Monday 27 March 2017

अनुकंपा कुमार बनाम योग्य मुखिया


अभिव्यक्ति की आजादी का इस्तेमाल खूब हो रहा है। सोशल मीडिया ने इसके लिए बड़ा प्लेटफॉर्म मुहैया कराया है। जिसको जो मन में आए वह बक सकता है। कह सकता है। कोई रोक टोक या संपादन का खतरा नहीं। कानून का खतरा तो तब है न जब कोई लड़ने को सामने खड़ा हो। सरकार बनी तो मुखिया की योग्यता पर सवाल उठने लगे। जायज है, लोकतांत्रिक और संवैधानिक धिकार भी। कभी-कभी यह नुचित या हास्यास्पद तब हो जाता है जब हजार छेद वाली चलनी सूप के छेद गिनाने लगे या फिर कहे की उस सूप में बहुत छेद हैं। ऐसा ही हास्यास्पद एक वाकया हुआ। मुखिया की योग्यता पर सवाल उठाया एक न्य प्रदेश के उपमुखिया ने। सोशल मीडिया में इसे लेकर सवाल उठा और शहर ने खूब मजा लिया। एक शहरी ने इस युवा नेता को नुकंपा कुमार बताते हुए टिप्पणी की। रे भाई। नुकंपा वालों पर तो सवाल उठाए ही नहीं जाने चाहिए। जिस जन्म से कोई ताकत प्राप्त करता हो उसके लिए दूसरी कोई भी योग्यता मुकाबले में कैसे खड़ी हो सकती है? जितनी उम्र बेचारे नुकंपा कुमार की हो रही है लगभग उतनी उम्र से वो देश के सबसे बड़ी पंचायत में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। तो क्या ऐसे में यह धिकार है कि वह योग्यता पर सवाल उठाए? शहरी चर्चा में कह रहे हैं कि नुकंपा कुमार से धिक योग्यता तो उनकी है ही नहीं। जायज है। मुङो इस तर्क वितर्क में मसाला मिला। सही है। कोई बच्चा पैदा हो, बड़ा हो और पढ़े या न पढ़े और पहली बार में ही .. बन जाए तो सवाल तो है ही कि उसके आगे पांच बार से सदस्य रहने वाला धिक योग्य तो हो ही नहीं सकता? आखिर कोई भी समाज परिणाम को धिक तवज्जो देता है वनस्पति इसके कि किसी ने वह हासिल कैसे किया जिसके लिए उसकी चर्चा हो रही है।
..और अंत में
श्रम हमेशा सस्ता होता है। जन्मना महानता ही देश की परंपरा रही है। इसे कोई नहीं तोड़ सकता है। जिनकी पॉकेट फटी थी और हर संकट या हार के बाद विदेश यात्रा पर जाते हैं उनकी खासियत भी जन्मना महान होना ही है।

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