Thursday 20 August 2015

पांच बार रहे विधायक लेकिन सादगी पसंद
·         संघर्ष के योद्धा को कर लो याद जरा
·        शिक्षक से त्यागपत्र दे बन गए नेता
उपेन्द्र कश्यप
 समाज की राजनैतिक, परंपरागत धारा को तोड़ना, मोड़कर नई राह बनाना 80 के दशक में मुश्किल कार्य था। तब सामाजिक समीकरण, राजनीतिक वरदहस्त प्राप्त होने के कारण इतना सघन था कि उसके खिलाफ बोलना, अपनी भावनाएं व्यक्त करना समाज के पिछड़े तबके के लिए कठिन था। ऐसे सामाजिक राजनैतिक परिवेश में शिक्षक रामशरण यादव ने क्रांतिवीर की तरह सबकुछ बदल कर रख दिया। सन 1977 में जब विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू हुई तो हसपुरा प्रखंड के टनकुप्पी गांव में जन्में श्री यादव, रामचरित्र यादव एवं सूर्यदेव यादव (तीनों माध्यमिक स्कूल के शिक्षक) तथा आयुर्वेद चिकित्सक डा. राधेश्याम सिंह भाकपा का संगठन नक्सलबाड़ी आंदोलन से प्रेरित होकर खड़ा कर रहे थे। विचार के केन्द्र में था कि बिना राजनीतिक ताकत हासिल किए सामाजिक बदलाव संभव नहीं और न ही प्रतिष्ठा प्राप्त होगा। तब यह तबका हासिए पर था। लगातार 1962, 67 एवं 72 में ठाकुर मुनेश्वर सिंह विधायक रहे और विपक्ष में नंद कुमार शर्मा। तब नये परिसीमन के कारण कोंच गोह से अलग हो गया और नया क्षेत्र बना हसपुरा-गोह विधानसभा क्षेत्र। चुनाव लड़ना तय हुआ। शिक्षक की नौकरी त्यागने से पीछे हट गए रामचरित्र यादव लेकिन मित्र मंडली ने ऐसा करने के लिए रामशरण यादव को तैयार कर लिया। भाकपा के टिकट से लड़े और जिला में लाल झंडा, वामपंथ का सबसे मजबूत किला बनाया। पांच बार विधायक रहे, लेकिन सादगी इतनी कि वर्तमान राजनीतिज्ञ लजा जाए। उनकी शालीनता, दयालुता, सहृदयता का कायल विपक्षी भी रहे।
                 



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