Sunday 23 September 2018

दाउदनगर वालों, तुमसे तुम्हारे पूर्वज मांग रहे हैं- प्रतिदान

दाउदनगर को गढ़ने वालों जागो●
तुम्हारे पुरखों ने शहर की ख़ास संस्कृति गढ़ी है● सामूहिक संस्कार गढ़ा है● प्रारंभ जितना कठीन होता है, उतना अंत नहीं● 156 वर्ष लगे सरकार के सहयोग लेने में, उसे कोई तुरंत खत्म करता है, तो शहर बनाने वालों की पराजय है● जय हमेशा उनकी होती है जो अगुआ होते हैं● पिछलगुओं का, लीक पर चलने वालों का इतिहास नहीं लिखा जाता●
        ■दाउदनगर जिउतिया लोकोत्सव के लिए है आंदोलन की आवश्यकता।■
जिउतिया डॉक्युमेंट्री में इतिहास बताते

यदि संबत 1917 से ही आगाज मानें तो यहां जिउतिया का ख़ास स्वरूप 158 साल से है। 156 वें वर्ष (2016 में) इसे एक उपलब्धि मिली और मेरी पहल, तत्कालीन चेयरमैन परमानंद प्रसाद, उप चेयरमैन कौशलेंद्र सिंह और ईओ विपिन बिहारी सिंह ने नप में आयोजन कराया था। यह उस यात्रा का प्रारंभ विंदू था, जिसे राजकीय दर्जा हासिल करना है।निस यात्रा को गर्भ में ही (प्रथम वर्ष में) मार देने वाले एसडीएम हैं, और अब दुसरे वर्ष जब इसको पुनः प्रारंभ किया जा सकता है, तो  शहर के जन प्रतिनिधि मार रहे हैं।

आयोजन नहीं कराने के पक्ष में मेरी समझ से कोई तर्क नहीं गढ़ा जा सकता है। अब न कराने वाले जो भी कहें, उनको खुल कर अपनी बात रखनी चाहिए। कारण बताना चाहिए। प्रायः वार्ड पार्षद, उनके प्रतिनिधि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर हैं। उनको सार्वजनिक बात रखनी चाहिए।

लोक कलाकारों को सामने आना चाहिए। बोर्ड और ईओ आपकी नहीं सुन रहे हैं, तो एकजुट होइए। सभी मिलकर एक ज्ञापन दीजिये, जैसा कि एक कलाकार ने मुझे बताया है कि ज्ञापन की तैयारी है। कलाकारों को पूर्व चेयरमैन परमानन्द प्रसाद और वीसी कौशलेंद्र सिंह को पकड़ना चाहिए। उनसे नेतृत्व करने को कहिये। हालांकि अच्छा होता वे दोनों खुद नेतृत्व के लिए आगे आएं। कौशलेंद्र जी परमानन्द जी की अनुपस्थिति (बोर्ड) के बावजूद दो की ताकत खुद रखते हैं। कई वार्ड पार्षद हैं जो चाहते होंगे कि आयोजन हो, वे भी साथ आ सकते हैं।

शहर को आयोजन न होने से कितना नुकसान होगा, इसकी कल्पना नहीं कर सकता कोइ भी वह व्यक्ति जिसे संस्कृति की समझ नहीं है।
मुझे लगता है कुछ गिने चुने लोग हैं जो हो सकता है चाहते हों कि आयोजन न हो। इसकी वजह उनकी "प्रभुवादी सोच" है। उनको लगता होगा कि यह उत्सव समाज के निचले तबके का है, इलीट वर्ग का नहीं है। जो जातियां इस समारोह में भागीदार हैं, जिन्होंने अपने पूर्वजों के इस धरोहर को पृथ्वी के एक कोने में सुरक्षित बचा कर रखा है, वही वर्ग नप बोर्ड में प्रभावशाली संख्या में है। शहर उनका है, शहर की संस्कृति उनकी है, शहर का संस्कार उन्होंने गढ़ा है।

इस संस्कृति को, संस्कार को बचाना और आगे बढाने का दायित्व भी उसी जमात के वंशजों और पीढ़ी का है। आप खुद नहीं जागेंगे, तो कोई आपको ना पसन्द करने वाला जगाने नहीं आयेगा। यह कतई संभव नहीं है, कि आप सोये रहिये और विरोधियों से अपेक्षा रखिये कि वे आपको नींद से झकझोरकर जगाने आएंगे। न ऐसा इतिहास में हुआ है, न वर्तमान में हो रहा है, और न ही भविष्य में होगा।

(आज कई फोन मैसेज आये। इसलिए लिख रहा हूँ। शहर को तुरंत आंदोलन की आवश्यकता है। आखिर क्यों नहीं नगर परिषद "दाउदनगर जिउतिया लोकोत्सव" का आयोजन कर रहा है?)

1 comment:

  1. सही बात। इस धरोहर को बचाने के लिए जब जन प्रतिनिधि ही पीछे हट जाएंगे तो फिर तो आंदोलन ही एक रास्ता बचता है।

    ReplyDelete