Friday 24 August 2018

दाउदनगर के बाबा ने बनाया चौरासन मंदिर को ध्येय: विकास की लिखी गाथा


द्वारिकानाथ मिश्र के श्रम, समर्पण और तपस्या 
का फलाफल है चौरासन मंदिर की सुविधाएं
कैमूर पहाडी की चोटी पर स्थित है चौरासन मंदिर
1500 फीट की ऊँचाई पर बनवाया-कुआं, यात्री शेड
विकास के हर चिन्ह में है बाबा की मौजूदगी
मंदिर का सेवक, ग्रामीण सभी देते हैं सम्मान
उपेंद्र कश्यप । डेहरी
आदमी ठान ले तो क्या नहीं कर सकता? पहाड़ पर भी रहने लायक सुविधाएं उपलब्ध करा सकता है, जंगल में भी मंगलदायक स्थिति उत्पन्न कर सकता है। इसी का उदाहरण है-स्व.द्वारिकानाथ मिश्र और चौरासन मंदिर।  
अनुमंडल मुख्यालय से करीब 45 किलोमीटर दूर स्थित अकबरपुर (रोहतास) के ठीक सामने कैमूर पहाडी की चोटी पर स्थित चौरासन मंदिर में एक ब्लैक एंड ह्वाईट तस्वीर दिखती है। यह स्व.द्वारिकानाथ मिश्र की है। यहाँ वे कब पहुंचे, यह तारीख सही सही ज्ञात नहीं है। संभवत: 1982 में वे यहाँ पहुंचे। यहाँ आज जो कुछ भी है, वह इनके श्रम, कर्म, त्याग, तपस्या, समर्पण का फलाफल है। इनके आगमन से पूर्व यहाँ ठहरना कदापि संभव नहीं हुआ करता था। घना जंगल और पहाड़ पर न पीने के लिए पानी, न धुप-पानी से बचने के लिए कोइ छत नसीब था। यहाँ आने वाले पर्यटकों के पीने के लिए पानी की व्यवस्था उन्होंने किया था। जन सहयोग से एक कुआं बनवाया। जन और जन प्रतिनिधियों के सहयोग से बड़ा धर्मशाला बनवाया। इसके लिए तत्कालीन विधायक जवाहर प्रसाद से सहयोग भी लिया। इसके निर्माण से पूर्व कैमूर पहाड़ की चोटी पर स्थित चौरासन मंदिर से लेकर रोहतास किला तक के परिसर में कोइ ऐसा स्थान नहीं था, जिसके छत के नीचे बरसात, बर्फबारी या धुप से बचने के लिए शरण ले सकें पर्यटक। उनके प्रयास से ही यह सब हुआ है। इसी कारण जब चौरासन मंदिर पर सावन हो या अन्य कोई भी मौसम या अवसर, पर्यटक पहुँचते हैं तो उनके योगदान को सम्मान के नजरिये से यहाँ के पुजारी या व्यवस्थापक देखते हैं। करीब डेढ़ हजार फीट की ऊँचाई पर इतना सब करना कल भी आसान नहीं था और आज भी मुश्किल ही है। यहाँ के पुजारी स्थानीय निवासी मंगरू भगत कहते हैं कि- सब बाबा का ही देन है। बताया कि अब भी पीने के लिए पानी गाँव जा कर लाना पड़ता है। इसी से यहाँ आये पर्यटकों की प्यास बुझाते हैं। पर्यटकों को वे पानी-मिश्री देकर सन्नाटा और गर्मी के दिनों में आतिथ्य सत्कार का उदाहरण बनाते हैं।

विकास के लिए किया था अनशन
श्री मिश्र ने चौरासन मंदिर पर विकास के लिए अनशन किया था। हालांकि इनके दामाद औरंगाबाद जिला के दाउदनगर निवासी अश्विनी पाठक को इस शब्द पर आपत्ति है। वे इसे अनुष्ठान कहा जाना श्रेयष्कर मानते हैं। बताया कि सोन नद के किनारे कई दिन पीपल वृक्ष के नीचे भूखे बैठ गए। प्रशासनिक अधिकारी से लेकर आम-ओ-ख़ास लोग मिले। सवाल किया कि बाबा ऐसा क्यों कर रहे हैं? बोले-चौरासन पर जल स्त्रोत बनना चाहिए। भला कौन इसका विरोध करता? सबने सहमति दी और फिर पहाड़ की चोटी पर एक कुआं बना। यही एक मात्र जल स्त्रोत आज भी यहाँ है। हालांकि बदली परिस्थिति में मेले के वक्त बोतल बंद पानी भी अब मिलने लगा है।

कांवर यात्रा की परंपरा का किया प्रारंभ
चौरासन मंदिर पर इनके पूर्व कांवर यात्रा की परंपरा नहीं थी। द्वारिकानाथ मिश्र ने इसका प्रारंभ किया। सोनभद्र और गंगा (बक्सर) के जल से शिव के जलाभिषेक की परंपरा प्रारंभ किया। बोल बम के नारे गूंजने लगे। यह आज भी भर सावन गूंजता है। मेला लगता है। हजारों पर्यटक पहुंचते हैं। मंदिर में अखंड जोत जलने लगा। पर्यटक स्थल के रूप में इसने अपनी पहचान कायम की। अभी भर सावन यहाँ मेला सजता है, जगमग रहता है, श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।    

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