कैलेण्डरों में कहां हैं बहुजन ?
उपेन्द्र कश्यप
महाभारत का
प्रसंग है-द्रोण-एकलब्य संवाद.अर्जुन को एकलब्य की धनुर्विद्या से आहत अर्जुन
परेशान था.द्रोण पहले ही उसे विश्व का श्रेष्ठ धनुर्धर बनाने का जो वचन दे चुके थे,वह
एकलब्य के रहते सम्भव ही नहीं था. ऋषि भरद्वाज के पुत्र तथा धर्नुविद्या में निपुण
परशुराम के शिष्य, कपटी द्रोणाचार्य ने आशंकाएं खत्म करने के लिये एकलब्य से
छलपुर्वक दाहिने हाथ का अंगुठा ही नहीं मांगा,उसे हस्तिनापुर की धरती छोडने का भी
आदेश दिया.मगध के निषाद जाति के वनराज पुत्र एकलब्य सदा के लिए “छल के जंगल” में
खो गये.इसी पौराणिक कथा में हम कथित भगवान परसुराम का भी एक चरित्र देखते हैं कि
कैसे उन्होंने “सिर्फ ब्राह्मणों को ही विद्या देने का संकल्प” लिया
हुआ है, और इसीलिए यह जानने के बाद कि कर्ण सूत-पुत्र(ऐसा कर्ण को ज्ञात
था,वास्तविकता अलग है) है उसे(कर्ण को) संकट के समय अपनी ताकत और विद्या भूल जाने
का श्राप दे देते हैं.तब भी एक साजिश थी,और वह साजिश आज भी चल रही है-गैर सवर्णों
को हाशिए पर रखने का.आज द्रोणाचार्य पुरष्कार खेल के गुरुओं को दिया जाता
है,अर्जुन अवार्ड भी है ही.मगध विश्वविद्यालय के दाउदनगर कौलेज के प्राचार्य प्रो0गनेश
महतो का मानना है कि इतिहासकारों ने सवर्णवादी और खासकर गैर सवर्णवादी मानसिकता से
पूरी तरह प्रभावित होकर इतिहास का लेखन किया है.मनगढंत किस्से गढ कर द्विज
व्यक्तित्वों का महिमा मंडन किया गया,वहीं दूसरी ओर बहुजनों के खिलाफ ऐसा लिखा गया
कि उनका व्यक्तित्व समकक्ष द्विज से कमतर दिखे.
लेकिन एकलब्य नाम से पुरष्कार किसी शिष्य के लिए भी नहीं दिए जाते.इसे क्या
कहा जाए? वास्तव में मनुवादी व्यव्स्था में एक नीति के तहत गैर द्विज व्यक्ति के
व्यक्तित्व को निखरने का हर अवसर तोडा गया ,लेकिन द्विजों के लिए अवसर गढे
गए,चरित्र जिनका समाज के अनुकुल नहीं था उसे भी महान बनाया गया,बताया गया.महानता
थोपी गयी. इसका चन्द उदाहरण भर नहीं है उपर का प्रसंग.ऐसे सैकडों उदाहरण हैं.
कैलेण्डर में सिर्फ
9 शामिल
उत्तर भारत
में सर्वाधिक प्रचलित है-ठाकुर प्रसाद का कैलेण्डर.इसके बिना तो हिन्दुओं का कोई
शुभ/अशुभ कार्य सम्पादित ही नहीं हो सकता. इसमें लगभग 120 जन्म/मृत्यु दिवस दर्ज हैं.(देखें
साथ की रिपोर्ट) इसमें बहुजन एक सिरे से गायब हैं. सिर्फ 9 नाम शामिल हैं,क्या शबरी(भील).
