Wednesday 30 July 2014

विष, झाड़-फूंक, मनोविज्ञान और विज्ञान


उपेन्द्र कश्यप 
विष, मंत्र, झाड़-फूंक, लोक जीवन का मनोविज्ञान और विज्ञान को समझना आवश्यक है। जिस सांप की हम पूजा करते हैं, उसी से डरते हैं, और देखते ही उसे मारने के लिए दौड़ पड़ते हैं। सच यह है कि अन्य जीवों की तरह ही सर्प भी मनुष्य को देखकर डरता है। हां प्रजनन एवं प्रणय के वक्त हिंसक हो उठता है, ऐसा ही स्वभाव तो मनुष्य का भी होता है। विश्व में लगभग 2600 प्रजातियां सापों की है। इनमें सिर्फ 270 विषैली होती है, और मात्र 25 प्रजातियों के ही काटने से मृत्यु होती है। भारत में हर साल करीब 20 हजार लोग सर्पदंश के शिकार होते हैं। दरअसल भय, भ्रांतियां और अज्ञानता के कारण सर्वाधिक मौतें होती है। सर्पदंश के बाद व्यक्ति दहशतजदा हो जाता है, वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है। मानसिक रूप से जबरदस्त आघात लगता है, और वह मरणासन्न हो जाता है। उसे लोग लेकर सीधे ओझा गुणी के पास जाते हैं। ये लोग तरह तरह के मंत्र जाप करते हैं, पानी छिंटते है और व्यक्ति अचेतावस्था से चेतनावस्था में जाता है, जिसे जिंदा करना बताया जाता है। जब ऐसा नहीं होता तो बाबा कहते हैं कि लाने में देर कर दिया इसलिए जहर नहीं उतारा जा सका। वास्तव में जिसकी चेतना लौटती है वह मरा हुआ नहीं होता और जो मर गया था, उसे जिंदा नहीं किया जा सकता। लोगों को चाहिए कि सर्पदंश के तुरंत बाद अस्पताल ले जायें। इसकी एकमात्र दवा है - ऐंटीवेनय। कोई विकल्प तक नहीं है। सरकार अंधविश्वासों को खत्म करना चाहती है तो अस्पतालों में कम से कम बरसात के मौसम में ही सहीऐंटीवेनयउपलब्ध कराने का बंदोबस्त अवश्य करे।

सभी धर्म संस्कृतियों में पूजनीय हैं सांप
सांपों की पूजा सिर्फ हिंदू धर्म संस्कृति में ही नहीं की जाती है। पुरानी सभ्यताओं में सनातन के साथ यूनान और मिश्र की सभ्यता रही है। दोनों धर्मो में इसकी पूजा की जाती है। यूनान में औषधि की देवता एस्क्लीपियस नागमुखी है। मिश्र में उर्वरता की देवी नागमुखी नारी है। यहां तो सभी प्राचीन फेरों के मुकुट पर सर्प बना होता है। आस्ट्रेलिया में अजगर की पूजा की जाती है तो अमेरिका का एक आदिवासी वर्ग एजटैक सांप को मानव के गुरु के रूप में मानता पूजता है।


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