Tuesday 11 August 2015

राजनीतिक भागीदारी के लिए वैश्यों की एकजुटता मुश्किल ?

राजनीतिक भागीदारी के लिए वैश्यों की एकजुटता मुश्किल ?

100 से अधिक सीटों पर निर्णायक हैं वैश्य
राजनीतिक जागरुकता और एकजुटता का अभाव
उपेन्द्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) बिहार बिधान सभा की करीब आधी सीटों पर वैश्य समाज का खासा प्रभाव है। प्राय: हर क्षेत्र में राजनैतिक दलों को चंदा देने वाला यह समाज राजनीतिक भागीदारी के मुद्दे पर पिछडा हुआ है। धन, जन, शिक्षा होने के बावजूद इस पिछडेपन की वजह साफ है कि राजनैतिक जागरुकता का घोर अभाव है और समाज 56 उपजातियों में विभाजित है। इस जाति के वर्तमान विधान सभा में मात्र 12 विधायक हैं। इस संख्या को कम नहीं भी माना जाता अगरचे कि इसमें कोई वोकल होता। उसकी उपस्थिति मीडिया और बडे राजनैतिक आयोजनों में महत्वपूर्ण उपस्थिति होती। इस जमात को एकजुट करने का कार्य प्राय: चुनाव के वक्त जोर पकडता है और फिर बाद में शिथिल हो जाता है रहा है। प्राय: सभी उपजातियों के अपने संगठन हैं। राष्ट्रीय वैश्य महासभा का गठन 1965 में डा.दुखन राम ने इसी उद्देश्य से किया था कि सब अलग अलग अपनी जाति के उत्थान के लिए सक्रिय होते हुए भी एक बनें। इससे राजनीतिक दबाव बनाया जा सकता है। राजद के तेज तर्रार नेता रहे बृजबिहारी प्रसाद की हत्या जब 13 जुलाई 1998 को हुई, तो इस संगठन का अभियान शिथिल पडता रहा। साल 2004 से बीजेन्द्र चौधरी (राष्ट्रीय अध्यक्ष), समीर महासेठ (बिहार अध्यक्ष) पी.के.चौधरी और डा.पेम कुमार गुप्ता ने इसे सक्रिय किया। अब औरंगाबाद में डा.प्रकाशचन्द्रा इस काम को आगे बढाने का प्रयास कर रहे हैं। एक सर्वे के मुताबिक बिहार में 81 सीट ऐसे हैं जहां इस जमात की आबादी 65000 है। कुल 43 सीट पर करीब 50000 और 130 सीट ऐसी है जिस पर 25000 की आबादी इस जमात की है। यानी अपनी रणनीतिक राजनीति की बदौलत अगर यह जमात एकजुट हो तो कम से कम 100 सीटों पर निर्णायक जीत हासिल कर सकता है या किसी को हरा-जीता सकने का मद्दा रखता है। यह अगर नहीं हो रहा तो वजह साफ है कि एकजुटता का अभाव है। जागरुकता नहीं है। नेता वैसा नहीं मिला जो मूखर हो और समाज में राजनीतिक जागरुकता का घोर अभाव है।       


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