संत रविदास(चमार), संत तुकाराम(क्षुद्र),भीमराव अम्बेदकर(चमार).चौहरमल(दुसाध),कबीर(जुलाहा),महाराज अग्रसेन(वैश्य),कांशी राम और कालीदास(क्षुद्र) ही देश की 90
फिसदी आबादी के बीच से महापुरुष बनने या मानने लायक निकले ? कदाचित ऐसा नहीं है.इस
कैलेंडर में जिनके नाम पर जयंतियां या स्मृति दिवस जैसी तिथियां दर्शायी गई हैं ,उनमें
दर्जनों ऐसे “महान” लोग भी शामिल हैं जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं.उनसे
अधिक प्रतिष्ठित और चर्चित लोग गैर द्विज जातियों के नायक बने लेकिन उन्हे
जानबुझकर न कैलेण्डर में जगह दी जाती है न दिल में .बिहार सरकार ने साल 2014 के छुट्टी कैलेंडर की मंजूरी देते हुए राजद के रामलषण राम रमण के प्रस्ताव पर विधानसभा
में कबीर जयंती पर छुट्टी देने की घोषणा की है. घोषणा के अनुरूप 13 जून 2014 को ज्येष्ठ पूर्णिमा को
कार्यपालक आदेश के तहत सरकारी कार्यालयों में छुट्टी रहेगी. गुरु गोविंद जयंती 7 जनवरी,हजरत मोहम्मद साहब की
जयंती 14 जनवरी ,महावीर
जयंती 13 अप्रैल, भीमराव अम्बेदकर जयंती 14अप्रैल
,वीर कुंवर सिंह जयंती 23 अप्रैल,बुद्ध
पूर्णिमा 14 मई, कबीर
जयंती 13 जून को राज्य
सरकार की सामन्य छुट्टी होती है.इसमें सिर्फ कबीर और
अम्बेदकर ही गैर द्विज हैं.भगवान बुद्ध ब्राहमण विरोधी थे,लेकिन बहुजन समाज से
नहीं.
गैर द्विजों का योगदान कम कैसे ?
12 जनवरी
विवेकानन्द जन्म को राष्ट्रीय युवा दिवस, 20 अगस्त को राजीव गान्धी के जन्म पर सद्भावना
दिवस,14 नवम्बर को नेहरु जन्म पर बाल दिवस ,31अक्टूबर को इन्दिरा गान्धी की पूण्य तिथि
को रास्ट्रीय बालिका दिवस तथा 02 अक्टूबर को गान्धी जन्म पर अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा
दिवस मनाने/मनवाने वाली कौंग्रेस को गत 66 सालों में कोई भी दलित,पिछडा,अल्पसंख्यक
व्यक्तित्व इस काबिल नजर क्यों नहीं आया ? क्या
महात्मा फूले,सावित्री बाई फुले(3जन1831),कर्पूरी ठाकुर (24 जन01924)जगदेव
प्रसाद(2फर)डा0राममनोहर लोहिया (23.3.1910)झलकारी बाई,जगजीवन राम,चन्द्रगुप्त
मौर्य(जन्म 340BC, राज 322-298 BC) भीखु कश्यप,छत्रपती शाहु जी महाराज,रामास्वामी
नायकर पेरियार,भारत को सम्विधान देने वाले डा0 बाबा साहब भीम राव अम्बेदकर,बिहार के प्रथम दलित मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री , देश को
क्रांतिकारी राजनीतिक-सामाजिक बदलाव वाली आरक्षण व्यव्स्था का खाका (मंडल कमीशन)
देने वाले एवं बिहार के पहले पिछडे मुख्यमंत्री बी0पी0मण्डल जैसे सैकडों-हजारों
गैर द्विजों का योगदान इन द्विज व्यक्तित्वों से कम था या है ? क्यों बाल्मिकी और
वेदव्यास को भी जगह नहीं दी गई,जबकि इन्हीं के लिखे रामायण और वेदों पर
हिन्दु-धर्म टिका है.तुलसी की जयंती मनाने वाले यह बताएंगे कि मूल रामायण लिखने
वाले बाल्मिकी से बेहतर कैसे हो गए तुलसी ? क्या उन्होंने “रामायण” को ही आधार
मानकर “रामचरित मानस” नहीं लिखा है ? नकलची तुलसी को क्या
इसका पुरष्कार दिया गया कि उन्हों ने “ढोल,शुद्र,पशु,नारी-सब ताडन के अधिकारी”लिखा
और उसे समाज में स्थापित भी किया ? तुलसी भक्त तो तुलसी के गुरु नरहरि सुनार को भी याद नहीं करते.(पढें-
गैर द्विज महा-मानव:जिनका योगदान किया गया नजरअन्दाज़) यहां महाभारत के ही पात्र परसुराम का संवाद याद
आता है- “ब्राहमण इतनी पीडा सहन कर ही नहीं सकता.” यही कहा था कर्ण से जब वह कीडे
के काटने के बाद भी सहन कर रहे थे, ताकि गुरु की निंद्रा भंग न हो.खुद की शांति और
समृद्धि की सुकून भरी नींद के लिए ही चतुष्वर्णीय व्यवस्था की गयी और पूरी
दूरदर्षी योजना बनाकर नीचे की सूची में शामिल किए गये वर्ण या जातीय समूहों को
प्रताडित करने के नियम – तरीके बनाए गये.दुनिया का महान हस्तरेखा विशेषज्ञ कीरो
भारत ज्योतिष ज्ञान सीखने आया था.अपने जब अनुभव कलमबन्द किए तो कहा कि भारत के
ब्राह्मण गुरुओं ने ज्ञान नहीं दिया न ही कलमबन्द किया.ऐसा होता तो आने वाली
पीढियां उसका लाभ ले सकती थींऐसा क्यों नहीं किया गया ?महात्मा बुद्ध ने भी वेदों
को,कर्म कांडों को सर्वहारा बहुजनों के लिए सुलभ कराया था और ब्राहमणवादी वर्चस्व
को चुनौती दी थी.उनसे हिन्दु – सनातन परम्परा पर खतरा मंडराने लगा था.इसी लिए
प्रथम शंकराचार्य ने भारत में बौद्ध विहारों की तर्ज पर मठ बनाए और बुद्ध को
विष्णुअवतार बता दिया था.शायद इसी टीस के कारण बुद्ध भी ब्राहमण के लिए पुज्यनीय
नहीं रहे. ऐसे दृष्टांतों से पूरा भारतीय वांगमय भरा पडा है.
