पानी की आस में
सूख रहा कंठ
सूरज सामने से दाहिनी ओर
ढल रहा है। तपिश नहीं है, लेकिन रोशनी आंख
को असहज करती है। दृश्य भी सहज नहीं है। आंखों को खोलने वाली। यह संवाददाता एक दल
विशेष द्वारा वोट बैंक मान लिए गए टोले का मर्म समझने की कोशिश कर रहा है। स्थान
है-दाउदनगर (औरंगाबाद) कादरी स्कूल रोड में डोमटोली। राजेंद्र राम अपनी पत्नी वीणा के संग सूप बना रहे
हैं। पूछा कि इस बार वोट किसे देंगे? तपाक से झल्लाहट के साथ बोले-किसी को वोट नहीं देंगे। पानी बिन प्यासे मर रहे
हैं। एक चापाकल सरकारी है। दो साल से बिगड़ा हुआ है। पानी पीना मुश्किल हो गया है।
कभी इसके घर से कभी उसके घर से पानी मांगना पड़ता है। कपड़ा साफ करने या स्नान
करने के लिए नहर में जाना पड़ता है। 1यह परेशानी करीब एक सौ लोग ङोल रहे हैं। धनेशर डोम, धमेर्ंद्र डोम, सुनिल राम बोले- चापाकल चाहिए। बिजली नहीं है। घर आज तक नहीं मिला। व्यवसाय
करने के लिए ऋण चाहिए। पंद्रह साल से राशन कार्ड नहीं मिला। काहे किसी को वोट
देंगे। कमाते हैं तो खाते हैं। दूसरे के शौचालय, नाली, घर की गंदगी साफ
करते हैं तो कुछ पैसा मिलता है। सूप दउरी बना कर बेचते हैं तो पेट भर पाते हैं।
बच्चे को पढ़ाने के प्रति रुचि नहीं क्योंकि न जागरूकता दिखी न पैसा उपलब्ध है।
(दैनिक जागरण 5.4.14 को प्रकाशित)
यह मजाक था- ‘दो दिन से नहीं खाए हैं।‘ पत्नी वीणा बोली- आउ दारु? राजेंद्र को सफाई देनी पड़ी- सर जी, बिना दारु के मल साफ करल पार लगतई। सूरज मद्धिम हो चला था
और बात भी समझ में आ गई थी।
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