Tuesday 20 June 2017

बिना पाठ्य पुस्तक के काबिल बनाये जा रहे स्कूली बच्चे

बिहार सरकार का कमाल----------
अप्रैल में मिलनी होती है बच्चों को किताबें
सरकार ने अभी मात्र डिमांड मांगा है
सितंबर तक पुस्तकें मिलने की संभावना
उपेन्द्र कश्यप

बिना साइंस शिक्षकों के ही बिहार के जमा दो स्कूलों ने तीस  फिसदी से अधिक बच्चों को पास करा दिया| यह और बात है कि उसमें शायद ही कोइ सरकारी स्कूल में पढ़ता होगा| प्राय: सभी नीजी स्कूलों या कोचिंग संस्थानों में पढ़े बच्चे ही पास कर सके हैं| बिहार सरकार का नया कारनामा प्राथमिक और मिडिल स्कूलों में भी जारी है| कक्षा एक से लेकर आठ तक के बच्चों को सरकार किताब उपलब्ध कराती है| इन्हें अप्रैल में सत्र प्रारंभ होने के साथ वितरित होना चाहिए, जबकि अभी तक किसी स्कूल में किसी कक्षा के बच्चे को किताब नहीं मिली है| प्रखंड संसाधन केंद्र (बीआरसी) के अनुसार अभी तो सरकार ने डिमांड ही मांगी है| स्कूल अब जब खुलेंगे तो प्रभारी या प्रधानाध्यापक स्कूल की कक्षावार जरुरत के मुताबिक़ डिमांड भेजेंगे कि कौन सी किताब कितनी मात्रा में चाहिए| संभावना जताई जा रही है कि शायद सितंबर तक किताबें सरकार उपलब्ध करा सके| तब वितरित होगा| सवाल है कि बाढ़ महीने के सत्र में से जब छ: महीने की पढाई ही नहीं होगी तो बच्चे क्या ख़ाक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हासिल कर सकेंगे? क्या सरकार वाकई गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए तैयार है? क्या ऐसे बच्चे मैट्रिक की परिक्षा उत्तीर्ण कर सकेंगे? सवाल फिर वाहे उठेगा कि मैट्रिक में पास होने वाल बच्चे भी किसी नीजि शिक्षण संस्थान में पढ़े होंगे, जिनका सरकारी स्कूलों में दोहरा नामांकन हुआ होता है| सिर्फ सरकारी लाभ के लिए, न कि पढ़ने के लिए| स्कूलों की स्थिति है कि छात्र और अभिभावक शिक्षकों से आकर पुस्तक माँगते हैं| कभी-कभी शिक्षकों पर ही गुस्सा झाड़ने लगते हैं। शिक्षक या अधिकारी भी क्या करेंगे जब पुस्तक की छपाई ही नहीं हुई है?

किताब वापसी का फरमान पूरी तरह फेल
सरकार का किताब वापस लेकर बच्चों में पुन: वितरण करने का फरमान पूरी तरफ फेल हो गया है| इस वर्ष के लिए पहली बार यह निर्देश था कि -वर्ग तीन से पांच तक की कक्षाओं की पुस्तकें मूल्यांकन परीक्षा में शामिल होते वक्त ही विद्यार्थियों से लेकर उसका पुनः वितरण करना है। बीआरसी की मानें तो बमुश्किल दस फीसदी छात्रों ने पुस्तकें लौटायी और वह भी बिल्कुल फटी अवस्था में। वर्ग एक व दो छात्रों को नई पुस्तकें देनी थी, जबकि वह अभी तक उपलब्ध ही नहीं कराई गई है।

गत वर्ष मिली थी किताबें
गत शिक्षा सत्र के समय किताबें बच्चों को लगभग समय पर मिल गयी थीं| बीआरसी ने बताया कि गत सत्र में अप्रैल से मई तक किताबें स्कूलों को भेज दी गयी थीं| हालांकि विलंब हुआ था किन्तु तब भी वर्त्तमान से गत साल बेहतर स्थिति थी|

शिक्षा मंत्री दें जवाब
परिवर्तनकारी प्रारंभिक शिक्षक संघ के प्रवक्ता सुनील बॉबी का कहना है कि- क्या पदाधिकारी और शिक्षा मंत्री अपनी दैनंदिन (डायरी) को साल भर नये जैसे रखते है? नही तो फिर बच्चों के पास किताबें सुरक्षित कैसे रह सकती हैं? पिछले साल भी कुछ वर्गो की किताबें उपलब्ध नहीं करायी गयी थी| कहा कि विभागीय फरमान जारी किया गया था कि बच्चों से पुरानी किताब जमा कर फिर से वर्ग वार वितरित किया जाय। ऐसा किया भी गया है, जिसमें कुछ बच्चों ने फटी पुरानी कुछ किताब जमा किया| बच्चों को ऐसी ही एक दो किताबें देकर खाना पूर्ति किया गया है।


No comments:

Post a Comment