Thursday 2 August 2018

लेरुआ में दफन है हजारों साल पुराना इतिहास, खंगालने के लिए उत्खनन आवश्यक

यहां से मिला है 1000 साल पुराना 'कीर्तिमुख'
दो दशक पूर्व खोजा था 'सोनघाटी पुरातत्व परिषदने

काल निर्धारण और निर्माण शैली से अनभिज्ञ है परिषद

उपेन्द्र कश्यप । डेहरी


फोटो-दैनिक भास्कर में प्रकाशित मेरी रिपोर्ट (2.8.18)


गोडैला पहाड़ से सटा गांव लेरुआ उत्खनन की दरकार रखता है। यहां न्यूनतम 1000 साल से अधिक पुराना इतिहास दफन है। इसे सामने लाने की आवश्यकता है। अन्यथा एक वक्त ऐसा आएगा जब यहां दफन इतिहास को सामने न ला सकने का पश्चाताप भी सरकार और अन्य जिम्मेदार नहीं कर सकेंगे। यहां 'कीर्तिमुखका एक टुकड़ा करीब दो दशक पूर्व मिला था। इसे 'सोनघाटी पुरातत्व परिषदने खोजा था। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में संभवतः 1998 में इसे खोजा गया था। खोजने वाली टीम में सचिव कृष्ण किसलय और संयुक्त सचिव अवधेश कुमार सिंह शामिल थे। श्री किसलय का यह प्रश्न है कि आखिर यह अकेला पीस यहां क्यों और कब से हैकाल निर्धारणनिर्माण शैली यह तय नहीं किया जा सका है। बताया कि यह दुर्लभ प्रतिमा है। कहीं नहीं मिलती है। सोनघाटी पुरातत्व परिषद ने मांग किया है कि ऐसे स्थानों की खुदाई कर इतिहास के दबे पन्नों की खोज की जाए। अन्यथा जमीन में दबा इतिहास भी कल नहीं निकाला जा सकेगाऐसी स्थिति हो जाएगी।


प्राचीन मौर्य मार्ग पर प्रतिमा निर्माण केंद्र तो नहीं:-
श्री किसलय ने बताया कि संभव है कि लेरुआ मूर्ति निर्माण का केंद्र रहा हो। प्राचीन मौर्य कालीन मार्ग पर यह गांव स्थित है। यह मार्ग गांधार (तक्ष शीला) से ताम्रलिप्ति (श्री लंका) तक है। इसी मार्ग से महात्मा बुद्ध बोध गया से सारनाथ गए थे। इस कारण लगता है कि यहां मूर्ति निर्माण हुआ करता था। बनाई गई प्रतिमाएं दूसरे स्थानों के लिए आपूर्ति की जाती होंगीचूंकि यह स्थान मौर्यकालीन व्यापारिक मार्ग पर हैइसलिये यह अधिक उचित लगता है।

11वीं-12वीं सदी से 'कीर्तिमुखका निर्माण प्रारंभ:-
*विशेषज्ञ टिप्पणी*
कला संस्कृति एवं युवा विभाग के बिहार विरासत विकास समिति के डिप्टी डायरेक्टर अनंताशुतोष और हेरिटेज सोसायटी की निदेशक मनीषा पांडेय ने बताया कि यहाँ मिली 'कीर्तिमुखप्रतिमा किसी बड़ी प्रतिमा या बड़ी संरचना का हिस्सा है। अध्ययन बताता है कि 11 वीं-12वीं सदी में पत्थर पर प्रतिमाओं का निर्माण इस तरह से हुआ था। माथा के ऊपर इस तरह की आकृति बनाई जाती थी। इसे 'कीर्तिमुख'का नाम दिया गया है। ऐसी आकृतियां सिर्फ हिन्दू प्रतिमाओं में ही नहीं बल्कि बौद्धजैन प्रतिमाओं में भी बनाई जाती थी। यह अपने आप में अकेले पूर्ण संरचना नहीं है। इसका इस्तेमाल किसी बड़ी प्रतिमा या स्थापत्य संरचना के लिए सजावटी आइटमअलंकरण के लिए किया गया होगा। 

