Saturday 13 September 2014

हिंदी के लिए अलंकृत थे रघुनंदन राम


हिंदी दिवस पर आज तमाम तरह के रस्म का आयोजन किया जा रहा है। अपने ही देश में हिंदी की दशा एवं दिशा पर व्यापक बहस होगी। एक राष्ट्रीय बैंक के लेटर हेड पर लिखा हुआ - हिंदी में हम आपके पत्रचार का स्वागत करते हैं देख यह समझा जा सकता है कि अपने ही घर में हिंदी की क्या स्थिति है। बहरहाल, मुद्दे पर बहस छोड़िए यह सुकून देने वाली जानकारी है कि मदाउदनगर की मिट्टी में पला बढ़ा और अब स्वर्गवासी बन गए रघुनंदन राम को तत्कालीन रेल मंत्री माधवराज सिंधिया ने दो बार हिंदी में कार्य करने के लिए सम्मानित किया था। वर्ष 1999 में स्वर्ग सिधार गए लखन मोड़ निवासी श्री राम रेलवे में टेलीग्राफ बाबू यानि तार बाबू के रूप में गया में कार्यरत थे। तब 1980 में अपना अधिकांश कार्य हिंदी में करने के लिए 23.12.1981 को रेलवे हिंदी समारोह में उन्हें नकद पुरस्कार से तत्कालीन रेल मंत्री माधवराव सिंधिया ने सम्मानित किया था। इसी तरह 1986 में कार्य करने के लिए उन्हें पुन: 9 फरवरी 1987 को सम्मानित किया गया। वर्ष 1987 में ये चीफ इंसपेक्टर टेलीग्राफ गया के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। इनके पुत्र संजय कुमार उर्फ गांधीजी ने बताया कि अपने सभी दो बेटों ओर 7 बेटियों को कम वेतन मिलने के बावजूद पढ़ाया। आज सभी 9 संतान सरकारी जाब में हैं। इमानदारी और निष्ठापूर्वक कार्य करने का प्रतिफल इन्हें सिर्फ पुरस्कार के रूप में नहीं मिला। व्यवहार कुशलता ने इन्हें अलग पहचान भी दिया। नेताजी के नाम से लोकप्रिय इनकी पहचान बन गया था- धोती, कुर्ता, बंडी और हाथ में बकुली। वे नहीं रहे लेकिन अंग्रेजी के अच्छे जानकार होते हुए भी अपना सर्वाधिक कार्य हिंदी में जिस लगन से किया, वैसी निष्ठा अब कहां मिलती है। अंग्रेजी जानने वाले बाबू लोग हिंदी वालों को नहीं लगाते, इससे उन्हें पुरस्कार तो नहीं ही मिलता समाज में प्रतिष्ठा और पहचान भी नहीं मिलती।

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