Wednesday 5 June 2019

विश्व पर्यावरण दिवस पर क्या बोले ग्लोबल प्रोफेसर डॉ. सुरेश बोहिदार

चेतिये अन्यथा ऑक्सीजन मिलना भी हो जाएगा मुश्किल-डॉ. सुरेश बोहिदार
फोटो-उपेन्द्र कश्यप, डॉ. बोहिदार और भाई रंजन
विश्व पर्यावरण दिवस पर वनोषधियों के जंगल में गोष्ठी

ग्लोबल प्रोफेसर, लेखक, पर्यावरणविद व आयुर्वेदाचार्य शामिल

विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर बुधवार को दाउदनगर अनुमण्डल के देवकुंड स्थित नीलकोठी बाघोई में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस आयोजन की विशेषता यह रही कि गोष्ठी किसी एयर कंडीशन या कूलरों के बीच नहीं, बल्कि वनोषधियों के जंगल के बीच विचार-विमर्श किया गया। जहां करीब दो सौ प्रकार के वनोषधि हैं, और आयुर्वेदिक दवाइयां तैयार करने का इंतजाम। आरसीई रुड़की के निदेशक ग्लोबल प्रोफेसर डॉ. सुरेश बोहिदार, लेखक उपेंद्र कश्यप, आयुर्वेदाचार्य डॉ. राधेश्याम यादव, पर्यावरणविद भाई रंजन, आयुर्वेद औषधि के जानकार अरविंद तिवारी, वनोषधियों का जंगल रेत के खेत में तैयार करने वाले मदन किशोर सिंह, भोला सिंह एवं अन्य किसान शामिल हुए। गोष्ठी का निष्कर्ष यह निकला कि प्रकृति में कोई रोग नहीं है। दोष व्यवस्थापक का है। जब सोन के छाडन में रेत पर जंगल तैयार हो सकता है तो पर्यावरण संरक्षण बहुत मुश्किल काम नहीं है। आवश्यकता इस बात की है कि लोग जागरूक हों, अपनी जिम्मेदारी समझें और मानव समाज के लिए अपना योगदान दें, अन्यथा आने वाले वक्त में ऑक्सीजन लेकर चलना मजबूरी होगी, जल मिलना मुश्किल होगा। मानव जीवन के वजूद पर खतरा होगा। इसके लिए प्राथामिक स्कूल के बच्चों से जागरूकता की शुरुआत करना आज अति आवश्यक है।


प्राण विद्या पीठ के अध्यक्ष डॉ. सुरेश चंद्र बोहिदार ने कहा कि प्रकृति और पर्यावरण आपस में जुड़े हुए हैं। ये जाहिर है कि जब तक पर्यावरण का हम सुधार न करेंगे तब तक प्रकृति भी नहीं सुधरेगी, जिसका मनुष्य एक अंश है। पर्यावरण के लिए लोगों को जागरूक करना आवश्यक है। बच्चों से लेकर वृद्धों तक, प्राइमरी से ही पर्यावरण के बारे में शिक्षा आवश्यक होना चाहिए। यह भी जाहिर है कि पर्यावरण को हम इग्नोर करेंगे तो आगे चल कर पानी और फिर ऑक्सीजन भी मिलना मुश्किल हो जायेगा। जल संचय भी जरूरी है। ग्लोबल लेबल पर जो वार्मिग देखने को मिल रहा है, गर्मी बढ़ रही है हर वर्ष, यह विश्व के लिए चेतावनी है। अभी से चेतना आवश्यक है। प्रयास जारी रखे हैं और रखेंगे।

लेखक उपेन्द्र कश्यप ने कहा कि पर्यावरण की जागरूकता के लिए बच्चों को टारगेट करना होगा। नई पीढ़ी ने पूर्व के मौसम और जल की सहज उपलब्धता को देखा नहीं है, इसलिए उसे संकट समझ में नहीं आता। इसलिए मिडिल स्कूल से लेकर इंटर के बच्चों को बदलते मौसम के मिजाज, बढ़ती गर्मी, जल संकट के बारे में बताना होगा, आगाह करना होगा। तभी सफलता मिलेगी।

पर्यावरणविद रंजन भाई ने कहा कि पर्यावरण दिवस पर प्राण विद्या पीठ के सभी सदस्यों ने जन जन को जागरूक करने का संकल्प लिया है। जनसंख्या पर नियंत्रण और पेड़ पौधे का सम्मान करना होगा अन्यथा जीवन नहीं बचेगा। पूर्वज नदी में पानी देखा, हम बोतल में आने वाली पीढ़ी के लिए पानी देखना मुश्किल होगा। ऑक्सीजन का सिलेंडर लेकर चलना पड़ेगा। धरती का जीवन 90 साल और है। नहीं सुधरे और चेते तो मानव जीवन का अंत हो सकता है।

आयुर्वेदाचार्य डॉ. राधेश्याम यादव ने कहा कि प्रकृति में कोई रोग नहीं है। व्यवस्थापक दोषी है। व्यवस्थापक सरकार है। हमारा आहार-विहार, रहन सहन, खान पान बदल गया है। अशुद्ध हो गया है। जरूरत है कि आम जनता की चेतना जगाई जाए। पेड़ पौधे, जलाशय की व्यवस्था की जाए तो कुछ दिन में जलवायु पर नियंत्रण पाया जा सकता है, किन्तु शर्त यह है कि यह जनहित में हो।

अरविंद तिवारी ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण मानव जीवन के लिए आवश्यक है। हम पर्यावरण से ही बने हैं। इसका संरक्षण नहीं करेंगे तो हम नष्ट हो जाएंगे। गर्भ काल से लेकर मृत्यु तक पर्यावरण पर ही निर्भर हैं हम। हमको संतुलित रहना होगा। अन्यथा बर्बाद होना तय है। पर्यावरण संरक्षण से आहार की संस्कृति कायम कर ग्राम स्वावलंबन का प्रयास कर रहे हैं। कहा कि यहां वनोषधियों का परंपरागत उपयोग किया जा रहा है। फूड कल्चर में शामिल किया जा रहा है।


मदन किशोर सिंह ने कहा कि
आयुर्वेद आहार है और आहार में ही औषधि है। उसका मेडिसिन में प्रयोग कर आयुर्वेद को मारने की कोशिश की गई है। मरीज जो आते हैं, उनको उनके इस्तेमाल के लायक औषधि दिया जाता है। सेवा से सेवा का समन्वय बनाया जाता है।
कहा कि औषधीय और फलदार वृक्ष हैं। मकसद है पर्यावरण और समाजहित। दिव्य औषधियों को जीवित करना। मजदूर- किसान- संस्था साझेदार होंगे। अर्थव्यवस्था मिलीजुली होगी। समाज को निरोग बनाने के लिए काम कर रहे हैं।

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