Tuesday 30 August 2016

अर्थशास्त्र के रचयिता चाणक्य थे प्रथम राजनीतिक नीतिकार

भाद्रपद अमावस्या : चाणक्य जयन्ती पर विशेष
चाणक्य नीति व चाणक्य सूत्र जैसी पुस्तकें लिखी
पाटलिपुत्र के चकारम में हुआ था जन्म
चाणक्य
 विष्णु गुप्त शर्मा, चाणक्य या कहें कौटिल्य। एक व्यक्ति तीन नाम और तीनों विश्व विख्यात नाम। नाम लेते ही स्मरण हो आता है- चाणक्य नीति। पूरा विश्व जब कबिलाई और राजे-रजवाडे वाली संस्कृति का वाहक था। कोई भी लोकतंत्र के बीरे में सोच नहीं सकता था तब करीब 2300 साल पूर्व उन्होंने एक ऐसे देश की कल्पना की और नीति बनायी जिसमें लोक महत्वपूर्ण हो। मौर्यवंश की स्थापन अकी और आज के भारत से भी बहुत बडे क्षेत्रफल का मगध साम्राज्य स्थापित किया। चन्द्रगुप्त मौर्य का शासन कायम किया। इसीलिए मगध के इतिहास को ही भारत का इतिहास माना जाता है। आज एक सितंबर को उनकी जयंती है। इसलिए उनपर विशेष चर्चा। उन्होंने अर्थशास्त्र जैसे राजनीति विषयक महत्व पूर्ण ग्रन्थ की रचना कर विश्व में अपना नाम अमर किया। इसके अलावे चाणक्य नीति व चाणक्य सूत्र जैसी अनेकों पुस्तकें लिखी।
आचार्य पं. लालमोहन शास्त्री ने बताया कि मगध की उत्तरी सीमा पर भागीरथी गंगा के दक्षिणी पावन तट पर स्थित पाटलिपुत्र नगर के चण (चकारम) नामक गाँव में एक झोपड़ी थी, जहाँ कौटिल्य गोत्र (कुल) में उत्पन्न ब्राह्मण निवास करते थे। वे विद्वान होते हुए दरिद्र थे। ईसा पूर्व चौथी शताब्दी भाद्रपद (भादव) अमावस्या को इनके घर एक बालक का जन्म हुआ। जन्म के समय दो दांत जमे हुए थे। कोटिल कुल (गोत्र) में जन्म होने के कारण पिता चणक ने पुत्र का नाम कौटिल्य रखा। बताया कि उन्होंने मगध के अत्याचारी राजानन्द ने चणक और उनकी धर्मपत्नी को बन्दी बना लिया। चणक की हत्या हो जाती है। चाणक्य पाटलिपुत्र नगर में गंगा किनारे आते हैं। वहाँ स्थित श्मशान (बाँसघाट) में उनको पिता का केवल मस्तक मिलता है। पता नहीं माता की मृत्यु कब हुई?

कुश के इस्तेमाल की खास परंपरा
चाणक्य ने घास फुस एकत्रित कर चिता बनाकर अपने पिता का मस्तक रखकर दाह-संस्कार किया था। यह भाद्रपद अमावस्या के दिन ही किया गया था। श्मशान से कुछ दूर पश्चिम गंगा में स्नान कर कुश उखाड़े और कुश, तिल और जल से दिवंगत पिता की तिलांजलि दिया। तर्पण बाद प्रतिज्ञा किया कि जब तक अत्याचारी नन्द से अपने पिता का प्रतिशोध नहीं ले लेता तब तक अग्नि में पका हुआ कोई अन्नादि भोजन नहीं करुंगा। पिता का भस्म एवं अस्थियाँ माँ गंगा की गोद में नहीं डालूंगा। इसी के स्मरण में पटना गंगा किनारे कुशी मेला का आयोजन किया जाता है। यह आयोजन भादव अमावस्या को किया जाता है। इस दिन सभी ब्राह्मण गण अपने नित्य कर्मादि के लिए कुश उखाड़ते हैं । यह कुश एक वर्ष तकपवित्र रहता है। इसी कुश का प्रयोग विशेष रूप यज्ञादि में किया जाता है।

विष्णुगुप्त के कई नाम प्रचलित
अभिधान चिन्तामणि के अनुसार चाणक्य के अनेक नाम मिलते हैं- वात्सयायन, मल्लिनाग, कौटिल्य, चाणक्य, द्रामिल, पक्षिल स्वामी, विष्णुगुप्त एवं अंगुल। नीतिसार के अनुसार -
वात्स्यायनो मल्लनागः कौटिल्यः चणकात्मजः।

द्रमिलः पक्ष्लिः स्वामी वराणकः गुलो पि वा।। 
अर्थात् आचार्य विष्णु गुप्त शर्मा के अन्य आठ नाम हैं- वात्स्यायन, मल्लनाग, कौटिल्य, चाणक्य, द्रमिल, पक्षिल स्वामी, वराणक तथा गुल। 

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