Wednesday 10 February 2016

रामनरेश सिंह : संघर्ष, जेल यात्रा और सजा


अंग्रेजों ने रखा था 5000 का इनाम
रामनरेश सिंह की 104 वीं जयंती पर विशेष
उपेन्द्र कश्यप
आज गुरुवार को रामनरेश सिंह की 104 वीं जयंती है। वे स्वतंत्रा संघर्ष में कई बार जेल गये थे। चार महीने की उन्हें सजा भी काटनी पडी थी। उनके जीवन की सघर्ष, जेल यात्रायें और सजा पहचान हैं। उनका जन्म अनुमण्डल के गोह प्रखण्ड के बुधई ग्राम में 11 फरवरी 
1912 को हुआ था। 23 फरवरी 1978 को लम्बी बीमारी के कारण इनका निधन पीएमसीएच पटना में हुआ था। प्राथमिक शिक्षा गोह और माध्यमिक शिक्षा राजकीय हाई स्कूलटेकारी से प्राप्त किया था।
उतकर्ष के अनुसार 1930 में नमक आंदोलन में इन्हें गिरफ्तार करके 4 महीने की सजा दी गई थी। यह उनके स्वतंत्रता-संघर्ष में जेल जाने की शुरूआत थी। गोलमेज सम्मेलन की असफलता के बाद तत्कालीन गवर्नर विलिंगटन ने गाँधी-इरविन समझौते को तोड़ना शुरू किया। विरोध करने पर क्रुरता-पूर्वक दमन अंग्रेजों ने किया। इसका विरोध करने पर उन्हें गिरफ्तार किया गया। 1934 में फुलवारी शरीफ जेल में रखे गए। बाहर आये तो बद्रीनारायण सिंह को सहयोग करते हुए चैरम आश्रम की स्थापना 1936 में की। 1942 में इनके क्रांतिकारी भाषण से प्रभावित उग्र भीड़ गोरी सरकार के खिलाफ नारे लगाती हुई स्थानीय गर्ल्स स्कूल के निकट आबकारी गोदाम पर हमला कर दी और शिफ्टन उच्च विद्यालय (अब अषोक इंटर स्कूल) में तोड़-फोड़ की। ओबरा पोस्ट आफिस जला दिया गया। हिंसक घटनाओं को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने इन पर 5000 रू. का इनाम रख दिया। वे गिरफ्तार कर लिए गए लेकिन जल्द ही अंग्रेज पदाधिकारी मिस्टर आईक की गलती का फायदा उठाते हुए जेल से भाग निकले। आंदोलनकारियों को गुप्त रूप से नेतृत्व प्रदान करते रहे। 1943 में इन्हे आल इण्डिया डिफेन्स एक्ट नजरबंदी कानून के तहत गिरफ्तार कर लिया गया और गया के सेंट्रल जेल में 14 नं. सेल में रखे गए। जेल में रहते हुए इन्होनें कई महापुरूषों की जीवनियां पढ़ीं और अपनी अधूरी पड़ी शिक्षा को पूरा किया। जेल से भागने के जुर्म में तथा गुप्त रूप से नेतृत्व प्रदान करने के कारण इस बार इनपर कई मुकदमे लाद दिए गए थे। फल यह हुआ कि आजादी के बाद ही ये जेल से रिहा हो सके।

        आजाद भारत में बने स्वास्थ्य मंत्री

 जब देश आजाद हुआ तो राम नरेश सिंह को इलाके की जनता ने बिहार विधान सभा का सदस्य बनाया और तत्कालीन राज्य सरकार ने उन्हें मंत्री बनाया। 1952 के पहले आम चुनाव में ये सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र से चुन लिए गए। इन्हीं के प्रयास से दाउदनगर-गया और दाउदनगर-पटना सड़क के पक्कीकरण का काम 1957 में शुरू हो सका था। दाउदनगर राश्ट्रीय उच्च विद्यालय तथा राश्ट्रीय मध्य विद्यालय की स्थापना कराकर इन्होंने क्षेत्र में शिक्षा के विकास को गति प्रादान की। 1967 में पुनः दाउदनगर से ही प्रजा सोषलिस्ट पार्टी के टिकट पर विधायक निर्वाचित हुए और महामाया बाबू के मुख्यमंत्रित्व काल में स्वास्थ्य राज्यमंत्री बने। बता दें कि तब ओबरा विधान सभा क्षेत्र नहीं था। दाउदनगर और हसपुरा प्रखंड मिलकर दाउदनगर विधान सभा क्षेत्र था। दाउदनगर मेन रोड स्थित नगरपालिका मार्केट में वे रहा करते थे और यहीं इनका कार्यालय भी रहा। स्वतंत्रता संग्राम में तथा दाउदनगर के नव-निर्माण में इनका योगदान अविस्मरणीय है।

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