Thursday 10 October 2019

दाउदनगर को गढ़ने में था सयैद अहमद कादरी का महत्वपूर्ण योगदान

सयैद अहमद कादरी साहब

कादरी विद्यालयों के लिए अपनी जमींदारी से दी थी 16 कट्ठा जमीन

डालमियानगर के रोहतास इंडस्ट्रीज में थे केन मैनेजर
डालमियानगर के उनके सहकर्मियों ने दिया था दाउदनगर के कादरी स्कूलों के लिए पैसे


सयैद अहमद कादरी साहब दाउदनगर के मुंशी मोहल्ला में रहने वाले जमींदार सयैद क़यूम कादरी के एकलौते पुत्र थे, जिनका जन्म ईस्वी सन 1908 में हुआ था। बचपन में ही वालिद का साया सर से उठ जाने से उनकी पढाई लिखाई के लिए उनकी अम्मी जान ने अपने गहने गिरवी रख कर इन्हे पढ़ाने की सोची, और इनकी पढाई में रूचि और लगन देख कर कई लोग आगे बढ़े, नतीज़तन गया जिला स्कूल से पढाई करने के बाद इन्होने फर्स्ट क्लास से पटना विश्वविद्यालय के बी एन कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। उस समय के चमकते सितारे जिसे लोग मिनी बम्बई कहते थे, डालमियानगर में केन मैनेजर के पद पर वे कार्यरत हुए। यह जो तस्वीर लगायी गयी है वह हमारे दाउदनगर के वरिष्ठ युवा पत्रकार श्री उपेंद्र कश्यप जी की पुस्तक-‘श्रमण संस्कृति का वाहक- दाउदनगर’ से लिया गया है। कुछ पहलुओं को उपेंद्र जी ने बखूबी उकेरा है।
1952 में स्थापित कादरी माध्यमिक विद्यालय 
 चूँकि मेरे पिता जी कादरी मध्य विद्यालय में ईस्वी सन 1957 से ले कर ईस्वी सन 1995 तक प्रधानाचार्य के पद पर आसीन थे, तो मुझे भी कुछ लिखने की सूझी और मैं लिख रहा हूँ। गौरांग वदन और मुस्कुराते चेहरा के धनी कादरी साहब को शिक्षा की अहमियत बखूबी मालूम थी, शिक्षा के दर्द को वो जानते थे, जो शिक्षित होना चाहता है और पैसे के अभाव में और सुविधा के अभाव में शिक्षा ग्रहण नहीं कर पा रहा हो उस दर्द को वे बहुत करीब से महसूस किये थे। शहर दो भाग में बंट गया था, नयी शहर में अशोक स्कूल और राष्ट्रीय स्कूल की स्थापना हो चुकी थी, किन्तु पुरानी शहर के बच्चों को पढ़ने जाने में दिक्कत थी तो उन्होंने अपनी जमींदारी के अंतर्गत आने वाली जमीन से सोलह कट्ठा जमीन निकाल कर विद्यालय की स्थापना करवाया। जिसका विशेष विवरण श्री उपेंद्र जी ने अपनी पुस्तक में किया है। कमिटी में कौन कौन रहा, और कैसे कर विद्यालय को प्रारम्भ किया, सारी जानकारी उनकी पुस्तक में उल्लेखित है। श्री सच्चिदनन्द वर्मा जी भी उस वर्किंग कमिटी में सक्रिय थे जो अशोक उच्च विद्यालय में साहित्य और लिटरेचर के  अध्यापक थे। हमारे पिता जी श्री बैजनाथ पांडेय उसी वर्ष 1957 में इंटर, गया कॉलेज से पास कर आये थे और कस्टम बिभाग में नौकरी हो गयी थी। किन्तु घर से जाना बड़ा दुस्कर लग रहा था। कादरी साहब, हमारे छोटे दादा पंडित देवनंदन पांडेय जो उस समय गया जिला के ऑनरेबल मजिस्ट्रेट थे के सहपाठी थे। कादरी साहब के मन में ख्याल आया की क्यों न बैजनाथ पांडेय को इसका हेडमास्टर बनाया जाया। जिसके लिए वर्किंग कमिटी ने जोरदार तरीके से मना किया, क्योंकि उनकी उम्र छोटी थी और प्रधानाध्यापक का पद बड़ा। किन्तु डॉक्टर राणा राय जो वर्किंग कमिटी में वाईस चेयर थे ने भी सहमति जता दी तो अपने हाथ में पहनी हुयी सिक्को घडी को खोल कर, श्री बैजनाथ पांडेय को घडी पहनाते हुए कादरी साहब ने बोला की समय का ध्यान रखना एचएम। और उसी दिन से लोग उन्हें एचएम (हेड मास्टर) बोलने लगे । फर्नीचर की व्यवस्था डॉक्टर राणा राय जी ने कर दिया था किन्तु, भवन निर्माण के लिए पैसे की जरूरत पड़ती, वर्किंग कमिटी में इतना पैसा लगाना बड़ा दुस्कर लग रहा था तो कादरी साहब एक कदम और बढे। अपने साथ काम करने वाले लोगो का सहयोग माँगा, और डालमिया फैक्ट्री में काम करने वाले बढ़ चढ़ कर सहभागी बने। जिसके लिए हम दाउदनगर वासियों का उनका आभार मानना चाहिए। और सबसे बड़ी बात की कादरी साहब का मिलनसार स्वभाव, व्यवहार और कार्य कुशलता के लोग कायल थे। तभी जा कर इतनी बड़ी ईमारत खड़ी हो सकी। कादरी साहब के एकलौते पुत्र सैयद अरशद कादरी, दरभंगा मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस कर इंग्लैंड चले गए। साथ में इनकी पत्नी भी वहीं चली गयी थीं। 
इधर इनका जन्मभूमि का लगाव और दाउदनगर को बेहतर से बेहतरीन बनाने की ललक, बार बार खींच लाता। शाम में घर पर दरबार लगता, शहर के गणमान्य लोगो की बैठकी लगती और शहर के विकास और सुदृढ़ शिक्षा नीति पर चर्चा होती। उस दरबार की एक खासियत होती थी, उसमे शहर में मौजूद हरेक फल को काट कर अतिथियों को परोसा जाता चाहे वो पेवन्दी बैर हो, फुट हो, लालमी हो, शरीफा हो, सभी फलों को उचित स्थान मिलता। ठहाकों के बीच अमीरी गरीबी को भूल कर विकास की सुदृढ़ रेखा खींची जाती जो दाउदनगर का भविष्य होता। हम सब आभारी हैं ऐसे सोच रखने वालों के प्रति, जो जाति-धर्म से ऊपर उठ कर कर्म को प्रधान मानते थे। कालांतर में लंग्स में कैंसर हो जाने के कारण ईस्वी सन  1983 में इनका इंतकाल हो गया। दाउदनगर की जनता की तरफ से हम श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए इनका नमन करते हैं।

लेखक-डा० विश्व कान्त पाण्डेय
(इन्होंने मुझे ह्वाट्सएप पर भेजा था)

मेरा सुझाव: कादरी मध्य और इंटर विद्यालय परिसर में कादरी साहब की एक प्रतिमा लगाई जानी चाहिए। बाकी दोनों विद्यालयों के शिक्षकों और नागरिकों की जैसी इच्छा। ऐसे महान लोगों से ही दाउदनगर शहर बना है। दाउदनगर को गढ़ने वालों में एक ये भी थे।

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