Tuesday 14 August 2018

अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में रोहतासगढ़ की थी भूमिका

436 वर्ष पूर्व मुगल बादशाह अकबर के शासन काल 1582 में बनी थी “रोहतास सरकार”

तब सात परगनों के सूबे रोहतास में था शाहाबाद, गया, पलामू, बनारस शामिल

पूर्वी भारत की राजधानी हुआ करता था पहाड़ पर स्थित “रोहतास गढ़” किला

उपेंद्र कश्यप । डेहरी

स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में रोहतासगढ़ की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है। यहां से कई प्रदेशों के शासन तंत्र को चलाया गया है। 436
साल पहले यहाँ ‘रोहतास सरकार’ का गठन हुआ था। इसमें सात परगने शामिल थे। मुख्यालय या राजधानी रोहतासगढ़ किला बना था। यहाँ से पूर्वी भारत पर नियंत्रण रखा जाता था। मानसिंह के समय यहाँ से बिहार, झारखंड, उड़ीसा, बंगाल, त्रिपुरा तक शासन किया जाता था। इस बात का उल्लेख रोहतासगढ़ का इतिहास किताब में डॉ.श्याम सुन्दर तिवारी और जो इतिहास में नहीं है-में राकेश कुमार सिंह ने किया है। इस सन्दर्भ में देखें तो रोहतास का इतिहास गौरवशाली रहा है। किताब में उल्लेखित तथ्य के अनुसार मुगल बादशाह अकबर के शासन काल 1582 में ‘रोहतास सरकार’ थी, जिसमें सासाराम, चैनपुर के साथ सोन के दक्षिण-पूर्वी भाग के परगने-जपला, बेलौन्जा, सिरिस और कुटुम्बा शामिल थे। रोहतास पहाडी के नीचे रोहतास के दारोगा मलिक विसाल के परिवार के मकबरे हैं। यहाँ प्राप्त शिलालेख के अनुसार जब नवाब इखलास खान किलेदार था तब, उसे मकराइन परगना, सिरिस, कुटुम्बा, से बनारस तक के क्षेत्रों की फौजदारी भी प्राप्त थी। वह चाँद (चैनपुर), मगरूर, तिलौथु, अकबरपुर, बेलौन्जा, विजयगढ़ ( नजीब नगर), और जपला का जागीरदार भी था। यानी उसके क्षेत्र में शाहाबाद, गया, पलामू और बनारस शामिल थे।

गौरवबोध: बहुत कुछ ज्ञात के बाद भी और खोजना शेष:-
फोटो-रामचंद्र प्रसाद कश्यप
रोहितेश्वर धाम सेवा समिति के संयोजक रामचंद्र प्रसाद कश्यप ने कहा कि रोहतासगढ़ और इस इलाके के इतिहास से स्थानीय जनों को गौरवबोध का अहसास होता है। समिति के अध्य्क्ष कृष्णा सिंह यादव, सचिव मृत्युंजय सिंह, कोषाध्यक्ष सुभाष सिंह, संरक्षक- रघुवीर प्रसाद ने बताया कि रोहतासगढ़ का शासन बहुत दूर-दूर तक था। यहाँ से कई प्रदेशों के शासन तंत्र को संभाला जाता था। इसका हजारों साल का ज्ञात और किताबों में दर्ज इतिहास है। किसी भी गाँव, कस्बे या इलाके के लिए अपना ज्ञात इतिहास होना गौरव की अनुभूति देता है। बिहार के राजनीतिक और सामाजिक ही नहीं भू-जैव-वैज्ञानिक इतिहास में रोहतास के बिना नहीं लिखा जा सकता है। पाषाणकालीन, शिलालेख युगीन, और बहुत हद तक गुफाकालीन इतिहास भी इस रोहतासगढ़ से संबद्ध है। बताया कि अभी रोहतासगढ़ का पूरा इतिहास सामने आना शेष है। यहीं से आदिवासी जन भारत के विविध प्रान्तों में गए। रोहतासगढ़ पर काफी काम तो हुआ है, किन्तु अभी और काम किया जाना शेष है।

दो बार गठित हुआ जिला रोहतास:-

रोहतास जैसा दो बार जिला गठित होने का सौभाग्य शायद ही किसी को होगा, यदि मिला भी होगा तो काफी कम संख्या इसकी होगी। स्वतन्त्र भारत में 10 नवम्बर 1972 को रोहतास जिला का गठन किया गया था। इससे 188 साल पहले ही
वर्ष 1784 में तीन परगना को मिलाकर रोहतास जिला बनाए जाने का उल्लेख ऐतिहासिक दस्तावेज में है। शाहाबाद गजेटियर में 1784 में रोहतास जिला स्थापित होने का उल्लेख है। उसके अनुसार रोहतास, सासाराम व चैनपुर परगनों को मिलाकर जिला बनाया गया था।

रोहतास का औरंगजेब ने किया था पुनर्गठन:-  

इतिहास के अनुसार 25 फरवरी 1702 को वजीर खां के पुत्र अब्दुल कादिर को रोहतास का किलेदार नियुक्त किया गया। वर्ष 1764 में मीर कासिम को बक्सर युद्ध में अंग्रेजों से पराजय मिली तो यह क्षेत्र अंग्रेजों के हाथ आ गया। वर्ष 1774 में अंग्रेज कप्तान थामस गोडार्ड ने रोहतास गढ़ को अपने कब्जे में लिया और उसे तहस-नहस कर दिया। अकबर के समय से चली आ रही रोहतास सरकार में औरंगजेब ने कई परिवर्तन किये थे। और फिर सातों परगना को उसने पुनगर्ठित किया था।

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