Monday 20 March 2017

सुखद आश्चर्य ! गंदी राजनीति में शुद्ध राजनीतिज्ञ !


बाप-दादे के जमाने से सुनता आ रहा हूँ कि –काजल की कोठरी से बिना दाग कोइ नहीं निकल पाता है| बिहार ने हमेशा मिथकों को तोड़ा है और नये मिथक गढा है| बिहार कर्मचारी चयन आयोग (पेपर लिक) काण्ड ने फिर ऐसा ही किया है| देश के अन्य हिस्से के भाई लोग हम बिहारी को समझते ही नहीं हैं| हमने हमेशा देश को नयी दिशा दिया है| उपलब्धियां भरमार पडी हैं भाई लोग| गिनने बैठूं तो पूरा पेज चारे की तरह खा जाउंगा और आप समझते समझते बुढा जाइयेगा| बिहार को समझते क्या है आप लोग? अधिकारी जेल जा सकते हैं नेता भला क्यों जायेंगे जेल? हम नेताओं का तो रोजमर्रे का काम ही है अनुशंषा करना| नेता का कद बड़ा हो या छोटा| यदि अनुशंषा नहीं करेगा तो कैसे आजीविका चलेगी? खेत थोड़े जोत-कोड कर खाना है भाई ! सही तो कह रहे हैं हमारे नेता जी| ‘हमारा काम है अनुशंषा करना| कोइ जनता जनार्दन आवेदन लेकर आता है तो हम उसे निराश कैसे लौटा सकते हैं| जनता तो मालिक होती है| उसे कैसे इनकार भला कर सकते हैं?’ यह छोटी सी बात बिहार में मीडिया और विपक्ष को समझ में नहीं आ रहा तो सत्ताधारी दल या नेता भला क्या करें? उनका दोष क्या है? वास्तव में गाँव से कसबे तक कहा जाता है कि दलों की सीमा फिल्ड तक ही होती है बाकी समय सभी एक ही थाली के चट्टे-बट्टे होते हैं| सभी ने अंदरखाने कई मुद्दों पर एका बना रखी है| इसलिए सभी किसी न किसी छोर को पकड़ कर एक आदर्श स्थापित करने में जुट गए हैं| एक नयी दिशा दे रहे हैं, नया मिथक गढ़ रहे हैं| यह बता रहे हैं कि काजल की कोठरी हो या हमाम नेता ही वह गुण रखता या जनता है कि उससे बिना दागी हुए या भींगे बिन अकैसे निकला जा सकता है| अनुशंषा अधिकारी के लिए अपराध और नेता के लिए आवश्यक विवशता भर है, अपराध नही| अनुशंषा के लिए किसी नेता को दोषी नहीं ठहराया जा सकता| यह मिथक गधा जा रहा है, प्रतीक्षा करीए, कल को कोइ नेता इसे कानूनी जामा पहनने के लिए सदन में बिल लेकर आ सकता है| आमीन, उस भावी दिन के लिए अभी से सभी नेतागणों को शुभकामनाएं|

खैर, इन्हें पढ़ कर हंस लीजिए...
तुम्हारी मेज चांदी की, तुम्हारे जाम सोने के|
यहाँ जुम्मन के घर में आज भी फूटी तराबी है||
(आदम गोंडवी)
राजनीति के मंच पर, चढ़ गए आज दबंग|
फुट-फुट कर रो रहे, ध्वज के तीनों रंग||

(अलबेला खत्री) 

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