उपसंहार
इस साजिश या मानसिकता को और भी बडे सन्दर्भ में देखा जा
सकता है.सरदार बल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा विवाद हो या लखनउ का अम्बेदकर स्मृति
पार्क.दरअसल,विरोध की मानसिकता इस डर की वजह से है कि बहुजन कहीं द्विजों की बनाई
परम्परा,आडम्बर,भ्रमजाल तोडकर समानांतर खडे होने की स्थिति में न आ जाएं. बसपा की
नेत्री मायावती ने ठीक ही कहा कि -“कांग्रेस ने जातिवादी मानसिकता के कारण दलित
समाज के महापुरुषों की घोर उपेक्षा की है। अगर उसने उचित आदर सम्मान दिया होता तो
इन महापुरुषों के नाम पर भव्य स्मारक,
संग्रहालय, मूर्तिया, पार्क आदि स्थापित करने की जरूरत न पड़ती।“
तब शायद कैलेंडरों में भी बहुजन होते ? लेकिन दलित राजनीति और विमर्ष के बहाने
अपनी रोटी सेंकने वालों से भी सावधान रहने की जरुरत है-चाहे वह दलित ही क्यों न हों
? “दलित दस्तावेज” लेख में अनुसूचित जाति मोर्चा, भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष डा. संजय पासवान ने कहा है
कि-“ दलित समाज को अब अतीत की बातों से ‘लोडेड’ रहने की बजाए नई पहल करनी होगी, उसे अब ‘लीडिंग’
भूमिका में आने की जरूरत है। इसी तरह अब ऐसा कुछ करना होगा कि शेष समाज के लिए
दलित ‘इरिटेटिंग’ नहीं ‘इंस्पायरिंग’
बन जाए। और यह सब तभी संभव होगा जब दलित अब तक की ‘ट्रांजैक्शनल’ यानि सौदेबाजी की प्रवृत्ति से निकल कर ‘ट्रांसफार्मेशनल’ अर्थात बदलाव की मानसिकता में आ जाएं।
हमें याद रहना चाहिए कि दलित समाज की भलाई शेष समाज से जुड़कर चलने में है, टूटने से तो नुकसान ही नुकसान है।“ क्या
इस राय और सुझाव पर गम्भीरता से विचार करने की जरुरत नहीं है ?
