Sunday 8 October 2023

जितिया : एक निर्णय से बदल गई परंपरा से चली आ रही दुर्गंध की स्थिति



इमली तल पुरुष करते हैं जीमूतवाहन भगवान का दुग्धाभिषेक 

2018 में विद्यार्थी चेतना परिषद ने लिया निर्णय 

उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) : परंपरा से जकड़ा हुआ समाज के लिए कोई निर्णय लेना सहज नहीं होता। किंतु जब कोई सार्थक निर्णय लिया जाता है तो उसका परिणाम भी बहुत सकारात्मक होता है। लगभग 200 वर्षों से दाउदनगर में जिउतिया को लोक उत्सव के रूप में मनाने की परंपरा है। इसके तहत ही इमली तल बने जीमूतवाहन के मंदिर में व्रत के दिन सुबह में पुरुष दूध से भगवान का अभिषेक करते हैं। यह दूध बहकर नालियों में चला जाता था। दूध बर्बाद हो जाता था और इसके बाद जो सड़ांध निकलती थी, इससे मोहल्ले में रहने वालों के लिए मुश्किल हो जाता था। 15 दिन तक सड़ांध मारता था। माहौल खराब रहता था। लेकिन विद्यार्थी चेतना परिषद ने वर्ष 2018 में निर्णय लिया कि इस दूध को संचित कर खीर बनाकर प्रसाद चढ़ा कर लोगों में बांट दिया जाए। इज़के लिए पीतल की ओखली अरघा के साथ बनाकर रखा गया। अब जो दूध चढ़ाया जाता है व एक पाइप के माध्यम से बड़े बर्तन में जमा किया जाता है। ऐसा किए जाने के बाद से दूध बर्बाद भी नहीं होता। सड़ांध भी नहीं उठता। रहने में समस्या भी नहीं आती और इस प्रसाद के वितरण से लोगों की समृद्धि भी बढ़ रही है।



10 क्विंटल से अधिक दूध होता था बर्बाद 



विद्यार्थी चेतना परिषद के संयोजक ममतेश कुमार ने बताया कि लगभग 10 क्विंटल दूध इसमें बर्बाद हो जाता था। परिषद ने यह निर्णय लिया। इससे प्रसाद वितरण होना शुरू हुआ और मोहल्ले की और परिषद की समृद्धि भी बढ़ती चली गई। विशेषत: जो लोग प्रसाद ग्रहण करते हैं उनके घरों में खुशहाली आई।



निकटवर्ती चौक पर लोग करते हैं अभिषेक



बुजुर्ग रासबिहारी प्रसाद का कहना है कि बच्चे, युवा, वृद्ध सभी दूध से भगवान जिमतवाहन का अभिषेक करते हैं। जैसे विधि विधान के साथ लोग शिव का जलाभिषेक करते हैं। उनके समाज के लोग जहां भी रहते हैं अपने निकटवर्ती जिउतिया चौक पर दुग्ध से अभिषेक करते हैं।



अब सब चौक पर यह परंपरा



पुजारी गुप्तेश्वर मिश्र ने बताया कि काफी समय से यह परंपरा चली आ रही है। यह तर्पण नहीं बल्कि अभिषेक है। संतान के दीर्घायु होने की कामना के साथ पुरुष यहां दुग्ध अभिषेक करते हैं। दूसरे चौकों पर भी यहां की देखा देखी लोग अब ऐसा करने लगे हैं।


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