Saturday 19 March 2016

दैनिक भास्कर में भाई संजीव चन्दन की प्रकाशित पुस्तक समीक्षा

श्रमण संस्कृति का वाहक दाउद नगर
संजीव चन्दन
दैनिक भास्कर में भाई संजीव चन्दन की प्रकाशित पुस्तक समीक्षा 07.03.2016
दाउदनगर कलाकारों की जगह है, जहाँ पूरा शहर आश्विन मास की द्वितीया तिथि को  (प्रायः अक्तूबर में ) भांति –भांति के स्वांग रचता है, लावणी और झूमर गीत गाते हुए रात –रात भर झूमता है . इस छोटे से शहर में भांति –भांति की कलाएं साधी हैं, कलाकारों ने . पानी पर घंटो सोये रहने की कला या जहरीले बिच्छुओं से डंक मरवाने का करतब. स्वांग रचाते हुए कोई छिन्न मस्तक हो सकता है तो कोई अपने हाथ पाँव को अलग करता हुए दिख सकता है . आश्विन मास की आयोजन की रातों में पूरे शहर में कई लोग  अलग –अलग देवी –देवताओं की स्वांग में होते हैं तो कई लोग राजनीतिक व्यंग्य करते हुए अलग –अलग नक़ल –अवतारों में . कई लोग घंटों स्थिर मुद्रा में खड़े या बैठे होते हैं , पलक झपकाए बिना , कहीं बुद्ध बने तो कहीं कृष्ण या काली .
मुझे जब पहली बार दाउदनगर के इस कला –उत्सव का पता चला तो लोगों ने यह भी बताया कि इसके इतिहास की जानकारी के लिए स्थानीय पत्रकार उपेन्द्र कश्यप से संपर्क करना चाहिए . दाउदनगर के सांस्कृतिक इतिहास में विशेष रुचि रखने वाले उपेन्द्र कश्यप की किताब आई है, ‘ श्रमण संस्कृति का वाहक दाउद दाउदनगर’ .  
दाउदनगर के वासी इसे वाणभट्ट का भी शहर बताते हैं . कादम्बरी के रचनाकार वाणभट्ट को आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने ‘वाणभट्ट की आत्मकथा’ में नाट्य विधा में निपुण बताया है. द्विवेदी जी ने अपनी रचना का श्रेय मिस कैथराइन को दिया है , जो ७५ वर्ष की अवस्था में भी सोन क्षेत्र में घूम कर वाणभट्ट के सन्दर्भ में सामग्री जुटाती रही थीं , जिसे उन्होंने द्विवेदी जी को दिया था . स्वांग रचाता यह शहर कई –कई वाणभट्टों का शहर प्रतीत होता है .  कला उनके लिए आय का साधन नहीं है, अलग –अलग पेशों से जुड़े दाउद नगर वासी कला के संधान में लगे हैं , क्या डाक्टर , क्या इंजीनियर या प्राध्यापक , सब के सब स्वांग रचाने के पर्व में सोल्लास शामिल होते हैं .
स्वांग रचने के उत्सव की शुरुआत का इतिहास दाउदनगर के गायकों के गीतों में दर्ज है , उनके गीतों के अनुसार संवत 1917 यानी १८६० इसवी में कभी इस इलाके में महामारी फैली थी. तब महाराष्ट्र से आये कुछ संतों ने दाउद नगर की सीमाओं पर ‘बम्मा देवी’ की स्थापना की और रात –रात भर जागते हुए महीने भर उपासना करवाई . तब से यह उत्सव  जीवित पुत्रिका व्रत ( जीतिया ) के रूम में मनाया जाने लगा. ब्रिटिश कालीन गजेटियर के अनुसार १८६० के आस –पास  का समय विभिन्न महामारियों का समय है , जिससे लड़ने के लिए ब्रिटिश सरकार स्वास्थ्य सेवाओं की योजनायें बना रही थी, लागू कर रही थी .
लावणी में सामाजिक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व की गाथाएं गाई जाती हैं , धार्मिक मिथों के अलावा . सोण नदी पर बने नहर का विशद वर्णन एक लावणी में दर्ज है कि कैसे अंग्रेजों ने जनता के पालन के लिए नहर खुदवाया, कि नहर की कितनी गहराई , चौड़ाई है और कैसे नहर के लिए अभियंताओं ने नक़्शे आदि बनवाये .
यह किताब दाउदनगर के सामाजिक , राजनीतिक इतिहास का भी विवरण देती है. दाउदनगर को बसाने वाले दाउद खां के शासन और उसकी जनपक्षधरता का विस्तृत उल्लेख किया गया है. शहर कुरैशियों, तांती ,पटवा ठठेरा आदि पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों की आबादी वाला है – जिन्होंने इसकी संस्कृति को अपने श्रम –मूल्य के आधार पर रचा है – साहचर्य और सौहार्द के इस शहर की नीव में श्रमण –परंपरा ही है . उपेन्द्र कश्यप की किताब इसका बखूबी विवरण देती है . 
पुस्तक : श्रमण संस्कृति का वाहक दाउद नगर
       लेखक : उपेन्द्र कश्यप
       प्रकाशक : उत्कर्ष प्रकाशन
       मूल्य : 500 रूपये



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