Wednesday 1 April 2020

कोरोना का साइड इफेक्ट : आत्महत्या हमेशा कायरता है

पुरुषार्थ है संकट से निकलना
संकट आया है तो तय है टलेगा
  1. अपनों का जीवन मुश्किल में
  2.  डालना समाधान नहीं
  3. सरकारी सेवकों को छोड़ 
  4. प्राय: सभी को आर्थिक समस्या

पढ़िए एक विचारोत्तेजक आलेख:- 
० उपेंद्र कश्यप ०
सोशल मीडिया पर लाचार, कमजोर लोगों द्वारा आत्म हत्या किए जाने की सूचनाएं खूब पोस्ट हो रही हैं। इसे कोरोना संकट से उबरने के उपाय के लिए लागू लॉक डाउन का साइड इफेक्ट बताया जा रहा है। इसने विचलित कर दिया। कुछ प्रश्न मन को व्यथित कर रहे हैं। क्या आत्महत्या करने वालों से सहानुभूति होनी चाहिए? आत्महत्या करने वाला चाहे कलक्टर हो या क्लर्क, मजदूर, उसे मैं व्यक्तिगत तौर पर कायर ही मानता हूँ। यूरोपीय देश में पत्रकारिता करने वाले एक सीनियर पत्रकार के पोस्ट पर इस मुद्दे पर चर्चा भी हुई। इसके बाद यह लंबा लिखने को प्रेरित हो गया, अब यह कितना अकिसी को पसंद आयेगा, समर्थन मिलेगा या विरोध इसकी चिंता नहीं है।
नौकरी छूट जाने के डर से, छूट जाने से, आय शून्य हो जाने से आत्म हत्या। यह उचित नहीं है। निश्चित रूप से कायर ही ऐसा कर सकता है। पैरवी पर, जातीय आधार पर, संयोगवश काम मिल जाने वाले ऐसा कर सकते हैं, क्योंकि ऐसे लोग न कर्मठ होते हैं, न ही आत्मविश्वासी, न आत्म स्वाभिमानी। ऐसे लोग कायर होते हैं। हां, थोड़ी सहानुभूति उनसे मेरी रहती है जो जाहिल हैं। पढ़े लिखे, अच्छे पगार वाली नौकरी करने वाले, अच्छा आय वाला रोजगार करने वाले यदि आत्महत्या करते हैं, तो यह सिर्फ कायरता है, और कुछ नहीं।
        
जरा सोचिए, एक परिवार का जिम्मेदार, कमाऊ व्यक्ति आत्म हत्या कर ले तो उस परिवार के बाकी सदस्य का जीवन तो जीते हुए भी नरक में धकेल गया अगला। परिवार के सदस्यों को कितना मुश्किल होगा, होता है। खास कर स्त्री सदस्य, बच्चे और वृद्ध को। भोगवादी और आर्थिक युग में वैधब्य, यतीम होना सबसे बड़ा संकट है। यह कुछ दिन भोजन न मिलने, बढ़िया कपड़ा, खाना न मिलने से अधिक बड़ी समस्या है। 
यह भी विचार करिये, जो और जैसा जी रहा होता है आदमी, उसमें कटौती आर्थिक संकट से हो जाती है। ऐसे में निराश हो कर आत्म हत्या का रास्ता अख्तियार करना, कतई उचित नहीं है।
आज वैश्विक महामारी कोरोना से कौन प्रभावित नहीं है? सिर्फ सरकारी सेवक, जिनके पगार पर कोई फर्क नहीं पड़ना है, और प्राइवेट सेक्टर में कुछ बड़ी कंपनियों के स्टाफ, जिनको पगार मिलेगा, उसके अलावा शब्जी, किराना, दूध और दवा बेचने वालों के अलावा जितने भी लोग हैं, जो कमाते खाते हैं, सबको इस दौर में नुकसान हो रहा है, और अभी अनिश्चित काल तक हानी होगी। किसी को करोड़ों, किसी को लाखों, किसी को हजारों, किसी को सैकड़ों रुपये की क्षति। बहुतों का रोजगार जाएगा, रोजगार रहेगा कि नहीं, यह अनिश्चित है, व्यवसाय अनिश्चित है तो घाटा होना तय है। ऐसी बड़ी आबादी क्या करे? कुछ भी करके, खर्च कम करके, दूसरे विकल्प ढूंढ कर जिया जा सकता है। लोग जी रहे हैं। का कही लोग, के फेर में मत पड़िये। कोई आपका हमवार नहीं हो सकता, कोई आपकी पीड़ा नहीं कम कर सकता, कोई आपकी मदद नहीं कर सकता, रास्ता खुद तलाशना है। संकट और अभाव का यह दौर भी खत्म होगा। इसलिए, कभी भी आत्महत्या की न सोचें। पुरुसार्थ इसी में है कि संकट में खुद को कैसे बचाये रखा जाए और इससे कैसे उबरा जाए। कायरों की कोई मदद नहीं करता। यह ध्यान रखिये, ईश्चर भी नहीं, यदि आप मानते हैं तो।
आत्म हत्या करना समाधान नहीं समस्या पैदा करना है। उनके लिए जिनको आप सबसे अधिक चाहते हैं, जिनके लिए जीते हैं, जिनके लिए श्रम किये थे, उन सबको आत्महत्या करना मुसीबत में डालना है। वह मनुष्य कदाचित नहीं जो संकट में पलायन कर जाए। संकट से जूझना, उससे बाहर निकल कर फिर से नयी दुनिया बसाना, आशा रखना ही पुरुषार्थ है।

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