Tuesday 20 June 2017

श्रेय न हुआ कि राम नाम हो गया, लूट सके तो लूट ले

हर तरफ श्रेय लेने की होड़ मची हुई है| श्रेय न हुआ जैसे राम का नाम हो गया| जितना लूट सकते हो लूट लो| ‘राम नाम की लूट है, लूट सको तो लूट| अंत काल पछतायेगा, जब प्राण जाएगा छूट|’ यही हाल है| जिला मुख्यालय से लेकर प्रदेश मुख्यालय तक| धूमिल की संसद से लेकर सडक तक| श्रेय लूटने की होड़ मची हुई है| कोइ किंग मेकर बनने का दावा कर रहा है तो कोइ किंग बनाने का| क्या किंग खुद से किंग नहीं बना? राजनीतिक सत्ता जब सडक पर चलने के काबिल न हो तो ऐसी ही स्थिति बनती है| सत्ता की हनक अब कहाँ बची है? अब तो सत्ता गली में पड़ी कुतिया हो गयी है जनाब| जिसमें दम हो वह सत्ता को हांक ले जाएगा| सीटें आरक्षित न होतीं तो सत्ता का चरित्र भी नहीं बदलता| सीट आरक्षित हुई तो रिकार्ड बनने लगे| यूं ही थोड़े गढ़ के राणा इस बार भामाशाह बने हैं| इनके बनते ही बनाने का श्रेय लेने की होड़ मच गयी| सबके दावे सामने आये तो खुली चुनौती और खारिज करने का साहस भी सामने आया| अब सत्ता का पलड़ा एक तरफा नहीं रह गया है| इस सच को समझने से कुछ लोग या तबका जानबूझ कर परहेज करते हैं| लेकिन सच यही है कि सत्ता का मिजाज बदला है और शताब्दियों से शोषित, वंचित तबके की राजनीतिक महत्वाकांक्षा अंगडाई लेने लगी है| श्रेय लेने की होड़ राजधानी में भी दिख रही है| सडक का उदघाटन और श्रेय लेने की मची हुई होड़ भी सत्ता और राजनीतिक मजबूरी और उसके चरित्र को ही दर्शाती है| माना जा सकता है कि राजनीति और सत्ता का चरित्र कम से कम भारतीय सन्दर्भ में समाज, संप्रदाय, समुदाय, क्षेत्र के स्तर पर एक सा है|


और अंत में वर्तमान बताती शायरी
कीमत तो खूब बढ़ गई दिल्ली में धान की,
पर विदा ना हो सकी बेटी किसान की|

हर कोई यहाँ किसी न किसी पार्टी के विचारो का गुलाम हैं,
इसलिए भारत का ये हाल हैं, किसान बेहाल हैं. नेता माला-माल हैं|


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