Tuesday 16 September 2014

बर्तन बनाने का काम करती है कांस्यकार जाति



जिउतिया संस्कृति का संवाहक है समाज
लोक साहित्य इस समाज को देता है श्रेय

 संवत 1917 में जिउतिया संस्कृति से जुडी जाति कांस्यकार का पुश्तैनी धंधा है बर्तन बनाना। शहर में पीतल, कांसा, फुल के बर्तन प्राय: हर कसेरा परिवार में कभी बनता था। सतरहवीं सदी में ही दाउद खां ने इन्हें यहां बसाया था। बमभोला कांस्यकार को पता नहीं कहां से आये। बताते हैं खानदानी हैं, जब से दाउदनगर है तब से यहां कांस्यकार है। मूल की तलाश अभी जारी है। इस जाति के कारण ही यहां का बर्तन उद्योग देश में कभी प्रतिष्ठा पाता था। भारत चीन युद्ध के समय यहां का बर्तन सैनिकों को आपूर्ति की गई थी। यहां बडा मिल हनुमान मंदिर के पीछे हुआ करता था। अब यह धंधा सिमट गया है। चंद घरों तक। लोग दूसरे व्यवसाय से जुडते चले गये। इस समाज का कसेरा टोली में बने जीमूतवाहन भगवान के चौक पर एकाधिकाअर है। यहां मूंह से गर्म लौह पिंड को पकडने, हाथों से दपदपाते लाल जंजीर को दूहने जैसी खतरनाक प्रस्तुति की जाती है। जो अन्यत्र नहीं दिखता। यहां लौंडा नाच अभी भी होता है। उसकी परंपरा बन गई है। शादी और बारात के साथ शव यात्रा भी निकाली जाती है। 

No comments:

Post a Comment