Saturday 2 August 2014

भारी पड रही मैत्री संबन्धों पर स्वार्थपरता


आंतरिक अनुभूति बना देती है मित्र
उपेन्द्र कश्यप
आज विश्व मित्रता दिवस है। वैश्विक होती दुनिया भले ही मुट्ठी में समा रही हो मगर संबन्धों की डोरियां उलझती और लंबी होती जा रही है। संबन्ध अब नि:स्वार्थ नहीं रह गये हैं। विवेकानन्द मिशन स्कूल के निदेशक डा.शंभुशरण सिंह का मानना है कि अनमोल जीवन की अनमोल निधि है मित्रता। व्यक्ति के जीवन को संवारने, संवेदनाओं के संप्रेषण में और विकास को गति देने में मित्रता की महत्वपूर्ण भुमिका होती है। प्राचीन काल से ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं, जिनसे हम प्रेरणा ग्रहण कर सकते हैं। विश्व युद्धों के काल में विभिन्न देशों के बीच के मैत्री संबन्धों के परिणाम सर्वविदित हैं। वर्तमान में पुरी दुनिया शांति स्थापित करने के प्रति चिंतित है। इसका एकमात्र कारण है कि विकास की आपाधापी में मैत्री संबन्धों पर स्वार्थपरता हावी है। व्यक्ति और समाजिक जीवन में भी विश्वास और नि:स्वार्थता पर कायम मित्रता की कडी कमजोर हुई है। मित्रता पर कलंक के दाग भी लगे हैं। आज जरुरत है कि पुरातन काल से स्थापित मैत्री संबन्धों की कडी को स्वर्णिम बनाने की दिशा में हम प्रयास करें और आने वाली पीढियों के लिए बेहतर उदाहरण परोसें। भगवान प्रसाद शिवनाथ प्रसाद बीएड कालेज के सचिव डा.प्रकाश चन्द्रा का मत है कि इस शब्द के जेहन में आते ही मन पवित्र हो जाता है। यही एकमात्र रिश्ता है जो रक्त संबन्ध से अलग है। जब दो व्यक्ति आपस में मिलते हैं तो आंतरिक अनुभूति मित्र बना देती है। जब न स्वार्थ होता है न अपेक्षायें होती है तो संबन्ध प्रगाढ हो जाता है। ग्लोबलाइजेशन के दौर में व्यवसायिकता इतनी हावी हो गई है कि रिश्तों के आयाम बदलते जा रहे हैं। लोग अपने स्वार्थ के लिए मित्र बनाते हैं, जब स्वार्थ की पूर्ति नहीं होती है तो मित्र से शत्रु बन जाते हैं। आज अच्छे मित्र की कमी है। मित्रता को परिभाषित करना उतना ही कठिन है जितना मानवता को परिभाषित करना। राजेश कुमार सिंह उर्फ मंटु सिंह का कहना है कि आपसी समझ खत्म हो गई है। लाभ हानी के आधार पर हम मित्र बनाने लगे हैं।जब मित्र लाभप्रद नहीं रहता तो मित्रता भी नहीं रह जाती। चाहे व्यैक्तिक हो या राजनैतिक। कन्हैया सिसोदिया का कहना है कि मित्रता की परख मुश्किल होती जा रही है। मित्र पर भरोसा कम होता जा रहा है। यह ह्रास है। डा.बशीर बद्र ने शायद इसी सन्दर्भ में लिखा है कि-‘परखना मत परखने में कोई अपना नहीं रहता, किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता।‘

मित्रता पर दिव्यांश की काव्य पंक्ति
मित्रता अतुल्य है, बहुमूल्य है ये भावना, अहम का है समर्पण, संबंध की ये साधना |
सुखद कोमल भावनाओं का समागम मित्रता, प्राण इस संबंध का है वचन की प्रतिबद्धता |
आस्था हो मित्र पर सद् हृदय से व्यवहार हो, सदा कुसुमित रहे कानन बस यही उदगार हो |
सुभेक्षा, संदर्भ रहित, स्नेह का उपहार हो, मित्रता में सदा निज स्वार्थ का प्रतिकार हो |
मन का सामंजस्य  है ये, देव का वरदान है, नमन है उसको जो रखता मित्रता का मान है |


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