Friday 24 April 2020

रिश्तों का प्रेम ही सुख, बाकी निराधार राजमहलों या वैभव से नहीं मिलता सुख


(संदर्भ-महाभारत में जयद्रथ बनाम द्रौपदी संवाद से आज तक)
सुख क्या है
क्या राजभवन, ऐश्वर्य, वैभव, संपदा से सुख का कोई नाता है
क्या सब कुछ भौतिक रूप में उपलब्ध होने पर भी उसके भोगने का अधिकार रखने वाले को सुख मिलता है?
इसमें एक और शब्द जोड़ दें-शांति। भोग के लिए उपलब्ध तमाम तरह के भौतिक संसाधनों के बावजूद क्या सुख-शांति व्यक्ति या परिवार को मिल सकता है?
इन प्रश्नों में उलझ गया हूँ। द्रौपदी का जब (बीआर कृत महाभारत में) जयद्रथ हरण करता है तो वह उसे समझाता है कि तुम्हारे पास अब राजभवन नहीं, दास, दासी नहीं रहे। तुम दुखी हो। द्रौपदी कहती है-सुख राजभवन या कुटी से नहीं मिलता।
क्या वाकई ऐसा है
मेरी समझ में नहीं। शायद आपके लिए मायने जो भी हो। दर्जनों उदाहरण आपके आस पास हैं जिसमें आप देखेंगे कि सबकुछ उपलब्ध होने के बावजूद सुख नसीब नहीं होता। व्यक्ति या परिवार सुख की तलाश में कठीन श्रम और यात्रा करता है। करता रहता है जीवन पर्यंत। फिर भी उसे यह नसीब नहीं होता। 
वास्तव में, द्रौपदी ने जो कहा था, वह हमेशा का सत्य है। तब भी था, अब भी है और कल को भी यही सत्य यही रहेगा कि सुख-शांति का संबन्ध भौतिक संसाधनों की उपलब्धता से नहीं है। कुछ हद
तक ही यह संभव हो पाता है, किन्तु अधिकांश समय या मामलों में यह भौतिक संसाधन मात्र सुख ही दे पाता है।
जबकि सुख-शांति मानसिक स्थिति है। इसी कारण सुख-शांति भावनाओं से अधिक करीबी से जुड़ा है। यह वास्तव में भावनाओं से संबंधित स्थिति है। आप खूब ऐश्वर्य, वैभव प्राप्त कर लिए हैं, बड़े-बड़े
भवनों में रह रहे हैं, दुनिया की हर सुविधा उपलब्ध है लेकिन तब भी यह निश्चित नहीं है कि आपको सुख शांति मिल ही जाए। इसकी वजह है व्यक्ति चाहे जितनी ऊंचाई प्राप्त कर ले, उसे सुख के लिए हर हाल में प्रेम ही चाहिए। रिश्तों में मिठास भरने वाला हो प्रेम, अन्यथा सुख-शांति नहीं मिल सकता।
कल्पना करिए स्वयं में, यदि जन्म देने वाली मां, पालनकर्ता पिता, जिसके साथ खेले-पले-बढ़े उन भाई-बहनों से, मित्र-सखाओं से, गुरु से, पत्नी से आपको प्रेम न मिले तो फिर सुख है क्या? खूब आपके पास धन-वैभव-ऐश्वर्य है, बड़े महल हैं, हर भौतिक सुख-सुविधा-संसाधन उपलब्ध है, क्या सुख मिलेगा जब रिश्तों का प्रेम न मिले? हां, प्रेम। प्रेम ही जीवन है। चाहे किसी का हो।

प्रेम, जो जीवन को नीरस बनने से रोकता है, दुखी होने से बचाता है, निराश होने से रोकता है। थकने से रोकता है। ऊर्जान्वित करता है प्रेम। प्रेम मानसिक थकान को दूर करता है। घर को स्वर्ग बनाता है प्रेम, संसाधन नहीं। रिश्तों में मिठास न हो तो क्या विश्राम के लिए आवश्यक रात्रि और क्या श्रम के लिए आवश्यक दिन। सब बेकार।
न विश्राम में शांति और सुख की प्राप्ति होगी, और न ही श्रम के लिए एकाग्रता, शक्ति और उत्साह मिलेगा। ऐसे फिर कैसे आप कोई काम कर सकते हैं। न काम करने में शांति या सुख, न काम का सुख प्राप्त होगा। इसलिए कि रिश्तों में यदि प्रेम नहीं मिल रहा तो व्यक्ति किसी काम का नहीं रह जाता है। 

No comments:

Post a Comment