दाउद खां का ‘किला’
1673
में बनकर हुआ तैयार
*किला नहीं यह सैनिक छावनी है
*ठहरे
थे 4000 जाट और 3000 सवार सिपाही
*दस
साल लगे निर्माण में
*341
साल हुआ शहर को बसे
उपेन्द्र कश्यप
पुराना शहर में स्थित दाउद खां का किला वास्तव
में किला नहीं सैनिक छावनी है। इसे बनाने में दस साल लगे। दाउद खां बादशाह नहीं थे
कि उनका किला होता। राजस्व को लूटने से बचाने के लिए वस्तुत: यहां सैनिक छावनी
बनायी गयी थी। स्थापत्य सूमेल भी यही बताता है। ‘किले’ के
अंदर सिर्फ अस्तबल है, तोप चलाने के लिए चारों तरफ की दीवारों की
ऊंचाई पर जगह बनाये गये हैं। 1दाउद खां ने बड़े करीने से शहर को
बसाया था। साल 1663 में पलामू फतह के बाद इसका निर्माण कार्य
प्रारंभ हुआ था जो दस साल बाद वर्ष 1673 में बनकर तैयार हुआ। तारीख-ए-दाउदिया
के अनुसार बाहर से हर कौम और जातियों को लाकर बसाया गया। कहा जाता है कि कथित
लड़ाका जातियों को दाउद खां ने नहीं बुलाया-बसाया। फिर सवाल उठता है कि दाउदनगर
में जाटटोली का वजूद कैसे है? जाट लड़ाका जाति मानी जाती है। किवंदति
है कि किले के निर्माण के समय यहां की आबादी रात्रि में निर्माण ध्वस्त कर देती थी,
इसलिए
जाट जाति को बसाया गया। दाउद खां जिस बड़ी फौज का नेतृत्व करते हुए यहां ठहरे थे,
उसमें
4000 जाट और 3000 सवार सिपाही थे। इसलिए यहां जाट टोली
का वजूद चौंकाता नहीं है। ‘जिक्रे आबादी कस्बा दाऊदनगर’ में
इस जाति का जिक्र ही नहीं है । पटवा, तांती को भी तिरहुत की ओर से कहते हैं,
दाउद
खां ने ही बुलाया था। संभव है, दाउद के बाद के शख्सियतों ने इन्हें
बसाया हो, जिनकी चर्चा तारीखे-दाउदिया में छूट गया हो। दाउद खां ने अपने नगर की
सुरक्षा के लिए बड़े कमाल की तरकीब अमल में लाया था। शहर के चारों ओर चार बड़े
फाटक बनाया। अजीमाबाद या पटना का फाटक, अजगैब का फाटक तथा गाजी मियां का फाटक
अपना वजूद खो चूका है। सिर्फ छत्तर दरवाजा का वजूद आज कायम है। इन चारों दरवाजों
से आगे बड़े-बड़े गहरे गड्ढे खुदे हुए थे, ताकि कोई दुश्मन सहजता से पुलिस छावनी
पर हमला न कर सके। तारीखे दाउदिया कहता है कि नबीर-ए-दाउद खां नवाब अहमद खान ने
अहमदगंज बसाया, जिसे वर्तमान में नया शहर कहा जाता है। पुस्तक
बताती है तब यहां के जंगलों में सांभर, नीलगाय, जंगली सुअर पाये
जाते थे, हिरण भी कभी-कभी मिलते थे। वर्तमान में अब न जंगल हैं, न
ही जंगली जानवर, फिर शिकार खेलने वाला भी कैसे रहेगा। दाउद खां
ने दाऊदनगर को बसाने के बाद एक राजपूत को भी राजा बनाया। 1‘हालात-ए-मुख्तसर
राजा तरार’ अध्याय में कहा गया है कि दाउद खां ने एक
राजपूत बाबू भूरकुण्डा को मुसलमान बनाकर उसे अबूतालिब नाम दिया और परगना अंछा,
गोह
एवं मनौरा में से एक चौथाई देकर उसे राजा तरार बनाया। अब तरार में खंडहर भी नहीं
बचा। लगभग तीस फीट ऊंचा टीला ‘राजा तरार’ के अतीत को खुद
में छुपा लिया है। राजा तरार की काफी जमीनें अतिक्रमण कर ली गयी हैं। इसे मुक्त
कराना और टीले की खुदाई कराने की आवश्यकता है। दाउदनगर में दाउद खां की पुलिस
छावनी पर आज उपले ठोके जा रहे है, यह शर्म की बात है। हम अपने गौरवशाली
अतीत को अपने ही हाथों जमींदोज करने पर आखिर क्यों तुले हुए हैं? नालियां
इसी ‘किले’ में बहायी जा रही हैं, रास्ते बना लिये
गये, अतिक्रमण अपनी हदें पार कर रहा है, इस सब के लिए
हमारे अलावा कोई दूसरा जिम्मेवार नहीं है। हमें अपने अतीत को बचाना होगा, अन्यथा
आने वाली पीढ़ी इसके लिए हमें दोषी ठहराएगी। ‘जब जगा, तभी
सबेरा’ पर अमल करते हुए हमें नयी पहल करनी होगी।
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