Friday 10 April 2020

भगाइला कोरोना गमछा लगाईके : मास्क नहीं रहिये गमछा लगाईके

गमछा कितना महत्वपूर्ण है, कभी पिछड़ा होने की पहचान से जुड़ा यह परिधान आज कोरोना के वैश्विक संकट में मास्क की जगह खास अस्त्र बन गया है। इस पर एक पठनीय आलेख:-

गमछा एक पारंपरिक पतली, मोटे सूती का तौलिया है। जो अक्सर भारत, बांग्लादेश और साथ ही दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के विभिन्न हिस्सों में मिलता है। इसका उपयोग नहाने के बाद या पसीने को पोंछकर शरीर को सुखाने के लिए किया जाता है। यह अक्सर सिर्फ कंधे के एक तरफ रखा जाता है। लेकिन बिहार में इसका इस्तेमाल इतना भर नहीं होता। यह बहुपयोगी परिधान है। बिहारियों के मान-सम्मान-पहचान से जुड़ा हुआ एक वस्त्र, जिसे गमछी भी कहा जाता है। जब किसी का मान-सम्मान बढाना हो तो यह अंग वस्त्र कहलाता है। गत वर्ष गमछा सुर्खियों में नकारात्मक कारणों से आया था। तब कहा गया-"भारत कितना बदल गया है, फटा हुआ जींस पहनकर आप कहीं भी जा सकते हैं, और गमछा लेकर आप कहीं भी नहीं जा सकते।" इसके बाद एक अभियान बिहारियों ने चलाया और गमछा का सम्मान बढ़ता गया।
कहते हैं-सब दिन न होत एक समान। दिशा और दशा सबकी बदलती है। गमछा का भी बदल गया है। बिहारियों की आन-बान-शान से जुड़ा, जीवन के दैनिक गतिविधियों से जुड़े गमछे के अच्छे दिन आ गये। भाग्य ने करवट लिया और उसकी दशा बदल गयी। उसका मान बढ़ गया। 
दरअसल कोरोना का वायरस विश्व की कई परंपराओं, धारणाओं, मान्यताओं और व्यवस्थाओं को बदल देने की स्थिति में है। गमछा भला इससे कैसे बचा रह सकता है। बिना बिहारियों के योगदान का भारत कैसे किसी संकट के वक्त रह सकता है। हम तो हमेशा दिशा देने वाले, और दशा बदल देने वाले रहे हैं। इस बार भी उस गमछा ने प्रतिष्ठा हासिल की, देश-दुनिया को कोरोना से लड़ने का एक अस्त्र दिया, जिसे अभी कुछ माह पहले ही हिकारत की नजर से देखा/बताया जा रहा था। ध्यान रहे बीते कई महीने से विश्व समुदाय मास्क के अभाव से परेशान है। ऐसे में इसे कोरोना से बचाव का अस्त्र बनाना/बताना गमछा वर्ग का मान बढ़ाता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 अप्रैल को अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के भाजपा नेताओं से बात करते हुए कहा कि मास्क नहीं गमछा बांधिए। पीएम मोदी ने वाराणसी जिला अध्यक्ष से कहा कि ज्यादा खर्च करने की जरूरत नहीं है। आप लोग अपने गमछा से ही मुंह बांधकर निकलिए। इस दौरान पीएम ने कहा कि मास्क पहनना ही जरूरी नहीं है। बिना वजह खर्च के चक्कर में न पड़ें। पीएम की सलाह पर जिला अध्यक्ष ने वाराणसी में लोगों के बीच गमछा भी बांटने की योजना बनाई है।
अब समझिए! गमछा कितना महत्वपूर्ण वस्त्र है, जो आज एक ऐसे अस्त्र के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे एक अज्ञात शत्रु कोरोना वायरस से बचने में कारगर माना जा रहा है। इसकी इस ताकत को अब पहचाना गया, जबकि बिहारी सदियों से इसका इस्तेमाल करते हैं। धूल-धूप, ठंड से बचने के लिए, लू-लहर, बूंदा-बांदी से बचने के लिए इसका इस्तेमाल हम करते रहे हैं। कपड़ा बदलने के वक्त, सर्दी, खांसी, बुखार के वक्त, कभी नाक-मुंह ढंकने के लिए तो कभी पट्टी बना लेने के लिए इस्तेमाल। कभी गमछा बिछा कर ट्रेन-बस स्टैंड-पार्क-खुले स्थान में सो लेने के लिए इस्तेमाल करते रहे हैं तो कभी यात्रा में खाद्य सामग्री ले चलने के लिए, सत्तू-आटा तक हम तो गमछा में सान लेते हैं, बर्तन न होने की स्थिति में। प्रेमाभिव्यक्ति के लिए कभी गमछा बिछा लेते हैं, तो नफरत होने पर किसी को टांग लेने के लिए भी इस्तेमाल कर लेते हैं। कभी उसे रस्सी बना लेते हैं तो कभी तरल को छानने के लिए इस्तेमाल कर लेते हैं। गमछा पुराण बहुत बड़ा है। गमछा आज सबकी जरूरत बन गया है। जीवन बचाने के लिए। मास्क की जगह अब गमछा अस्त्र से लोग स्वयं को बचा रहे हैं। गमछा अंग वस्त्र तो पहले से था अब अस्त्र भी बन गया है।
स्वयं प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गमछा को जो सम्मान बख्शा है, उससे गमछा का महत्व अब बिहार से आगे राष्ट्रीय हो गया है। क्या कल को यह वैश्विक अस्त्र भी बनेगा-कोरोना से बचाव के लिए मास्क के बदले? प्रतीक्षा करिये। अब तय है कि अब गमछा लेकर आप कहीं जा सकते हैं, कोई रोकने का साहस कतई नहीं करेगा।
जय गमछा, जय बिहारी।

उपेंद्र कश्यप
10.04.2020

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