मनुष्य-पशु की मिश्रित प्रतिमा:-
दोनों विशेषज्ञों ने बताया कि प्रारंभिक मध्य काल में प्रतिमाओं में आधा मनुष्य और आधा जानवर की आकृति पत्थरों पर मात्र कल्पना के आधार पर उकेरा गया। गुप्तकाल में प्रस्तर तराशने वालों ने शरीर बनायाउनके हाथ में आयुध दे दिया। इसके बाद सातवीं से बारहवीं सदी तक शरीर के बाहर खाली स्थानों को भरने के लिएफिलिंग आइटम के रूप में गंधर्वफूलआकाशीय देवी-देवतागजकिन्नरकल्पना के आधार पर कलाकार बनाने लगे। 

इधर बलुआउधर बैसाल्ट की प्रतिमा:-
अनंताशुतोष और मनीषा पांडेय ने बताया कि सोन के पश्चिमी क्षेत्र रोहतास से आरा तक के इलाके में मिली 99 फीसदी प्रतिमाएं सैंड स्टोन (बलुआ पत्थर) से निर्मित हैं। जबकि पूर्वी इलाके में औरंगाबाद से लेकर गयानालन्दानवादापटना के क्षेत्र में मिली प्रतिमाएं बैसाल्ट स्टोन की होती हैं।

भारतीय माइथोलॉजी में ‘कीर्तिमुख’ के किस्से:-
फोटो-कीर्तिमुख का चित्र

भारतीय माइथोलॉजी में ‘कीर्तिमुख’ के कई किस्से दर्ज हैं। इसे शिव का मुख्य द्वारपाल बताया गया है। मंदिरों के मुख्य द्वार के ऊपर या गर्भगृह के द्वार पर धड़रहित एक डरावना सिर जो दिखता है वही कीर्तिमुख है। किस्सा यह है कि एक योगी को शिव का आअशीर्वाद मिला तो वह अहंकारी हो गया। उसे खाने के लिए एक दानव पैदा किया तो योगी पैर पर गिर गया। शिव ने दानव को मना किया तो कह बैठा-इसे खाने के लिए ही आपने पैदा किया है, इस पर नशे में उन्मत शिव ने कह दिया- खुद को खा लो। जब पीछे मुड़े तो देखा शरीर का अधिक भाग वह खा चूका है। रोका और उसे
कहा-तुम सभी देवताओं से ऊपर हो, यशस्वी हो।’ इसलिए कीर्तिमुख का एक अर्थ ‘यशस्वी मुख’ भी होता है।
कथा दो:-

लंका के प्रवेशद्वार पर शुक्राचार्य "रुद्र कीर्तिमुख" नाम का दारुपंच अस्त्र स्थापित किया था। बाहर होने वाली प्रत्येक गतिविधि इस पर चित्रित होकर दिखाई देती थी। जैसे आज के सीसीटीवी कैमरे हैं। इसके मुख से अग्नि का गोला निकल कर शत्रु का संहार करता था।
कथा तीन:-
जलंधर नामक एक महाशक्तिशाली दैत्य था। यह जन्म लेते ही भूख-भूख चिल्लाने लगा। शिव सोच में पड़ गये, नामकरण कीर्तिमुख किया। समझाया- पुत्र कीर्तिमुखजब तक भोजन का प्रबंध नहीं होता तब तक अपने ही हाथ-पैर खाकर भूख मिटा लो। ऐसा ही किया, जब गर्दन की ओर बढ़ा तो शिव ने रोकते हुए कहा-पुत्र कीर्तिमुखतुम्हारा जीवित रहना आवश्यक है ताकि मेरी कुटिया की सुरक्षा होती रहे अत: तुम द्वार पर नियुक्त हो जाओ।

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