Wednesday 17 September 2014

जिउतिया को प्रतिनिधि संस्कृति बनाने की जरूरत


जिउतिया को प्रतिनिधि संस्कृति बनाने की जरूरत

जिउतिया को प्रतिनिधि संस्कृति बनाने की जरूरत
संवाद सहयोगी, दाउदनगर (औरंगाबाद) : बिहार के विभाजन के बाद छउ नृत्य झारखंड की प्रतिनिधि संस्कृति बन गई है। अपना प्रदेश अभी इसकी रिक्ति को छठ पूजा की संस्कृति में तलाश रहा है। मगर छठ पूरे प्रदेश में और प्राय हिंदी पट्टी में मनाया जाता है, जबकि जिउतिया लोक उत्सव सिर्फ यहीं है। जिसमें लोकयान के सभी चार तत्व-लोककला, लोक साहित्य, लोक विज्ञान और लोक व्यवहार प्रचुर मात्रा में हैं। यह बहुजनों का उत्सव है शायद इसीलिए सरकारों की दृष्टि इस पर नहीं पड़ती। विवेकानंद ग्रूप आफ स्कूल के निदेशक डा. शभूशरण सिंह कहते हैं कि वर्तमान समाज में बच्चे बुजुर्ग माता पिता की सेवा नहीं करते। भावनाओं का संप्रेषण और विस्तार आवश्यक है। यह पर्व पुत्रों की दीर्घायु की कामना करने वाली माताओं द्वारा किया जाता है। इसलिए यह देश के स्तर पर यह संदेश दे सकता है इसलिए इसको प्रतिनिधि संस्कृति बनाना चाहिए। भगवान प्रसाद शिवनाथ प्रसाद बीएड कालेज के सचिव डा. प्रकाश चंद्रा ने कहा कि राज्य सरकार अगर थोड़ी सी मदद कर दे, निधि उपलब्ध कराए और उसके नुमाइंदे उपस्थित होकर इसका अवलोकन करें तो यह लोक उत्सव राज्य की लोक संस्कृति बन सकती है। नगर पंचायत के मुख्य पार्षद परमानंद प्रसाद ने कहा कि राज्य सरकार में कला संस्कृति मंत्री भी लोक कलाकार हैं। उन्हें आकर देखना चाहिए और इसके संवर्धन के लिए बीस लाख रुपये सालाना देने का प्रावधान करें तो इस संस्कृति को चरमोत्कर्ष दिया जा सकता है। सामाजिक कार्यकर्ता कन्हैया सिंह सिसौदिया, जदयू नेता अभय चंद्रवंशी और भाजपा प्रखंड अध्यक्ष अश्रि्वनी तिवारी ने सरकार से माग की कि तीन दिनों तक सिमट गई इस पौने दो सौ साल से जीवंतता से चली आ रही लोक संस्कृति के उत्थान के लिए वह ठोस कदम उठाए जिला या अनुमंडल प्रशासन के सहयोग के बिना यह संस्कृति अपनी जीवंतता बनाए हुए है। इसके संवर्धन के लिए सिर्फ थोडे़ सहयोग की जरूरत है। अगर दस बीस लाख रुपये जो किसी भी सरकार के लिए एकदम न्यूनतम राशि होती है यहा खर्च किया जाये तो लोक कलाकारों को बड़ा मंच मिल सकता है। विस्तार के साथ गुणवत्तापूर्ण बदलाव लाया जा सकता है।

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