Monday 25 June 2018

जब अहीर शराफत दिखाता है तो ऐसे ही ‘लूट’ ली जाती है पुस्‍तक


आलेख वीरेंद्र यादव की 

हमारी पुस्‍तक ‘संभावनाओं के सोपान’ की एक कॉपी आज सरेआम ‘लूट’ ली गयी। लूटने वाले भी अपने ही विधान सभा क्षेत्र यानी ओबरा के हैं। दाउदनगर अनुमंडल के अतीत और वर्तमान पर वर्षों काम करने वाले उपेंद्र कश्‍यप से आज पटना में अति पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व सदस्‍य प्रमोद चंद्रवंशी के आवास पर मुलाकात हुई। उन्‍होंने पुस्‍तक लेकर प्रमोद जी के आवास पर बुलाया। हमें तो लगा कि एक ‘कस्‍टमर’ मिल गये, यहां तो उल्‍टा ही हुआ। हमने उन्‍हें पुस्‍तक दी और उन्‍होंने पुस्‍तक अपने ‘तरकस’ में डाल ली। मेरे सामने देखने के अलावा कोई विकल्‍प नहीं था।
हम बात कर रहे थे पुस्‍तक की। विधान सभा के बजट सत्र के दौरान 75 से अधिक पुस्‍तक हमने बेची थी। उसके बाद से पुस्‍तक बेचने का क्रम जारी है। पत्रकार से बनिया बनने तक की यात्रा। आज बनिया के हाथों ही ‘लूट’ गये। सत्र के दौरान सिर्फ मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार को ही नि:शुल्क किताब भेंट की थी। नेता प्रतिपक्ष तेजस्‍वी यादव को भी पुस्‍तक भेंट करना चाहता था, लेकिन उन्‍होंने नकद भुगतान कर दिया। एक वक्‍त ऐसा भी आया जब एक पूर्व मंत्री ने 2100 की पुस्तक के बदले दस हजार का चेक थमा दिये। एक पूर्व सांसद के बदले उनके पुत्र बाद में पैसे पहुंचा गये। ‘वीरेंद्र यादव न्‍यूज’ के सहयोग के रूप हमने दस रुपये की आर्थिक मदद भी स्‍वीकार की है।
हम वापस उपेंद्र कश्‍यप और प्रमोद चंद्रवशी पर आते हैं। उपेंद्र औरंगाबाद जिले के दाउदनगर में पिछले 25 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। 2015 में उन्‍होंने एक पुस्‍तक लिखी थी- श्रमण संस्‍कृति का वाहक-दाउदनगर। दाउदनगर और आसपास के इलाकों पर आधारित उन्‍होंने दो खंडों में संदर्भ ग्रंथ ‘उत्‍कर्ष’ के नाम से प्रकाशित किया है। दाउदनगर का जिउतिया प्रमुख त्‍योहार है, उसकी लोकप्रियता बढ़ाने में उन्‍होंने बड़ी भूमिका निभायी है। जबकि प्रमोद चंद्रवंशी राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। दो बार उन्‍होंने ओबरा से विधान सभा का चुनाव लड़ा और दोनों बार उनका तीर (जदयू का चुनाव चिह्न) लक्ष्‍य नहीं भेद पाया। कई वर्षों तक वे अतिपिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्‍य भी रहे।
उपेंद्र कश्‍यप किसी काम से पटना आये थे। प्रमोद चंद्रवंशी के आवास पर ही मुलाकात हुई। इस दौरान काराकाट लोकसभा और ओबरा विधान सभा चुनाव को लेकर चर्चा भी हुई। लेकिन आमतौर पर जैसा हमारी सक्रियता को लेकर सवाल उठाया जाता है- चुनाव लड़ना है क्‍या। हम बस इतना ही कह पाये कि मुखिया का चुनाव में हार कर रिकार्ड बना लिये हैं, आगे शौक नहीं है। यह अलग बात है कि चुनाव अनुभव पर आधारित पुस्‍तक भी तैयार है।

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