Wednesday 8 January 2020

26 जनवरी को होने वाला सांस्कृतिक प्रतियोगिता भी अब हुआ बन्द

एसडीएम अशोक कुमार सिंह के साथ उपेंद्र कश्यप

यहां के सासंस्कृतिक उत्थान में रही है इस आयोजन की भूमिका

पीढियां पूछेंगी-जब जोड़ नहीं सकते तो तोड़ क्यों रहे परंपरा

महिलाएं इसी आयोजन में जुटती थीं सर्वाधिक क्योंकि होता था सुरक्षा का भरोसा
उपेंद्र कश्यप
8 जनवरी 2020 को दाउदनगर के इतिहास में एक दुर्भाग्य तब जुड़ा जब पहली बार यहां आईएएस अधिकारी तनय सुल्तानिया एसडीएम के पद पर पदस्थापित हैं और अनुमण्डल की जनता को इनसे काफी उम्मीद थी। वे कुछ जोड़ तो न सके किन्तु उनके रहते हर वर्ष 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर आयोजित होने वाली सांस्कृतिक प्रतियोगिता का सिलसिला बन्द हो गया। इस दिन अनुमण्डल कार्यालय सभागार में हुई तैयारी बैठक में वे डीएम के आगमन के कारण अनुपस्थित थे। डीसीएलआर राहुल कुमार की अध्यक्षता में बैठक हुई और बहुत ठंढ होने को वजह बता कर अनुमण्डल प्रशासन द्वारा आयोजित होने वाली अनुमण्डल की सबसे बड़ी सांस्कृतिक प्रतियोगिता का आयोजन नहीं करने का निर्णय हो गया। 
मंच और दर्शक दीर्घा में उपस्थित तत्कालीन विधायक राजाराम सिंह, एसडीएम अखलाक अहमद, और एसडीपीओ ।
      अब देखते हैं, दिल्ली का आयोजन भी रद्द होगा क्या? वहां तो अधिक ठंढ पड़ती है और वहां आयोजन भी देश में सबसे पहले होता है, जबकि दाउदनगर में यह आयोजन अपराह्न में प्रारंभ होता है और शाम को समाप्त। ठंढ की जिन्हें चिंता ने दुबकने को मजबूर किया वे इसे दोपहर में आरंभ कर शाम ढलने से पहले समाप्त करने का सुझाव प्रशासन के सामने रख सकते थे। किंतु बात रखेगा कौन। धृतराष्ट्र की सभा में वीर बहादुरों की कमी नहीं थी, जब द्रौपदी चीर हरण हो रहा था। कमी थी रीढ़ वाले पुरुषों की। रीढ़विहीन लोग नहीं बोल सकते। यहां भी नहीं बोले तो आयोजन स्थगित किये जाने के लबादे ओढ़ कर बन्द कर दिया गया। जब आप कुछ जोड़ नहीं सकते, तो विचार करिये आपको तोड़ने (समाप्त करने) का नैतिक अधिकार कैसे प्राप्त है?
एक कार्यक्रम में उपस्थित भीड़ का दसवां हिस्सा

संभवतः प्रशासन द्वारा आयोजन में व्यवस्था न संभाल पाना भी एक कारण रहा है इस फैसले के पीछे। यदि ऐसा है तो यह प्रशासन की विफलता है कि वह अपने द्वारा आयोजित कार्यक्रम की व्यवस्था सुदृढ नहीं रख सकता।
कहा जा रहा है कि यह आयोजन स्थगित हुआ है। बाद में किसी तिथि को आयोजन होगा। भाई साहब, ऐसा ही भरोसा 2018 में जिउतिया लोकोत्सव को लेकर दिया गया था, कि अगले बरस आयोजन होगा। 2019 में हुआ क्या? जोड़ना और प्रारंभ करना हमेशा कठीन होता है, स्थगित करना, बन्द करना और तोड़ना हमेशा आसान रहा है और आगे भी रहेगा। 
दाउदनगर के सांस्कृतिक उत्थान और परिष्कार से जुड़े आयोजन एक एक कर बन्द होते जा रहे हैं। 
ऐसा क्यों है, यह विचारणीय है। यह चुप्पी और उस पर भी सेलेक्टिव चुप्पी के कारण है। रीढ़विहीन बोलते नहीं हैं। मंच संचालन के लिए राजनीतिक पैरवी करवाने वाले भी चुप, उद्घाटन करने-कराने वाले नेता भी चुप। तो बोलेगा कौन? क्या कोई दल या नेता इस पर प्रेस वार्ता करेगा, एसडीएम से पुनर्विचार के लिए मिलेगा?
सरकारी मुलाजिम तो साहब के सामने बोलने से रहे। वे नौकरी कर रहे हैं, नौकरी करेंगे। वे दर्द नहीं लेंगे। दर्द तो दाउदनगर के समाज को लेना होगा। उनको यह दर्द लेना चाहिए जो तनय सुल्तानिया से अधिक अपेक्षा पाले बैठे थे। वे उनके पास जाएं, और प्रयास करें कि उन्हें इसके लिए तैयार करें कि अनुमण्डल का सबसे बड़ा सांस्कृतिक आयोजन रद्द न हो। वह हो और आईएएस साहब उसे नया आयाम और नई ऊंचाई दें। 
समाज चुप रहेगा, कल आयोजन नहीं होगा तो पीढियां वर्तमान पीढ़ी से सवाल करेंगी। वे पूछेंगी कि-जब तुमने कुछ जोड़ा नहीं तो तोड़ा क्यों? सासंस्कृतिक आयोजनों का सिलसिला क्यों बन्द किया?
जब अनुमण्डल 1991 में यह बना था, उसके कुछ साल बाद ही यहां दयानंद प्रसाद बतौर एसडीएम आये थे। उन्होंने इस सिलसिले का आगाज किया था। समाज को जोड़ने और निजी-सरकारी स्कूलों को एक मंच देने का सिलसिला। जिससे ही यहां का सांस्कृतिक उत्थान हुआ। ऐसा हुआ कि जब 26 जनवरी को औरंगाबाद से पटना जाने के क्रम में झांकियों के कारण सड़क पर बड़े अधिकारियों को रुकना पड़ा तो तत्कालीन एसडीएम अशोक कुमार सिंह को फोन कर कहा था कि ऐसी झांकी तो पटना में भी नहीं निकलती है। अद्भुत लग रहा है हालांकि जाम में फंसे हैं। महत्वपूर्ण है कि यह ऐसा आयोजन था जिसमें शहर की सर्वाधिक महिलाएं-छात्राएं प्रशासनिक भरोसे की वजह से जुटती थीं। अब उनके लिए कोई सुरक्षित कार्यक्रम नहीं बचा।
आज उस सद्प्रयासों पर विराम लग गया। 
शायद आईएएस तनय सुल्तानिया कोई पहल कर इस सांस्कृतिक परंपरा को लेकर आये व्यवधान को दूर कर आयोजन करा सकें।
    बस इतनी सी आरजू है, अपेक्षा है।

2 comments:

  1. यह चुप्पी हद से ज्यादा खतरनाक है।तटस्थ रहने वाले शिखंडी के श्रेणी में गिने जाएंगे

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  2. जिन्हें बैठक में भाग लेने के लिये सूचना दी जाती है वे लोग भी नही पहुंचते हैं। दुर्भाग्य है सांस्कृतिक विरासत को समाप्त करने की कोशिशें जारी है।

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