Friday 7 February 2020

मोबाइल विंध्वंसक भी, बच्चों को जानना जरुरी कि क्या देखें:-अखिलेन्द्र मिश्रा


अंतरराष्ट्रीय बाल फिल्म महोत्सव दाउदनगर में क्या कहा अखिलेन्द्र मिश्रा ने--
दाउदनगर के संस्कार विद्या में विद्या निकेतन स्कूल समूह द्वारा आयोजित बिहार के प्रथम अंतर्राष्ट्रीय बाल फिल्म महोत्सव में अभिनेता अखिलेन्द्र मिश्रा ने कई बड़ी बात बच्चों के लिए कही है। जिसे अमल में ला कर बच्चे वाकई में कमाल कर सकते हैं। सबसे बड़ी बात मोबाइल के इस्तेमाल को लेकर कही। कहा कि सिनेमा के क्षेत्र में बच्चों के लिए नगण्य काम हो रहा है। स्पाइडरमैन बनता है विदेश में तो बच्चे खूब देखते हैं। सरफरोश फिल्म के मिर्ची सेठ ने कहा कि भारतीय सिनेमा तो फ़िल्म ही नहीं बना रहा बच्चों के लिए। बच्चों के बारे में इतना कोई नहीं सोचता, जितना सुरेश गुप्ता सर ने सोचा। पुरी दुनिया मुट्ठी में है, मोबाइल में सिनेमा, सीरियल, न्यूज, सब है। दुनिया मोबाइल में सिमट गई है। मोबाइल रहना भी जरूरी है किंतु एक तय उम्र में। और यह भी जानना जरूरी है कि कब, कितना और क्या देखने के लिए इस्तेमाल करना है। मोबाइल का प्रयोग, उपयोग करना जानना आवश्यक है। इसमें बहुत कुछ है। यह बहुत विन्ध्वंसक भी है। यह शरीर के 70 फीसदी पानी को सोख लेता है, चूस लेता है। दिमाग-मस्तिष्क की जितनी बीमारियां हो रही हैं, इसका खास कारण मोबाइल है। सॉफ्टवेर है मस्तिष्क जो अद्भुत है। लिक्विड का स्त्राव होता है। जो मोबाइल से बाधित होता है।

अनुशासन से जीवन में कमाल तय:-
लिजेंड ऑफ़ भगत सिंह के चंद्रशेखर आजाद ने कहा कि जितना अनुशासित रहेंगे उतना बढ़िया काम जीवन में होगा। अनुशासित हैं तो जीवन में कमाल होना तय है। कामाल होगा ही। एकाग्रचित होना भी आवश्यक है। सफलता की कुंजी एकाग्रचित होने में है। लक्ष्य पर फोकस कीजिये। सफल होइएगा। जो आप पाना चाहते हैं, उस पर फोकस करिये।

मन को समझिये:-

लगान के अर्जुन अखिलेन्द्र मिश्रा ने कहा कि चेतन और अवचेतन दो मन हैं। चेतन मन सीखता है, जैसे साइकिल चलाना सीखना। साइकिल चलाते चलाते दो चार दोस्तों को हैलो कर रहे हैं, यह अवचेतन मन है। चेतन अच्छा-बुरा, सही-गलत की पहचान करता है। यह उसकी क्षमता है। चेतन मन जो करता है वह अवचेतन मन में  संग्रहित हो जाता है। इसलिये अवचेतन मन में हमेशा सही चीज ही संग्रहित करिये।

नाटक का तकनीकी विस्तार सिनेमा है:-
उन्होंने कहा कि नाटक का ही तकनीकी विस्तार सिनेमा है। नाटक और सिनेमा के अंतर को जब तक नहीं जानिएगा, तब तक साहित्य से नहीं जुड़ियेगा। जब तक साहित्य से नहीं जुड़ियेगा, तब तक सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना का जागरण नहीं होगा। कैसा सिनेमा देखना चाहिए, क्या है सिनेमा यह जानिए।

संस्कृति हो तो दाउदनगर जैसी:-
माइथोलॉजिकल धारावाहिक के रावण श्री मिश्रा ने स्कूली बच्चों की ओर इशारा करते हुए कहा कि हम इतने शरीफ नहीं थे। गजब की अनुभूति हो रही है, जिसको शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। दाऊ नगर या दाऊद नगर, जो हो संस्कृति ऐसी ही होनी चाहिए। ऐसी परंपरा हो। भारत में कभी कभी शायद होता है अंतरार्ष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव। बिहार में तो हुआ ही नहीं। शिक्षा के साथ साथ सिनेमा भी बच्चों के लिए महत्वपूर्ण है, यह सोचना काफी महत्वपूर्ण है। मेरे जमाने में सिनेमा देखना मना था। सिनेमा देखने के लिए पिटाई होती थी, अब सिनेमा में ही चला गया। 

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