहां रहने वाले न्यायिक पदाधिकारी और दंडाधिकारियों के लिए आवास का निर्माण किया जा रहा है। जिस पर लगभग नौ करोड रुपये खर्च हो रहे हैं। इन भवनों के निर्माण से न्यायिक व्यवस्था दुरुस्त होगी। न्यायालय जब अधिक संख्या में प्रारंभ होंगे तो प्रशासनिक व्यवस्था में काफी सुधार होगा। इसके अलावा शहर में मौला बाग स्थित नगर भवन के बगल में जिला परिषद द्वारा अतिथि गृह का निर्माण किया गया है। जिस पर लगभग एक करोड रुपये खर्च हुआ है। इसी तरह प्रखंड सह अंचल कार्यालय परिसर से अनुमंडल अस्पताल जाने वाले रास्ते में अग्नि शमन विभाग का अग्निशामालय भवन बना है। जिस पर दो करोड़ 29 लाख रुपये से अधिक की राशि खर्च की गई है।



न्यायिक व्यवस्था होगी बेहतर उपलब्ध 

फोटो- धर्मेंद्र सिंह

विधिज्ञ संघ दाउदनगर के महासचिव धर्मेंद्र सिंह कहते हैं कि तीनों भवन लगभग बनकर तैयार हो गए हैं। जब यहां न्यायालय का आरंभ होगा, जजों के बैठने की व्यवस्था होगी, वकीलों को बैठने के लिए बेहतर सुविधा उपलब्ध होगी तो स्वाभाविक है कि न्यायिक व्यवस्था काफी मजबूत होगी। वकीलों के बैठने के लिए जिस भवन का निर्माण किया गया है उसमें आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराई गई है। पेयजल, शौचालय के साथ वातानुकूलित कमरे की व्यवस्था की गई है।



अतिथि गृह निर्माण से होंगे कई लाभ फोटो- शैलेश यादव 

जिला परिषद अध्यक्ष प्रमिला देवी के प्रतिनिधि शैलेश यादव ने कहा कि जिला परिषद द्वारा अतिथिगृह का निर्माण काफी बेहतर तरीके से कराया गया है। निर्माण के बाद यहां आने वाले प्रशासनिक और राजनीतिक अतिथियों को रहने की बेहतर सुविधा उपलब्ध हो सकेगी। जिससे काफी सुविधा प्राप्त हो सकेगी।





विकास के दावों के बीच शौचालय की तड़प

बदलता शहर



भखरुआं में यात्रियों के लिए सिर्फ खुले में शौच का विकल्प 

शहर में चार शौचालय का संचालन कर रही नगर परिषद

जिला परिषद द्वारा निर्मित शौचालय शुरू नहीं

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : विकास के काफी काम हो रहे हैं। तमाम प्रकार के दावे और प्रति दावे किए जाते हैं। इस बीच एक हकीकत यह भी है कि आज भी शौच के लिए संसाधन की उपलब्धता अपर्याप्त है। भखरुआं नगर परिषद का हिस्सा नहीं है लेकिन शहर का सबसे व्यस्त इलाका है। शहर से बाहर कहीं भी जाना हो या आना हो यह एक आवश्यक पड़ाव है। यहां चौराहा है। दो एनएच क्रमशः 139 पटना औरंगाबाद और 120 बिहार शरीफ से डुमरांव एक दूसरे को काटती है और चौराहे का निर्माण होता है। यहां से प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में ही नहीं बल्कि सीमावर्ती झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल समेत कई प्रदेश के लिए भी सवारी वाहन गुजरते हैं। कहीं से भी आने-जाने के लिए यहां आना आवश्यक होता है। लेकिन अगर यात्रियों को शौच लग जाए तो खुले में जाने के अलावा कोई विकल्प उनके पास मौजूद नहीं है। यहां तक कि मूत्र त्याग करना भी मुश्किल का काम है। या तो आप खुले में करें या फिर नहर पर जाना पड़ेगा। कोई शौचालय उपलब्ध नहीं है। स्थानीय प्रशासन द्वारा कई बार इसकी कोशिश की गई लेकिन सफलता नहीं मिली। पूर्व में बाजार रोड में शौचालय का निर्माण किया भी गया था। उसकी उपयोगिता नहीं रह गई नतीजा उसे ध्वस्त कर हटा दिया गया। भखरुआं में जिला परिषद द्वारा तीन शौचालय बनाया गया और कोई शुरू तक न हो सका है। अगर नगर परिषद क्षेत्र में आए तो यहां शौचालय की संख्या चार है, जिसे सुलभ शौचालय से समझौता कर नगर परिषद संचालित कर रहा है। लेकिन यह अभी पर्याप्त नहीं है। नगर परिषद द्वारा संचालित शौचालय स्वयं उसके कार्यालय परिसर में, नगर पालिका या पुराना मछली मार्केट में, चूड़ी बाजार और मौला बाग मोड पर है। इन्हें सुलभ शौचालय के माध्यम से चलाया जा रहा है जिन पर एक लाख रुपये प्रति माह का खर्च है। इसके अलावा अनुमंडल कार्यालय के पास एक पुराना जर्जर शौचालय है। यह बर्बाद है। प्रखंड कार्यालय परिसर में भी स्थित शौचालय गंदा रहता है।




