Saturday 24 June 2017

अविनाश का भूत और जब उडी हवाइयां

रिसॉर्ट में अपने जन्म दिन पर केक काटते भाई अविनाशचन्द्र जी

गतांक से आगे...
अलविदा आईपॉलिसी नौकुचियाताल-2
यह नैनीताल का नौकुचियाताल है| इसका यह नाम क्यों पडा? गूगल बाबा ने बताया कि यहाँ के ताल के नौ कोण हैं| इसलिए यह नाम है| किंवदती है कि एक साथ सभी नौ कोण कोइ देख लेता है तो उसकी मौत हो जाती है| हालांकि आसमान से देखने का विकल्प छोड़ दें तो सभी कोण एक साथ दिखने की कोइ संभावना नहीं है| इसके अलावा उपर पहाड़ पर एक प्वाइंट है-सुसाइड प्वाइंट| हालांकि गाइड के अनुसार यहाँ किसी ने आत्महत्या नहीं की| तब भी यह रहस्य ही है कि यह नाम क्यों और कब पडा? खैर पहाड़ों में ऐसी किन्वदतियाँ होती ही हैं| इसे छोड़ दें, लेकिन एक सच जो हम सबसे जुडा वह भी कल को किंवदती ही बन जाये तो आश्चर्य नहीं| उस भुक्त यथार्थ (सच्ची घटना) को हमने अनायास ही संबोधन के क्रम में शीर्षक दिया था- अविनाश का भूत!
इस शीर्षक को सुनते ही आयोजन के मुख्य कर्ताधर्ता बड़े भाई अविनाशचन्द्र चौंक गये थे| हां, साथियों याद आया आपको, उनका भूत! जिसे आप सब ने ग्रेजुएशन सेरेमनी में मुझे बताने के लिए कहा था। 17 जून की रात। आजीवन याद रहने वाली घटना। शायद सिर्फ मेरे लिए ही नहीं, इस घटना क्रम में जितने साथी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष शामिल थे, सभी को वह घटना याद आ जाती होगी। बरबस ही। हुआ यह था कि कोलकाता के सबसे कम उम्र (62) के नौजवान साथी अमित दा ने कमरे में 15 मिनट में आने को कह गए थे। रुम पार्टनर रेडियो जॉकी शाहिल एक घन्टे में आने का वादा कर गए। दोनों रात 12 बजे तक नहीं आये तो मैं भी सो गया। करीब सवा एक बजे, जब गहरी नींद में मैं था, अचानक मित्रों ने कमरे का दरवाजा पीटना शुरू किया। घबराया हुआ चेहरा लिए बाहर निकला। साथ में मनमीत भी। कहा गया कि -मार हो गई है, अभी इसी वक्त यहां से बाहर भागना है। मेरे और मनमीत के चेहरे पर घबराहट और आश्चर्य का बोध एक साथ झलक रहा था। किसी की जुबान फिसली तो बोल निकले-भूकंप आने वाला है। कोई मित्र बोल गया-अभी ही कल का सत्र पूरा करना है। दुविधा हुई तो आशंकाएं व घबराहट कम होने लगी। इस बीच मनमीत ने कहा कि अविनाश को कॉल करता हूँ। साथियों ने मना किया और पूछा कि अभी तो अविनाश जा रहे थे। आगे वो क्या गए? मेरी नजर ने भी इसकी पुष्टि की। जब आगे सन्नाटे में, अंधेरे में बढा तो कोई बोला वो सफेद साड़ी में एक आत्मा दिख रही है। कोई बोला देखिए तेंदुए के पैर के निशान। खैर जब सभी मिले तो देखा- यह अविनाश नहीं अमित थे। अविनाशचन्द्र के छोटे भाई, करीब करीब हमशक्ल| इसे ही मेरी जुबान से ग्रेजुएशन सेरेमनी में सुनने को कहा गया तो मैंने शीर्षक दी- अविनाश का भूत! दरअसल, लोक सभा टीवी के इंडिया स्पीक के प्रस्तोता व प्रतिष्ठित टीवी एंकर सर अनुराग पुनेठा जी की उपस्थिति में घटनाक्रम से कुछ घन्टे पहले ही भाई अविनाशचन्द्र ने सुनाया था कि कैसे कोई अमित से मिलने आता था तो वही बात कर लेते थे और जब वह जाने को होता था तो बताता कि वे अमित नहीं अविनाश है। यह सुनते ही सामने वाले के चेहरे का भाव बदल जाता था|  ऐसा ही भ्रम उस रात मुझे हुआ था। इसीलिए जब साथियों ने स्मरण सुनाने को कहा तो शीर्षक अनायास ही निकल गया- अविनाश का भूत!
ग्रेजुएशन सेरेमनी में जे पार्थ शाह व डा.अमितचन्द्र से
 प्रमाणपत्र लेती रुचिका गर्ग
 यहां चर्चा थोड़ी ग्रेजुएशन सेरेमनी की भी। मुम्बई में हिंदुस्तान टाइम्स की पत्रकार रही और अब फ्रीलांसिंग कर रही अंतरा को वर्कशॉप में और उसके बाद सेरेमनी में मनमीत ने अंग्रेजी की जगह हिंदी बोलने को कहा। वह हिंगलिश बोली। रुचिका गर्ग को हिंदी समझ नहीं आती है। वह पॉलिसी बनाने के कार्य में मेरी पार्टनर भी बनी थी। वह टोंट कसती और हम हंस जाते थे। सर्टिफिकेट कोर्स का प्रमाण पत्र लेते वक्त साथी प्रमाण पात्र लेने वाले का नाम लेकर जोश प्रकट करते, जैसे क्रिकेट मैदान में सचिन, सचिन की आवाज लगाई जाती थी| साथी ताली बजाते हुए उत्साहवर्धन करते तो आनंद कई गुणा बढ़ जाता था। हमने द लेक रिसोर्ट का आनंद खूब लिया। खास कर उनके स्टाफ का सहयोग और उनके हाथों का बना भोजन। वाकई, सच बता रहा हूँ, किसी भी पहाड़ी इलाके में (यह मेरी पांचवी यात्रा थी, पहाड़ी इलाके की) ऐसा भोजन नहीं किया था। इसकी आशंका थी, किन्तु लखनऊ से नौकुचियाताल के रास्ते में ही अविनाश ने खाना के स्वादिष्ट होने की जानकारी दी थी, तो थोड़ा आश्वस्त था। किंतु इतने व्यंजन और उसके ऐसे स्वाद होने की सच में कल्पना नहीं की थी। मैनेजमेंट देख रहे जसमीत (सरदार जी) की भी आत्मीयता दिखी। नौकुचियाताल का यह खूबसूरत रिसोर्ट काफी आकर्षक था। इसके प्राकृतिक सौंदर्य ने मन मोह लिया। मनमोहक नजारे ही थे कि कार्यशाला छोड़कर जाने को मन नहीं करता था। जब कभी अवसर मिलता लेक के सामने हल्की ठंढ में कुर्सीमान होकर चाय, कॉफी, पकौड़े या अन्य का आनन्द लेता। यह आनंद स्मरणीय है। 
धन्यवाद नौकुचियाताल|

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