2014 में ठाकुर प्रसाद कैलेंडर में दर्ज जयंतियां/दिवस
जनवरी-7-गुरुगोविन्द सिंह
जयंती,11-लाल बहादुर शास्त्री स्मृति दिवस,23-श्री
रामानन्दाचार्या जयंती,नेता जी सुभाषचन्द्रबोस जयंती,25-भिष्म
पितामह जयंती,28-लाला लाजपत राय जयंती
फरवरी-1-रामदेव पीर
(राजस्थान),4-सरस्वती,वागीश्वरी(काशी),6-नर्मदा,7-भीष्म
पितामह का तर्पण-श्राध,8-हरसु ब्रह्म(कैमुर,बिहार),11-दीनदयाल उपाध्याय स्मृति दिवस,12-गुरु गोरख नाथ,13-स्वामी करपात्री की पूण्य तिथि,सरोजनी नायडु,शबरी जयंती(भील).14-राजराजेश्वरी ललिता
(काशी),संत रविदास जयंती(चमार),19-छत्रपति शिवाजी जयंती.22-जानकी
जयंती,कस्तुरबा गान्धी एवं मौलाना आज़ाद स्मृति दिवस,23-समर्थ
गुरु रामदास,24-दयानन्द सरस्वती,25-मेहेर
बाबा जन्मोत्सव,26-वीर सावरकर स्मृति दिवस,27-चन्द्रशेखर आज़ाद शहीद दिवस,28-डा.राजेन्द्र
प्रसाद एवं कमला नेहरु स्मृति दिवस
मार्च-6-याज्ञवल्क्य जयंती,9-दादुदयाल
जयंती,18-संत तुकाराम(क्षुद्र)19-छत्रपति
शिवाजी (प्रा0मत),23-राजगुरु,सुखदेव,भगत सिंह जयंती अप्रैल-2-मतस्यावतार जयंती5-यमुना जयंती8-रामजन्मोत्सव13-महावीर
जयंती,14-भीमराव अम्बेदकर
जयंती.15-चौहरमल(दुसाध),16-कक्छपावतार,18-तेगहादुर(प्राओमत)19-अनसुया 21-अर्जुनदेव
जयंती(प्राचीन मत)23-बाबू कुवंर सिंह25-बल्लभाचार्य30-महर्षी पराशर
मई-1-परसुराम3-रामानुजाचार्य4-आदि
गुरु शंकराचार्य एवं सूरदास5-रामानुजाचार्य
7-रवीन्द्रनाथ टैगोर8-जानकी जयंती14-बुद्ध,कर्मावतार16-देवर्षी नारद17-अहिल्याबाई होल्कर 18-मां
आनन्दमयी20-संत तरणतारण गुरु पर्व28-शनि,संत ज्ञानेश्वर एवं वीर सावरकर 31-महाराणा
प्रताप. जून-1-गुरु
अर्जुन देव शहीदी दिवस13-सरयू,कबीर जयंती(जुलाहा),उधम
सिंह शहीद दिवस14-गुरु हरगोविन्द सिंह(प्रा0मत)23-देवरहा बाबा समाधि दिवस.
जुलाई-4-स्वामी विवेकानन्द
स्मृति दिवस5-गुरु गोविन्द सिंह(नवीन मत)15-संत तुलसीदास स्मृति दिवस 23-चन्द्र
शेखर आज़ाद एवं लोकमान्य तिलक 26-स्वामी अखंडा नन्द28-स्वामी करपात्री
जयंती31-मुंशी प्रेमचन्द जयंती. अगस्त- 1-लोकमान्य तिलक स्मृति दिवस 3-गोस्वामी
तुलसी दास 15-योगी अरविन्द 20-सद्भावना दिवस-राजीव गान्धी 27-रामदेव पीर एवं मदर
टेरेसा 30-अंगीरा ऋषि जयंती
सितम्बर -1-अघोरेश्वर भगवान
राम(काशी) 2-दधिचि एवं स्वामी हरिदास 5-मदर टेरेसा स्मृति दिवस 25-महाराज अग्रसेन(वैश्य) 28-सरदार भगत
सिंह
अक्टूबर – 2-गान्धी एवं
शास्त्री9-कांशी राम स्मृति दिवस
21-धनवंत्री23-महावीर स्वामी निर्वाण,स्वामी दयानन्द स्मृति दिवस तथा स्वामी
रामतीर्थ की जन्म-पूण्य तिथि 26-विश्वामित्र 31-बल्लभ भाई पटेल जयंती एवं इन्दिरा
गान्धी स्मृति दिवस
नवम्बर-1-हंस भगवान एवं
सनकादिक जयंती 3-कालीदास(क्षुद्र)
5-विद्य़ापति 6-गुरु नानक 12-मदन मोहन मालवीय स्मृति 14-बाल दिवस-जवाहर लाल नेहरु
15-बिरसा मुंडा 17-लालालाजपत राय बलिदान दिवस 19-रानी लक्षमी बाई एवं इन्दिरा
गान्धी जयंती.24-गुरु तेग बहादूर शहीदी दिवस
दिसम्बर-2-गीता जयंती
3-डा0राजेन्द्र प्रसाद जयंती(बिहार) 5-दत्तात्रेय जयंती,योगी अरविन्द स्मृति दिवस
6-अन्नपूर्णा दिवस 15-बल्लभभाई पटेल स्मृति दिवस 16-पार्श्वनाथ जयंती
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