शौचालय संचालन की बड़ी चुनौती 

फोटो- प्रमिला कुमारी 

जिला परिषद सदस्य प्रमिला कुमारी कहती हैं कि उन्होंने अनुमंडल कार्यालय परिसर में महिला और पुरुष के लिए अलग-अलग दो शौचालय बनवाया। इसके अलावा के लाला अमौना के पास गया रोड में। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती इसके संचालन की है। आखिर संचालन कौन और कैसे करेगा यह तो सरकार को तय करना है। जब शौचालय का संचालन होगा तो विद्युत बिल आएगा, उसके संचालन के लिए मानव बल चाहिए, उसका भुगतान कौन करेगा। यह सब सरकार को तय करना है।



बनाएं जाएंगे और यूरिनल

फोटो-अंजली कुमारी

मुख्य पार्षद अंजली कुमारी ने बताया कि शहर में यूरिनल की कमी महसूस की जा रही है। स्थल चयन किया जा रहा है। जगह उपलब्ध होते ही कई यूरिनल का निर्माण करा दिया जाएगा। लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरुक होने की जरूरत है। यह काम दीवाल लेखन, नुक्कड़ नाटक के माध्यम से जागरूक किया जा रहा है। 




पिंक शौचालय सिर्फ कल्पना भर फोटो- ऋषिकेश अवस्थी

 नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी ऋषिकेश अवस्थी से जब यह पूछा कि पिक शौचालय नगर परिषद में क्यों नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि जो शौचालय बने हैं उनमें से चूड़ी बाजार स्थित शौचालय को पिक शौचालय में बदला जा सकता है। लेकिन समस्या यह है कि उसका संचालन कैसे होगा। जब पिंक शौचालय होगा तो उसके संचालन की जिम्मेदारी महिलाओं के पास होगी। ऐसे में पुरुष की वहां आवाजाही सहज नहीं रह जाएगी। कई तरह की समस्या खड़ी हो सकती है।



प्रतिदिन 100 व्यक्ति करते हैं इस्तेमाल 

चूड़ी बाजार शौचालय के संचालक प्रदीप कुमार बताते हैं कि प्रतिदिन लगभग 100 आदमी आते हैं। इनमें से कुछ शौचालय तो कुछ मूत्रालय का इस्तेमाल करते हैं। कुछ लोग स्नान भी करते हैं। कुछ लोग कुछ रुपये दे देते हैं। प्राय: लोग नहीं देते हैं। सुलभ शौचालय और नगर परिषद ने उन्हें रखा है और यही से उन्हें भुगतान होता है।


