Sunday 1 July 2018

संघी धन के सामने नाचे सामाजिक न्यायवादी, लोहियावादी और धर्मनिरपेक्ष स्वंयभू

(संदर्भ-बनिया के शहर में राजनीति की बनियागिरी)
उपेन्द्र कश्यप-(लेखक-"श्रमण संस्कृति का वाहक-दाउदनगर")


नगर परिषद दाउदनगर का चुनाव कुछ स्पष्ट रेखा खींच गया। यह साफ हो गया कि धन-लाभ के आगे नीति, सिद्धांत, वाद का कोई वजूद नहीं होता। ईमानदारी सापेक्ष होती है-वह ईमानदार है, किन्तु फलाने से अधिक है, या कि कम है। यह साफ-साफ दिखा। कथित सामंती और लूटेरे की छवि प्रतिद्वन्दी या कह लें कि प्रतिकूल रहने वाले व्यक्ति की गढ़ दी गई। राजनीति ऐसा काम हमेशा करती है। बनिया का (आबादी की बहुलता और सहनशीलता की प्रवृति के कारण) यह शहर है। बनियागिरी स्वाभाव में है। राजनीति भी बनिअऊटी पर जब उतारू हो जाये तो बनियागिरी चरम पर दिखती है। खरीद बिक्री का रिवाज संसद से सड़क तक एक ही प्रवृति की है। अब जब बिकना और खरीदना होता है तो किसी वाद से क्या मतलब? जिस परिवार को स्वघोषित सामाजिक न्याय वाले, समाजवादी, लोहियावादी और धर्मनिरपेक्षता के झंडाबरदार जनसंघी कहते रहे, एक तरह से संघी होने को गाली बना दिये, वे लोग लाइन लगा कर खुद को बेच दिए। या मूल्यवान को बिकने में सहयोगी बने। हद है न यह, अटपटा लग रहा है क्या आपको? एक टिप्पणी आई थी-'जब कम मूल्य मिलते थे तो खरीदने वाला बिकने वाले के घर पहुंचता था। चुपके से बड़े अदब से पैसे दे देता था। इस बार बिकने वाले खुद ही क्रेता के घर कतारबद्ध हो गए।' भाई कीमत जो ऊंची थी।  बिकने में लाज शर्म नहीं आई, बल्कि डर था कि कहीं संख्याबल की राजनीति में खरीदने से ही सामने वाला इनकार न कर दे, सो बिकने की हड़बड़ी भी दिखी। कुछ लोग बिके नहीं, कुछ खरीदे नहीं जा सकते थे, लेकिन इनकी संख्या एक हाथ की उंगली पर गिनी जा सकती है। बिकने वालों में वैसे लोग भी शामिल हैं जो रोज सुबह से शाम तक भाजपा, जनसंघ, आरएसएस और मोदी को गलियाते हैं। भाई लोगों को जब संघी के साथ लाभ दिखा तो बिकने में हिचके नहीं। इस बिकने को लबादा ओढ़ाया गया कि सामंती और लूटेरे से शहर को बचाना है। कुछ ने लबादा दिया कि बनिया के शहर में बनिया को ही ताज मिलना चाहिए। लेकिन शहर और जातीय वर्ग हित को बचाने निकले किसी ने इसी नाम पर सामने वाले से पैसे लेने से इंकार करना तो छोड़िए हिचक तक नहीं दिखाई। यह है समाजवाद, जातिवाद, वर्गहित और सबसे अंत में शहरहित। क्या बात है, बिकिये, लेकिन 'वाद' के लबादे में, बिकिये खुद के हित में और कहिए-
"हम तो निकले हैं शहर बचाने जनाब।
अपना घर फुंक सको तो साथ चलो।।"

वार्ड वार विजेता वार्ड पार्षद की जाति:-

वार्ड संख्या 01 से जागेश्वरी देवी-पासवान, वार्ड संख्या 02 से सीमन कुमारी-कोइरी, वार्ड संख्या 03 से तारीक अनवर-अंसारी, वार्ड संख्या 04 से शकीला बानो-अंसारी, वार्ड संख्या 05 से बसंत कुमार-माली,वार्ड संख्या 06 से सुहैल राजा उर्फ सुहैल अंसारी-अंसारी, वार्ड संख्या 07 से राजू राम-रविदास, वार्ड संख्या 08 से हसीना खातून-अंसारी, वार्ड संख्या 09से सुमित्रा साव -तेली, वार्ड संख्या 10 से कांति देवी -मल्लाह, वार्ड संख्या 11 से प्रमोद कुमार सिंह-चंद्रवंशी, वार्ड संख्या 12 से मीनू सिंह-राजपूत, वार्ड संख्या 13 से दीपा कुमारी-रौनियार वैश्य, वार्ड संख्या14 से सुशीला देवी-गंधर्व, वार्ड संख्या 15 से ममता देवी-कुम्हार, वार्ड संख्या 16 से ललिता देवी-कुम्हार,वार्ड संख्या 17 से लिलावती देवी-तांती, वार्ड संख्या18 से सोनी देवी-स्वर्णकार, वार्ड संख्या 19 से पुनम देवी-कुम्हार, वार्ड संख्या 20 से रीना देवी उर्फ रीमा देवी-तांती, वार्ड संख्या 21 से दिनेश प्रसाद-तेली, वार्ड संख्या 22 से नंदकिशोर चौधरी-पासी, वार्ड संख्या 23से सीमा देवी-चंद्रवंशी, वार्ड संख्या 24 से कौशलेन्द्र कुमार-राजपूत, वार्ड संख्या 25 से पुष्पा कुमारी-यादव,वार्ड संख्या 26 से इंदु देवी-रजक व वार्ड संख्या 27 से सतीश कुमार-यादव।

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