Thursday 23 August 2018

दाउदनगर भी आ चुके हैं स्व.अटल बिहारी वाजपेयी : अयूब अंसारी के माला डालने पर मारा था ताना

आपातकाल के बाद 1977 में दाउदनगर आये थे अटल बिहारी वाजपेयी

अयूब अंसारी ने पहनाया माला, फोटो खींचने पर वाजपेयी ने मारा ताना
 0 उपेंद्र कश्यप 0
गुरूवार को दाउदनगर के भखरुआं मोड़ से स्व.अटल बिहारी वाजपेयी की अस्थियाँ व्यवस्थित कलश यात्रा के रूप में गुज़री कुछ ऐसे पुराने लोग भी इस शहर में हैं, जो 41 वर्ष पुरानी स्मृतियों में खो गये सेवानिवृत शिक्षक बैजनाथ पाण्डेय को आज भी स्मरण है कि कैसे मो.अयूब अंसारी ने वाजपेयी जी को माला पहनाया था, और जब फोटो खींचने लगे तो, उन्होंने ताना मारा था बताया कि 1977 में जब आपातकाल हटा लिया गया तो मोरारजी भाई देसाई की अगुवाई वाली जनता पार्टी के साथ कांग्रेस (ओ), जनसंघ, भारतीय लोकदल और समाजवादी पार्टी ने मिलकर जनता पार्टी बनाया था उसी समय फ़रवरी महीना की किसी तारीख को 1977 में श्रद्धेय अटल बिहारी वापेयी जी दाउदनगर आये थे अभी गाजियाबाद रह रहे बैजनाथ पांडेय के पुत्र डॉ.विश्वकांत पाण्डेय ने अपने पिता के हवाले से बताया कि श्रद्धेय अटल बिहारी वापेयी को याद करते हुए उनका गला रुंध गया आँख डबडबा गए घटनाक्रम को चित्रित करने का प्रयास किया। बताया कि फ़रवरी महीना में तब न ज्यादा ठंढ था न ही ज्यादा गर्मी। अटल जी दाउदनगर के भखरुआं में पधारे थे। मोरारजी भाई देसाई का भी आने का कार्यकर्म था, किन्तु वे नहीं आ सके थे। श्रद्धेय अटल जी की अगुवाई के लिए तोरण द्वार बनवाया गया था। 
उस समय के दौर में जनसंघी लोग दाउदनगर से अशोक उच्च विद्यालय के शिझक पंडित शिवमूर्ति पांडेय की अगुवाई में जुटे थे। बलराम शर्मा (मौवारी) रामानंद सिंह (मखरा), मोहम्मद अयूब अंसारी (चूड़ी बाजार) के साथ दाउदनगर के दर्जनों वैश्य, स्वर्णकार, कांस्यकार हलुवाई समाज के साथ कई गण्यमान लोग उपस्थित हुए थे। उस समय का एक रोचक किस्सा याद करते हुए श्री पांडेय ने बताया। माला पहनाने की जिम्मेदारी मोहम्मद अयूब अंसारी ने ले रखा था। पहले उन्होंने माला पहनाया फिर फोटो खींचा महत्वपूर्ण है कि उस जमाने में श्री अंसारी फोटोग्राफी का काम भी खूब शौक से किया करते थे जब उन्होंने फोटों खींचा तो वापेयी जी ने कहा- अरे वाह! आप एक साथ दो -दो काम कर रहे हैं जी। माला भी पहना रहे हैं और फोटो भी ले रहे हैं। फोटो किसी दूसरे को लेने को बोल देते। उनकी वाक्यपटुता से अयूब अन्सारी जी तब झेंप गए थे। हाथ जोड़ कर पीछे हट गए। करीब आधे घंटे से भी कम समय के लिए दाउदनगर में रुक कर अपना अमिट छाप छोड़कर वापेयी जी वहाँ से तब चले गए थे आज उनकी जब अस्थि आने की सूचना वे सुने तो खुद को अपनी स्मृतियाँ साझा करने से रोक न सके

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