Thursday 25 August 2016

उतरंगी जब जइहें दखिन, सोन के बाढ बढइहें जोखिम

फोटो-बाढ के पानी में डूबी फसल
पूर्वानुमान कर सोन का डिला छोड देते हैं किसान
मान्यता की हवा पहाड टकरातती है तो होती है बारिश
       क्षेत्र में एक लोकोक्ति प्रचलन में है- उतरंगी जब जइहें दखिन, सोन के बाढ बढइहें जोखिम। अर्थात जब उत्तर दिशा से उठी हवा दक्षिण को जाये तो समझिए सोन में बाढ आने ही वाला है। मान्यता है कि यह हवा दक्षिण में स्थित पहाडों से टकराती है और खूब बारिश होती है। बारिश तो तब भी होती है जब बरसात के मौसम के अलावा भी जेठ जैसे मौसम मे ऐसी हवा चलती है, किंतु बरसात में प्राय: बारिश खूब होती है और बाढ भी दो-चार दिन में आ जाता है। विवेकानंद मिश्रा, पंकज यादव, जगु चौधरी व सीताराम चौधरी ने बताया कि यह अनुभव किया हुआ है कि जब भी ऐसी हवा आती है सोन में बाढ आता है। किसान पूर्वानुमान कर सोन क्षेत्र छोड देते हैं। पहले मोबाइल या अन्य कोई तकनीक नहीं हुआ करती थी। तब किसानों के पास यही ज्ञान था जिसके माध्यम से वे खुद को सुरक्षित स्थान पर ले जाते थे। भुक्त सच व अनुभव की परंपरा पर तैयार लोकोक्ति। जो पीढियों से आजमाया जा रहा है। सोन दियारा हो या उसके गर्भ में बना डिला। लोग ऐसे ही पूर्वानुमान से सतर्क होते हैं और खुद को तथा खुद की संपत्ति को बचाते रहे हैं।

बाढ से छोटे किसानों का जीना हुआ मुश्किल
फोटो-बाढ से बेहाल हुए छोटे किसान
खाने के लाले, पट्टेदारों को 100 फिसदी क्षति
कर्ज के तीन चरण से जुझ रहे किसान
   सोन में आये हुल्लड ने किसानों खास कर पट्टे पर खेत लेकर किसानी करने वालों को बरबाद कर दिया है। वे दोहरे नहीं तीहरे नुकसान को झेल रहे हैं। ऐसे किसान या तो सोन के किनारे तट पर खेती करते हैं या सोन के गर्भ में डिला पर। पट्टा पर खेत ले कर कृषि कार्य करने वाले जगु चौधरी, सीताराम चौधरी, प्रसिद्ध यादव, संजय यादव व शंकर यादव ने बताया कि उनके खेत में लगे फसलें बर्बाद हो गयी है। बताया कि कर्ज लेकर खेती किया, जब फसल तैयार हुई तो बाढ ले गया। इस कर्ज से उबरे नहीं। अब जाने के लिए खाना पडेगा और इसके लिए कर्ज लेना होगा। फिर बाढ बाद तीसरा कर्ज लेकर खेती करेंगे। तब फसल से आय होग आउर फिर कर्ज चुकाने में ही सारी आमदनी चली जायेगी। बताया कि बडे किसानों से ये 5000 से 8000 रुपए प्रति बिगहा सालाना पट्टा पर लेते हैं। एक बिगहा में सब्जी के लिए 15000 और धान के लिए 6000 खर्च आता है जिसके लिए कर्ज लिया। किसान पंकज यादव ने भी इनकी बातों की पुष्टी की। बताया कि पट्टा पर खेत देने के बाद किसानों की कोई जवाबदेही नहीं होती है। लाभ या हानि पट्टॆदार जिम्मे होता है। किसानों को तय रकम से मतलब है चाहे वह चार हजार हो या आठ हजार। बताया जाता है कि इस इलाके में पट्टा पर खेती करने-कराने का चलन अधिक है। समझ सकते हैं कि सिर्फ दाउदनगर अनुमंडल के ओबरा व दाउदनगर प्रखंड में ही ऐसे सैकडों किसान जब इस बाढ से बर्बाद हुए तो कितनी क्षति हुई है।
 
बटइया में आधे-आधे
खेती की परंपरा में पट्टेदारी के बाद सर्वाधिक बटइया का प्रचलन है। इसमें लाभ या हानि दोनों पक्षों को एक समान होता है। खेत किसान रैयत को बटइया पर दे देता है। फसल में दोनों पक्षों को आधे-आधे मिलता है। अब लाभ हो या हानि, दोनों को इसका नफा नुकसान सहना पडता है। किसान व पूर्व मुखिया भगवान सिंह ने बताया कि किसान और रैयत दोनों को पुंजी भी बराबर-बराबर लगाना पडता है।
कैसे हुई फसल बर्बाद?
सोन का बाढ अपने साथ मिट्टी भी लाता है। यह फसल के पत्तों पर जम जाता है। इससे प्रकाश संश्लेषण का काम पौधे नहीं कर पाते और पत्तों के गलने के साथ पौधे गल जाते हैं। यदि बाढ तुरंत वापस चला जाये और इतनी बारिश हो कि पत्तों पर जमी मिट्टी धुल जाये तो फसल को क्षति नहीं होती।

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