Thursday 18 December 2014

तीन सौ साल की मोहब्बत को लग गई नजर

जो खोया है शहर ने नहीं होगी वापसी उसकी
हालात बिगाडने के कसूरवार को खोजिए
दोनों पक्ष वाले आग बुझाते दिखे
उपेन्द्र कश्यप
 सतरहवीं सदी के शहर के हालात किसने बिगाडे? कौन है कसूरवार? क्या जानबुझ कर तोडी गई प्रतिमा या बस यूं ही किसी शरारती तत्वों ने उसे तोड दिया? यह सोचे बगैर कि शहर की आबो हवा बिगड सकती है। कुछ लोग हैं जो कह रहे हैं कि शहर में ऐसे हालात तो तब भी नहीं थे जब बाबरी मस्जिद और राम मन्दिर आन्दोलन के समय स्थिति बिगडने के तमाम मौके उपलब्ध थे। तो फिर किसकी नजर लग गई शहर को? दोनों संप्रदाय के लोग आग बुझाते भी खूब दिखे। पुलिस सवालों का जबाब ढुंढेगी, जबाब मिल भी सकता है और नहीं भी। कसूरवार खोजने दीजिए सरकारी नुमाइन्दों को। लेकिन जरा सोचिए जो हुआ उससे क्या मिला? किसको मिला? मुझे नहीं दिखता कि कुछ किसी को मिला हो। लेकिन जो खो गया वह दिखता है। साफ साफ दिखता है। हमने मुहब्बत के पैगाम खो दिए जो तीन सदी से पूर्वजों ने साझा तौर पर तैयार किया था। सन 1660 से 1670 के बीच दाउद खां के बसाये इस शहर की आबो हवा में जो जहर ‘काले मंगलवार’ को घुला, उसे खत्म करने में अब दशकों लग जायेंगे। सांप्रदायिक उत्तेजना ने हमें इंसान से जानवर बना दिया और हम सिर्फ मुर्तियों और ताजिये को लेकर आपस में इतना उलझते चले गए कि प्रेम की जगह रिश्तों की उलझनें शेष बची रह गईं। सुबह करीब छ: बजे यह खबर फैली कि भुवन प्रसाद की दुकान के पास की हनुमान की प्रतिमा तोड दी गई है। प्रतिमा में चान्दी के आंख लगे थे जो गायब हो गए। भीड बढती गई। बिना वर्दी के थानाध्यक्ष पहुंच गए और फिर डीएसपी भी बिना वर्दी। तत्परता तो दिखी मगर पुलिस का रौब नहीं दिखा। कोई किसी की सुनने को तैयार नहीं। फिर खबर आयी कि बाजार के जिमुतवाहन भगवान का चौक भी तोडा गया है। इसके बाद तो जैसे आग फैल गई। अफवाह भी फैलाने की कोशिश होती रही। लोग जुटते गए और बलवा मचता रहा। पुलिस के सामने ही सब कुकर्म होता रहा और वह मूकदर्शक बनी रही। एसपी उपेन्द्र शर्मा ने कहा भी कि जब पढने के साधन नहीं थे, स्कूल कालेज नहीं थे, थानेदार बाइक से चलता था तब इतना उपद्रव नहीं होता था। आगे भी कुछ कहा, उसे छोडिये। लेकिन सोचिए कि क्या हम अब इंसान रह गए हैं क्या? क्या हमारी इंसानियत कटघरे में नहीं है? हम पढ लिख कर किस दिशा में जा रहे हैं? सोचिए और दंगे फसाद से दूर रहिए। इससे न किसी को कभी कुछ मिला है न मिलेगा।


2 comments:

  1. कभी-कभी हम इसी में समय व्यर्थ कर देते है की परिस्थिती के लिए कोण जिम्मेदार है या कोण आरोपी है, ये सब हमारे आपसी रिश्तो में होता है, जहा जॉब करते है वहा या जिन लोगो को हम जानते है उस सभी के साथ होता है, और परिस्थिती के आवेश में आकर हम अपने रिश्तो को भूल जाते है और एक दुसरे का सहारा बनने के बजाये एक दुसरे पर आरोप लगाते है. कुछ भी हो जाये, हम उस व्यक्ति को कभी भी नहीं भूल सकते जिसे हम प्रेम करते है, इसीलिए जीवन में जो आसान है उसे प्रेम करो. आपके पास अभी जो है उसे जमा करो. और अपनी तकलीफों को विचार कर-कर के बढ़ाने के बजाये उन्हें भूल जाओ. उन सभी चीजो का सामना करो जो आपको अभी मुश्किल लगती है या जिनसे आपको डर लगता है सामना करने के बाद आप देखोंगे के वो चीजे उतनी मुश्किल नहीं है जितना की आप पहले सोच रहे थे. हमें परिस्थिती को समझकर ही लोगो के साथ व्यवहार करना चाहिये, और लोगो कठिन परिस्थितियों में उनका हमदर्द बनना चाहिये.

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  2. कभी-कभी हम इसी में समय व्यर्थ कर देते है की परिस्थिती के लिए कोण जिम्मेदार है या कोण आरोपी है, ये सब हमारे आपसी रिश्तो में होता है, जहा जॉब करते है वहा या जिन लोगो को हम जानते है उस सभी के साथ होता है, और परिस्थिती के आवेश में आकर हम अपने रिश्तो को भूल जाते है और एक दुसरे का सहारा बनने के बजाये एक दुसरे पर आरोप लगाते है. कुछ भी हो जाये, हम उस व्यक्ति को कभी भी नहीं भूल सकते जिसे हम प्रेम करते है, इसीलिए जीवन में जो आसान है उसे प्रेम करो. आपके पास अभी जो है उसे जमा करो. और अपनी तकलीफों को विचार कर-कर के बढ़ाने के बजाये उन्हें भूल जाओ. उन सभी चीजो का सामना करो जो आपको अभी मुश्किल लगती है या जिनसे आपको डर लगता है सामना करने के बाद आप देखोंगे के वो चीजे उतनी मुश्किल नहीं है जितना की आप पहले सोच रहे थे. हमें परिस्थिती को समझकर ही लोगो के साथ व्यवहार करना चाहिये, और लोगो कठिन परिस्थितियों में उनका हमदर्द बनना चाहिये.

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