Tuesday 5 August 2014

जीने के लिए चूहा नहीं सरीसृप का भी भोजन


                                                ·         जीवन अभिशाप मगर गजब का जज्बा
·         दुखों के समंदर में रोचक अठखेलियां
·                 बरसात में घर से दूर तंबू का आसरा 
·         कबाड़ चुनना-बेचना, गोह पकड़ना धंधा
                      उपेंद्र कश्यप 
औरंगाबाद के ओबरा प्रखंड में डिहरा लख के किनारे बारुण रोड में अभी मुसहरों की एक टोली ठहरी हुई है। मूलत: डेहरीआन सोन के बारह पत्थर के निवासी हैं। जीवन इनके लिए हमारे नजरिये से अभिशाप से कम नहीं। बरसात के दिनों में खेतों के किनारे पलास्टिक के तंबुओं में जीवन कितना कष्टकर है यह तब ज्ञात होगा जब आप एक रात गुजार कर देखेंगे।1किसी ने कहा था- जिस तरह हमने गुजारी जिंदगी, उस तरह गुजारे कोई एक दिन।वाकई, भले जीवन अभिशाप हो मगर उत्कट जज्बा देखने को मिली। जीवन में प्रेम का कितना महत्व है यह भी बताती है यह टोली। भोजन, कपड़ा और मकान की बुनियादी जरूरतों के घोर अभाव के बीच एक तस्वीर आपको प्रेम करना सीखाती है। दरअसल में दुखों के समंदर के बीच अठखेलियां अधिक महत्वपूर्ण होती है। पति और पत्नी के बीच प्रेम की चरम अभिव्यक्ति दिखी, जब जवाहर मुसहर अपनी पत्नी को पास बिठाकर उसके सिर से जूं निकालते हैं। हमारे समाज में यह जोरु का गुलामसाबित करता है। खुले में ऐसे दृश्य की तो कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। यहां यह रोजर्मे की बात है। हालांकि जब कैमरे का फ्लैश चमका तो दोनों अलग-अलग हो गए। 1साड़ी पहनी एक बच्ची के हाथ में मोबाइल दिखा तो सवाल कर बैठा। जवाब बड़े इत्मीनान का मिला- मोबाइल अब केकरा भिर ना रहत बा?’ यानी जीवन के कई रंग। कभी जस अरोड़ा ने कहा था- जीवन को अगर गंभीर बनाया जायेगा तो शेष क्या बचेगा? यही यहां दिखा। कृष्णा मुसहर ने बताया कि जूता चप्पल जैसे कबाड़ चुनना और फिर डेहरी ले जाकर बेचना काम है। 1बटैया पर पेड़ काटते हैं। खेत खलिहान से गोह (एक सरिसृप) पकड़ते हैं। हम जानते हैं कि चूहा मुसहरों का भोजन है मगर इसने बताया कि वे गोह भी खाते हैं। क्योंकि मीट, मछली और मुर्गा खरीदने की क्षमता नहीं है। चावल या रोटी का जुगाड़ कबाड़ या अन्य काम से हो जाता है। थोड़े मसाले से गोह का शिकार भोजन को स्वादिष्ट बना देता है। जीवन का यही जायका उनको जीने की ताकत देता है। ये महादलित हैं, सरकार के एजेंडे का प्रथम नाम मगर व्यवहारिक दुनिया में नीचे से किस स्थान पर है यह समाज, तय करना भी मुश्किल। राजनीति की अपनी दुविधा है, मगर इस दुविधा और सीमा से पार यह समाज अपने तरीके से जीवन यापन कर रहा है।ऐसे जीवन जीते हैं मुसहर परिवारजागरण

No comments:

Post a Comment