Tuesday, 4 March 2025

शहर की बेहतरी के लिए व्यवस्थित ड्रेनेज सिस्टम आवश्यक

 बदलता शहर 22



बड़े नालों का हो रहा निर्माण, लेकिन सहज बहाव जरूरी

बरसात के दिनों में जल जमाव बड़ी समस्या

साढ़े सात करोड़ रुपये से बन रही है 14 योजनाएं

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : 17वीं सदी का शहर बदल रहा है। बीते ढाई दशक से तेज गति से विकास के काम हो रहे हैं। घरों का निर्माण हो रहा है। आवासीय क्षेत्र का विस्तार हो रहा है, लेकिन साथ-साथ बड़ी समस्या यह आ रही है कि नालियां असफल साबित हो रही है। उनका निर्माण बेतरतीब हुआ है। नालियों का बहाव सहज नहीं है। नालियों के निर्माण में ही गड़बड़ी हुई है। कहीं सतह ऊंची है तो कहीं नीचे है। नतीजा बहाव सहज नहीं है। जल जमाव बरसात के दिनों में शहर के लिए बड़ी समस्या बन गई है। जल जमाव की समस्या से मुक्ति कैसे हो इसकी चिंता लगातार की जा रही है। जब परमानंद प्रसाद यहां के मुख्य पार्षद हुआ करते थे तब शहर को लेकर एक बड़ी योजना ड्रेनेज सिस्टम ठीक करने के लिए बनाई गई थी। लेकिन उसे पर अमल न हो सका। अब बरसात में शहर जल जमाव से मुक्त हो सके इसके लिए बड़े स्तर पर योजनाबद्ध तरीके से काम करने की जरूरत है। अन्यथा तमाम विकास के बावजूद शहर चलने लायक भी कई हिस्सों में नहीं रह सकेगा। नाला व सड़क निर्माण की 14 योजनाएं इससे संबंधित शहर में चल रही हैं, जिन पर लगभग साढ़े सात करोड़ रुपये खर्च होना है।


निर्माण की तीन योजनाएं पूर्ण, नहीं होगा जल जमाव

मुख्य पार्षद अंजली कुमारी ने बताया कि शहर में नाली और सड़क की 14 योजनाएं ली गई हैं। निर्माण का काम प्रारंभ है। तीन योजनाएं पूर्ण कर ली गई है, जबकि नौ योजनाओं का काम चल रहा है। मुख्यमंत्री समग्र शहरी योजना से भी दो बड़े नालों का निर्माण होना है। इस पर भी शीघ्र ही काम शुरू होगा। नगर परिषद के पास नालों की सफाई के लिए सुपर सकर मशीन भी उपलब्ध है। जहां मशीनों का इस्तेमाल नहीं होता वहां मजदूरों से काम लिया जाता है।



बरसात से पहले होगी नालों की उड़ाही 

कार्यपालक पदाधिकारी ऋषिकेश अवस्थी ने बताया कि जल जमाव की समस्या से निपटने के लिए नगर परिषद नालों की उड़ही करवाता है। इसके लिए 20 मजदूरों की अलग टीम बनाई गई है। जिससे नगर परिषद काम लेता है। इसमें एनजीओ की कोई भूमिका नहीं होती है। बरसात से पहले अप्रैल के महीने में ही नालियों की उड़ाही का काम शुरू कर दिया जाएगा, ताकि इस बार बरसात में जल जमाव की समस्या ना हो। कई स्थान ऐसे हैं जहां अब जल जमाव की समस्या खत्म हुई है या काफी कम हुई है।



दो बड़े नालों का होना है निर्माण


 मुख्यमंत्री समग्र शहरी योजना के तहत दो बड़े नालों का निर्माण का काम होना है। दोनों नाले पर लगभग दो करोड रुपये खर्च होना है। यह बुडको द्वारा बनाया जाना है। बताया गया कि इमामबाड़ा कब्रिस्तान से जाट टोली होते हुए बारुण रोड तक और दूसरा पुरानी शहर में रामविलास बाबू चौक से बड़ी मस्जिद व मिथिलेश प्रसाद के घर तक निर्माण होना है। इसके निर्माण के बाद पुरानी शहर में भी जल जमाव की समस्या खत्म हो जाएगी।


