Tuesday 20 June 2017

मियांपुर: 34 शवों के बदले सिर्फ 11 को नौकरी

सरकारी बहाने कैसे-कैसे...
नौकरी न देने के लिए दिये क़ानून के तीन किताब
किसी को अनपढ़ तो किसी आश्रित विहीन बताया
उपेन्द्र कश्यप

अभागा मियांपुर सामाजिक न्याय की सरकार के खिलाफ सामन्ती आक्रोश का पीड़ित ठीक सतरह साल पहले बना था| लोगों के दुःख पर मुआवजे की मरहम सरकार हर घटना के बाद लगाते है किन्तु यहाँ अपने लोगों की सरकार ने अपने लोगों को ठगा लिया| जिस सेनारी के बदले मियांपुर ने 34 जानें दीं वहां 34 के बदले 34 नौकरी मिली और उसी सरकार ने यहाँ मात्र ग्यारह नौकरी दिए| ग्रामीणों की मानें तो हद यह कि राबडी देवी सरकार की ओर से क़ानून के तीन किताब भेज कर गाँव वालों को बताया गया कि नौकरी कम क्यों मिली? इस नरसंहार में मरे गए देवनंदन यादव के बेटे ओमप्रकाश सिंह यादव को अनपढ़ बता कर नौकरी नहीं दी गयी| आश्वस्त किया गया कि साक्षर होते ही नौकरी मिल जायेगी| बताया कि दौड़ते थक गये किन्तु नौकरी नहीं मिली| कोर्ट गया, मुकदमा किया किन्तु वहां भी थक गये| रामसागर यादव को नौकरी मिली है| उनकी पत्नी और भाई व बहन की ह्त्या हुई थी| भाई की पत्नी के मौत पहले हे एहो गयी थी सो कोए नौकरी नहीं मिली| गोपाल यादव ने चार और छ: साल के दो बेटा गंवाया किन्तु नौकरी नहीं मिली|

जिन ग्यारह को नौकरी मिली
मियांपुर निवासी रामसागर यादव, अशोक यादव, राम प्रवेश यादव, सुरेन्द्र यादव, रामाधार यादव, कृष्णा यादव, रीता देवी, फूलकुमारी देवी, रमाकांत पासवान व मुनेश्वर पासवान के अलावा बुधई की चिंता देवी को नौकरी मिली है|

मनिंदरजीत सिंह बिट्टा ने भी ठगा
ऑल इंडिया एंटी टेररिस्ट फ्रंट (आतंकवाद विरोधी मोर्चा) के चेयरमैन मनिंदरजीत सिंह बिट्टा ने भी मियांपुर के पीड़ितों को ठगा| उन्होंने घटना के बाद गाँव पहुँच कर सभी पीड़ितों को 25-25 हजार रूपए देने की घोषणा किया था| ग्रामीणों का कहना है कि पच्चीस हजार के बदले पांच रुपया भी नहीं दिया|
लालू राबडी सरकार ने ठगा-श्याम सुन्दर
जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) के प्रदेश प्रवक्ता श्याम सुंदर का ने कहा कि नौकरी देने में तत्कालीन लालू-राबड़ी की सरकार ने ठगने का काम किया। सरकार की ओर से कानून के तीन किताब भेजे गये और बताया गया कि कानून के अनुसार  34 के बदले 11 की नौकरी ही होगी| कमजोर लोगों ने सरकार की बातों पर भरोसा किया। सामाजिक न्याय के लिये विडंबना है कि एक ओर जहां राबड़ी देवी की सरकार सुरक्षा के नाम पर पुलिस पीकेट खुलवाई, उसे कुछ समय के बाद नीतीश कुमार की तत्कालीन सरकार ने हटवा दिया।

वादे नहीं हुए पूरे
तब सरकार के प्रतिनिधियों ने कुल छ: वादे किये थे। सामाजिक न्याय वाले जाकर देखें की कितने वादे पुरे किये गये| एक भी नहीं। मुआवजा की राशि भले ही सभी के बदले मिली किंतु नौकरी नहीं, सडक नहीं, अस्पताल नहीं, स्कूल नहीं, डाकघर नहीं, पुलिस पिकेट नहीं।

आश्वासन का ‘लेटर बॉक्स’
मियांपुर में नरसंहार के बाद तत्कालीन वाजपेयी सरकार में सूचना प्रसारण मंत्री राम विलास पासवान पहुंचे| गाँव में डाकघर खोलने की घोषणा की| अभी केंद्र में खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हैं वे| घोषणा बाद यहाँ एक लेटर बॉक्स पेड़ में टांग दिया गया| कभी चिट्ठी पतरी आयी गयी नहीं| धीरे धीरे बाद में वह जर्जर हो गया|    


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