ढिबरी और लालटेन युग से बाहर निकल रोशनी से जगमगाया शहर

 बदलता शहर 21



बिजली आती थी तो चौंक जाते थे शहर के लोग 

जब तक रिमोट संभालते गुल जो जाती थी बिजली 

आज शहर की गलियां तक हो गई हैं रोशन 

बिद्युत आपूर्ति को ले अब आंदोलन नहीं, तुरंत लगता ट्रांसफार्मर

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : कभी शहर में ढिबरी और लालटेन जलते थे। मामबत्तियां घर की रोशन हुआ करती थी। जब बिजली की आपूर्ति होती थी तो लोग चौंक जाते थे। ‘अरे बिजली आ गलऊ’ यह यहां के लोगों का तकिया कलाम हो गया था। बात पूरी भी नहीं होती थी कि - अरे कट गलऊ लाइन- यही भाव यहां के जनमानस का सामूहिक वक्तव्य हुआ करता था। धीरे-धीरे कर परिस्थितियां बदलती चली गई। शहर में 60 के दशक में विद्युतीकरण हुआ था। बिहार के आम शहरों की तरह यहां भी विद्युत आपूर्ति का हाल बड़ा बेहाल हुआ करता था। विद्युत आपूर्ति के लिए आंदोलन करने पड़ते थे। आंदोलनकारी के खिलाफ प्राथमिकी भी हुई। तोड़फोड़ की घटनाएं भी हुई। अगर कहीं ट्रांसफार्मर जल जाए तो उसे बदलवाना बहुत बड़ी चुनौती होती थी। जले हुए ट्रांसफार्मर के लाभुक लोग आपस में चंदा वसूलते थे। राजनीतिक पैरवी करते थे। तब जाकर पांच से सात दिन में ट्रांसफार्मर बदलता था। अब हालात ऐसे बदल गए कि बिजली आपूर्ति की स्थिति लगभग ठीक है और ट्रांसफार्मर जलने पर 24 से 36 घंटे के अंदर निश्चित रूप से बदल दिया जाता है। इधर नगर पालिका नगर पंचायत से नगर परिषद तक का सफर पूरा किया और शहर में स्ट्रीट लाइट लगाई जानी शुरू हुई। सबसे पहले शहर में जब यमुना प्रसाद स्वर्णकार 1970-80 के दशक में यहां के अध्यक्ष हुआ करते थे तब विद्युत खंभों पर स्ट्रीट लाइट लगाई गई थी। तब नगर पालिका द्वारा बिजली मिस्त्री बहाल किया गया था। इससे पहले लैंप पोस्ट हुआ करते थे। इसके बाद जब नगर निकायों के चुनाव प्रारंभ हुए तो पुन: शहर में स्ट्रीट लाइट लगनी शुरू हुई। आज शहर में रोशनी की इतनी व्यवस्था कर दी गई है की शहर जगमग और चकाचक हो गया है। मुख्य पार्षद अंजली कुमारी बताती हैं कि तिरंगा लाइट 175 पोल पर लगाया गया है। लगभग साढ़े चार लाख रुपये खर्च हुआ है। दूसरे फेज में पुरानी शहर और बारुण रोड में लगाया जाना है। वित्तीय वर्ष 2025-26 में यह लगाया जाना है।


कभी लैंप पोस्ट में किरोसिन भरते थे कर्मी

अवधेश पांडेय बताते हैं कि पहले नगरपालिका लैंप पोस्ट पर रोशनी रहे इसके लिए किरोसीन भरने के लिए कर्मी रखा हुआ था। पांडेय टोली अब वार्ड नंबर 11, मल्लाह टोली गंज वार्ड नंबर 10 का उनको याद है जब लैंप पोस्ट जलता था। टैक्स दरोगा जगदीश शर्मा नगरपालिका कर्मचारी थे। इनके द्वारा लैंप में किरासन तेल डालकर निर्धारित समय पर लैंप पोस्ट पर रखवाते थे। उस समय के लोग कहते थे कि हम लोग शाम होते लैंप पोस्ट के पास बोरा लेकर पढ़ने बैठ जाते थे।

शहर को रौशन करना उद्देश्य

मुख्य पार्षद अंजली कुमारी ने बताया कि शहर को रोशन करना उद्देश्य है। जहां भी आवश्यक है स्ट्रीट लाइटें लगाई गई। मरम्मत की जा रही है। हाई मास्ट लाइट लगाने की योजना है। शहर खूबसूरत और जगमग दिखे इसके लिए तिरंगा लाइट लगाया गया।


व्यावसायिक गतिविधियों के साथ शहर का बदला स्वरूप

 बदलता शहर 20




ब्रांडों की फ्रेंचाइजी से शहर की बदली रौनक 

इनपुट और आउटपुट के साथ बदल गया शहर का आउटलुक 

शहर में खुले कई माल, शोरूम और फ्रेंचाइजी



उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : चट्टी में मशहूर दाउदनगर 1885 में नगर पालिका बना लेकिन विकास धीमी गति से आगे की ओर बढ़ती रही। आज स्थिति यह है कि बीते दो दशक में पूरा शहरी आउट लुक प्राप्त कर लिया है। इसके पीछे अगर कारण देखें तो बाजार का विस्तार होना, दुकानों की संख्या बढ़ना, दुकानों का रंग रूप में बदलाव आना और नई पीढ़ी के दुकानदारों की सोच आधुनिक होना महत्वपूर्ण कारण है। कभी लखन मोड़ से लेकर शुक बाजार तक ही दुकान थी। बजाजा रोड रोड और दुर्गा पथ ज्वेलरी व बर्तन के साथ कपड़े की दुकानों के लिए मशहूर हुआ। कसेरा टोली पथ में भी दुकान थी। लेकिन आज स्थिति है कि लखन मोड़ से लेकर जगन मोड तक दुकान भर गई। मौलाबाग से पुरानी शहर चौक तक, मौला बाग में दुकानों की संख्या बढ़ गई। मौला बाग से पासवान चौक तक पचकठवा मन्दिर होकर जाने वाली सड़क पर भी कई दुकानें खुल गई। दुकानों का विस्तार लखन मोड़ से भखरुआं तक हुआ है। दाउदनगर - बारुण रोड पर भी पासवान चौक से लेकर पीराही बाग तक दुकान खुल गई। इन क्षेत्रों में बैंक्विट हाल शादी विवाह या उत्सव का आयोजन करने के लिए खुले। होटल, माल और प्रतिष्ठित व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की फ्रेंचाइजी भी शहर में आई। नतीजा शहर का पूरा आउट लुक बदल गया। अब यह ट्रेंड यहां भी हावी हो रहा है कि जन्मदिन और विवाह के वर्षगांठ से लेकर शादी विवाह तक होटल के हाल में हो रहे हैं, या बड़े-बड़े होटल बुक किये जा रहे हैं। यहां होटल व्यवसाय भी बड़े पैमाने पर उभरा है। शहरी क्षेत्र और भखरुआं को अगर मिला लें तो अब प्रायः सभी मार्गो में कोई ना कोई बढ़िया होटल खुल गया है। जहां खाने पीने के साथ उत्सव मनाने की सुविधा उपलब्ध है। कपड़ा, ज्वेलरी, एफएमजी वस्तुओं समेत तमाम प्रकार के जीवन उपयोगी सामग्रियों के माल यहां खुल गए हैं। फ्रेंचाइजी हैं। अब 200 रुपये तक में दाढ़ी बनने लगे हैं, शहर में तो समझा जा सकता है कि शहर का स्वरूप कितना बदला है। आउटलुक अगर बदला है तो इनपुट और आउटपुट की उसमें बड़ी भूमिका रही है। 



गद्दी से उठकर काउंटर बनाने लगे दुकानदार 


ज्वेलरी व्यवसाय एक ऐसा क्षेत्र है जो बाजार की अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा मानक होता है। शहर में जो ज्वेलरी की दुकान होती थी वह सभी गद्दी बनाकर रखते थे। यानी जेवर आप खरीदने जा रहे हैं तो पालथी मार कर बैठकर पसंद करें। इससे जमींदारी ठाट का अनुभव होता है। अब शहर में लगभग आधा दर्जन ऐसे ज्वेलरी दुकान हैं जो गद्दी नहीं बल्कि काउंटर बनाकर चला रहे हैं। स्वर्णकार आभूषण व्यावसायिक संघ के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद सर्राफ कहते हैं कि इससे आधुनिकता भी बढ़ी, ग्राहकों का आकर्षण भी बढा और शहरीकरण में इसकी बड़ी भूमिका रही।